Tuesday 28 March 2017

बीजींग कान्फ्रेंस,सीडॉ और भारतीय महिला नीति

    बीजींग कान्फ्रेंस,सीडॉ और भारतीय महिला नीति(जनता की राय)
   
   सन् 1995 में चौथा महिला अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन बीजींग (चीन) में हुआ । तब से पिछले पाच वर्षो में स्त्रियों के हक और सक्षमता की बात अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बार-बार उठाई जा रही है।भारत में भी इस विषय पर चर्चा ,कार्यक्रम तथा अन्य गतीविधियाँ हो रही है । अतः यह समझाना है की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर होने वाले प्रयास ,अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उठाने जाने वाले मुद्दे क्या है, यह भी समझाना आवश्यक है इस संबंध में भारतीय दर्शन और भारतीय परिप्रेक्ष्य क्या है भारतीय स्त्रियों की समस्या यदि अंतर्राष्ट्रीय स्तर की समस्याओं  से भिन्न है   तो क्या उन्हे  समुचित रूप से उठाया जाता है।
    संयुक्त राष्ट्रसंघ की स्थापना सन् 1945 में द्वितीय विश्व युद्ध के तुरन्त बाद हुई । अंतर्राष्ट्रीय पर संय़ुक्त राष्ट्रसंघ में स्त्री -पुरूषों के समानता की बात की गई है-भारतीय संविधान में भी यह बात है । बीजींग सम्मेलन में समानता की बात करेते हुए स्त्रियों के लिए तीन मुद्दों पर बल दिया गया था। -समानता ,विकास व शान्ति।
    इस समारोप में भाग लेने के लिए 189 दोशों से छह हजार डेलिगेट आए। इसके अलावा चार हजार से अधिक स्वयंसेवी संस्थाएँ ,चार हजार से अधिक पत्रकार और पाँच हजार से अधिक सरकारी महकमे के लोग भी आये ।इस प्रकार सम्मेलन में करीब तीस हजार लोगों ने भाग लिया।
      बीजींग सम्मेलन के मुख्य मुद्दों को समझने से पहले अन्य अंतर्राष्ट्रीय महिला संगठनों की बाबत जानकारी रखना आवश्यक है।1971 में संयुक्त राष्ट्र संघ की सभा में स्त्रियों के लिए समान रूप से भागिदारी की बात अतिमहत्वपुर्ण मानी गई । इस विषय में स्त्रियों की स्थिती का ब्यौरा लेने के लिए एक आयोग बना ।इसी आयोग की सिफारिश से 1979 में सीडॉ या CEDAW( Convention on Elimination of all types of Discriminstion Against Women) का गठन हुआ । इसी की देखादेखी हमारे देश में भी एक  आयोग सी .एस डब्ल्यु .आई. अर्थात्Commission on Status of Women in India  के नाम से बना ,जिसने 1975 में अपनी रिपोर्ट देकर भारत में स्त्रियों की स्थिति का ब्यौरा दिया । इसी आयोग की सिफारिश और कई महिला संगठनों के संघर्ष और आग्रह के कारण 1990 में राष्ट्रीय महिला आयोग बना ।
     1976 से 1985 के दौरान अंतर्राष्ट्रीय महिला दशक मनाया गया और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई महिला संगठन बने जैसे-INSTRAW, UNIFEM ,CEDAW, CSW ,DAW इत्यादी । इसी प्रकार अपने देश में भी महिला प्रश्नों के संदर्भ में कई प्रणालियाँ बनीं । उदाहरणस्वरूप ,राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय महिला आयोग के साथ -साथ कई प्रान्तों में महिला आयोग बने । योजना आयोग अर्थात् Plainning Commission  ने हर मंत्रालय को स्त्रियों के संदर्भ में अलग कार्यक्रम तथा बजट बनाने के निर्देश दिये ।केन्द्र तथा राज्यों में महिला व बाल कल्याण के लिए अलग विभाग खुले ।प्रशासकीय प्रशिक्षण संस्थाओं में जेंडर रिसोर्स सेण्डर के माध्यम से स्त्रियों कि स्थिती की चर्चा आरम्भ हुई और शासकीय प्रशिक्षण में इसका अंतर्भाव किया गया । महिला विषय पर टास्क फोर्स भी बनाई गई। यू.जी .सी . ने कई विश्वविद्यालयों को जेंडर स्टडी सेंटर खोलने के निर्देश व वित्तसहायता दी। साथ ही राज्यों और केन्द्र   सरकार ने महिला नीती भी बनाई ।
     बीजींग सम्मेलन में महिलाओं के संदर्भ में क्रियान्वयन के 12प्रमुख मुद्दे उभरकर सामने आये-
  1 महिलाएँ और गरीबीः इसके मुद्दे यों है-
    (1) स्कूली पैमाने पर बनने वाली विकास नीतियों में महिलाओं की गरीबी को ध्यान में रखवाया जाए।
     (2) सारे कानुन और सरकारी तरीकों की समीक्षा इस कसौटी पर हो कि क्या आर्थिक प्रक्रियाओं की पहुँच बढी है।
   (3) बचत और ऋण पाने के लिए महिलाओं की पहुँच हो।
   (4) महिलाओं में बढती गरीबी और उन पर अधिकतम रूप से पडने वाली गरीबी की मार की समुचित पढाई की जाए।
2  महिलाओं के हेतू शिक्षा और प्रशिक्षाः इसके प्रमुख मुद्दे यों है-
   (1) शिक्षा तक पहुँच ।
   (2) निरक्षरता हटाओ।
   (3) स्त्रियों के लिए विज्ञान ,तकनीकी व निरंतर शिक्षा उपलब्ध कराई जाए।
   (4) भेदभाव के संस्कार दूर करने वाली शिक्षा और प्रशिक्षा प्रणाली हो।
   (5) शिक्षा प्रणाली में सुधार लाये जाएँ और समय-समय पर उनका ब्यौरा लिया जाय।
   (6) महिलाओं के लिए समय-समय पर अपनी शिक्षा को आगे बढाने के मार्ग उपलब्ध हों।
3  महिलाओं का स्वास्थ
4 स्त्रियों पर अत्याचार
5 सशस्त्र संघर्षो में फँसी महिलाएँ
6 महिला संबंधी आर्थिक विचार
7 सत्ता और निर्णय में महिलाओं की साझेदारी
8 स्त्रियों के प्रति शासकिय प्रणालियों का व्यवहार
9महिलाओं के मानावाधिकार
10प्रसार-माध्यम और महिलाएँ
11पर्यावरण में महिलाएँ
12बालिकाओं के लिए विशेष कार्यक्रम
      इन सारे मुद्दों पर विभिन्न देशों ने पाँच वर्षों में क्या-क्या काम किये हैं इसे जानने और समझने के लिए इस वर्ष जनवरी तथा जुलाई में CEDAWकी विशेष सभाएँ न्युयॉर्क में हुई जिसमें हर देश को अपनी प्रगती का ब्यौरा पेश करने के लिए कहा गया । भारत की ओर से भी न्युयॉर्क सभाओं में कई प्रतिनिधि भेजे गए जिसमें हमारी प्रगती और हमारी समस्याएँ विश्व की अन्य महिला संघटनों और संयुक्त राष्ट्र संघ के सम्मुख लाई गई।
      अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की स्थिती और भुमीका पेश करते हुए कुछ बातें विचारणीय हो जाती है । जैसे,
 1. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की जगह और पहचान कहाँ है ?
2. भारत में परिवार का स्थान क्या है और हमारी महिला समस्याओं का समाधान परिवार के माध्यम से कैसे ढुँढा जा सकता है?
3. हमारे संकल्पों को केवल कागज पर लिखने से क्या होगा ?
4.हमारी समस्याएँ प्रभावशाली ढंग से अंर्राष्ट्रीय मंच पर नहीं आ पातीं क्योंकी जो महिलाएँ हमारी भाषा में उन्हें अच्छी तरह व्यक्त कर सकती है, उन्हे अतर्राष्ट्रीय स्तर पर मौका नहीं मिल पाता।
 5. भारतीय ज्ञान भंडार (उदाहरण आयुर्वेद) ,भारतीय दर्शन शास्त्र (उदाहरण पर्यावरण  के साथ समन्वय  न कि उसका दोहन ), और प्राचीन भारतीय स्त्रियों की उपलब्धियाँ अंतर्राष्ट्रीय समाज के सम्मुख नहीं लाई जातीं ।अतएव उनके आधार पर महिलाओं के सक्षमीकरण की बात सोचने से या संकुचित हो जाते हैं।
6इस प्रकार हमारे जो बलस्थान हैं उनका प्रयोग हम अपनी महिलाओं की समस्याओं के निपटारे  में राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नहीं कर पाते है।
7.स्त्रियों की समानता के लिएँ क्या- क्या चाहिए?
     .
. कानुनी हक
 जीने की समुचित परिस्थितियाँ
 . विकास की सुविधाएँ
 . हर प्रकार की सामाजिक ,आर्थिक और राजकिय प्रक्रियाओं में साझेदारी और हिस्सा
 . परिवार में साझेदारी
     यहाँ पारिवारिक साझेदारी की बात को विस्तार से कहना उचित होगा। साझेदारी में सुख और दुख दोनों बाँटने पडते है । जिम्मेदारियाँ उठाना ,उन्हे क्षमता के साथ निभाना ,उनके मीठे फल का स्वाद चखना -एक -दुसरे के लिए त्याग,मैत्री ,प्यार -साझेदारी में ये सारी बातें है। इन सबसे बढकर है उनका सम्मान जिनके साथ हम साझेदारी करते है।
       सम्मान की तीन वजह होती है -किसी कि सत्ता ,फनकी क्षमता ,उनकी साझेदारी की गरज । आज यदि हमारे परिवार बिखर रहे है तो उसका कारण भी है ।घऱ के अन्दर किए जाने वाले कमरतोड और एकरस उबाऊ कामों में पुरूष कितनी साझेदारी करते है,आर्थिक निर्णय में महिलाओं की साझेदारी कितनी स्वीकार करते है ,जब तक ये दोनों बाते नहीं होतीं परिवार मे समानता नहीं होगी और वे बिखरेंगे ।परिवारों को समानता के माध्यम से वापस जोडने के लिए हमारी नीतीयाँ क्या होनी चाहिए।
       सीडॉ या अन्य सभी अंतर्राष्ट्रीय फोरमों में हम अपनी समस्याएँ ,अपने संदर्भो के साथ रख पायें ,यह हमारा प्रयास होना चाहिए।
 (जालंधर में दिया भाषण)
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