05-हर जगह वही भूल
इंडियन एअरलाइंस की यंत्रचालित सीढियों में फंसकर ज्योति जेठानी नामक आठ-वर्षीय बालिका की जान चली गई और प्रशासन मुंह लटकाने के सिवाय कुछ नहीं कर सका। दुखियारी मां का आक्रोश सुनने के लिए रुकने तक की संवेदनशीलता किसी के पास नहीं बची थी। फिर उस मां को आठ लाख रुपए का मुआवजा दिया गया और सारे लटके मुंह फिर से अपनी पुरानी जानी-पहचानी बेदिली के साथ ऊँचे उठने के काबिल हो गए। हम और आप जो इस देश के प्रशासन के लिए टैक्स भरते हैं और कई अन्य तरीकों से देश की उन्नति के लिए ईमानदारी से जुटे रहते हैं, क्या यह सवाल पूछ सकते हैं कि हमारी जेब का आठ लाख रुपया गीता जेठानी कोदेकर सर ऊँचा करने का हक प्रशासन को कैसे मिल गया? क्या यह टैक्स के रूप में दिए गए हमारे पैसे का हमारी ईमानदारी का दुरुपयोग नहीं है?
पिछले पचास वर्षों में प्रशासन को सुयोग्य बनाए रखने का एजंडा किसी पार्टी या किसी सरकार का नहीं रहा। एक नौकरशाही व्यवस्था हमने ब्रिटिश राज से विरासत के रूप में पाई। उसे आने वाली हर नई सरकार ने वैसे ही चलते रहने को कहा, सिर्फ दो बातों को भूलकर। पहली बात थी कि वह नौकरशाही व्यवस्था ब्रिटिश राज के फलसफे के लिए उपयुक्त थी क्या वह हमारे स्वतंत्र देश की स्वतंत्र नीतियों के लिए भी उपयुक्त थी? इस सवाल पर गौर नहीं किया गया। सरकार यह मानकर चलती रही कि नौकरशाही के व्यवस्थापन में बदलाव की कोई आवश्यकता नहीं। दूसरी बात कि कोई प्रशासन, कोई नौकरशाही, कोई भी मशीन नियमित देखभाल, नियमित साफ-सफाई और नियमित अपग्रेडेशन के अभाव में अपनी उपयोगिता खो बैठती है। इस पूरे वाक्य में सबसे महत्वपूर्ण शब्द है 'नियमित'। अच्छा गायक बनने के लिए आपको नियमित रियाज करना पड़ता है, वैसे ही अच्छा प्रशासन पाने के लिए आपको उसकी साफ-सफाई भी नियमित रूप से करनी पड़ती है। सरकारी प्रशासन में वह नियमितता तो है ही नहीं- यह खयाल भी नहीं है कि इस सफाई की जरूरत है।
आज प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारी मानकर चलते हैं कि उनके साथ काम करने वाले निचली श्रेणी के कर्मचारियों के समूह को अपनी अंदरूनी ताकत है जिसके बल पर वे अपने को खुद ही सुधार लेंगे। वरिष्ठ अधिकारी यही मानते हैं, जानते नहीं क्योंकि मान लेने में कोई मेहनत नहीं करनी पड़ती। जानना हो तो जानने और समझने के लिए मेहनत करनी पड़ती है। और यदि यह जानकारी हो गई कि उस समूह के पास वह अंदरूनी ताकत नहीं है, तो समूह को सुधारने की और उसे ताकत देने की-या यों कहिए कि उसे सुयोग्य बनाने की जिम्मेदारी भी सर पर आ जाती है। इतनी चखचख में कौन पड़े? उससे अच्छा है मान लेना कि निचले लोग अपने आप खुद को सुधार लेंगे।
प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारी मान लेते हैं तो अति वरिष्ठ अधिकारी क्या करते हैं? वे भी मान लेते हैं कि उनके छोटे अधिकारी या तो बिल्कुल गलती नहीं करते या अपने आपको सुधर लेते हैं। फिर सरकार भी मान लेती है कि नौकरशाही अपने आपको सुधार लेती है। जनता भी मान लेती है कि सरकार अपने आपको सुधार लेती है। इस प्रकार देखा गया जाए तो उस चक्राकर श्रृंखला की कड़ी में हर जगह वही भूल की जा रही है - क्या कर्मचारी, क्या प्रशासन, क्या सरकार और क्या जनता।
नागरिक उड्डयन मंत्री ने मान लिया कि उनके मंत्रालय को सुधारने की आवश्यकता है या नहीं, यह जानना उनकी जिम्मेदारी नहीं है। मंत्रालय के अफसरों ने मान लिया कि विमानपत्तन प्राधिकरण की कमियों या अच्छाइयों के बारे में पूछने कि जिम्मेदारी या जरूरत उनकी नहीं। विमानपत्तन प्राधिकरण के दिल्ली स्थित वरिष्ठ अधिकारी ने मान लिया कि डयूटी पर तैनात अधिकारियों की सुयोग्यता के बारे में जानने की जिम्मेदारी उसकी नहीं। और डयूटी लगे अधिकारी ने कहा कि कर्मचारियों की सुयोग्यता के बारे में जानने की उनकी कोई जिम्मेदारी नहीं। कर्मचारियों ने भी मान लिया कि सुयोग्न होने की उनकी कोई जिम्मेदारी नहीं। ऐसे जान गंवाई ज्योति जेठानी ने। खुशी खोई जेठानी परिवार ने। आठ लाख रुपये गंवाए देश के खजाने यानी कि हमने और आपने। और लटकाए सरों को फिर से ऊँचा, उद्धत और गैर-जिम्मेदार रखने का फख्र पाया उन कर्मचारियों ने, विमानपत्तन अधिकारियों ने, नौकरशाही के वरिष्ठ अधिकारियों ने, मंत्रीजी ने, सरकार ने और सरकार को सुधारने की अपनी जिम्मेदारी से बेखयाल जनता ने।
अब नया वर्ष हमारे सामने है। प्रशासन को सुयोग्य बनाने, बढ़ाने और बनाए रखने के लिए नियमित प्रयासों की जरूरत होती है। क्या हम और हमारी सरकार और नौकरशाही सुयोग्य प्रशासन को अपना एजंडा बना सकते हैं? या हमें और कई दुर्घटनाओं, कई जिंदगियों और कई लाख रुपए का मुआवजा देने की प्रतीक्षा करनी पड़ेगी?
जनसत्ता ३० दिसमबर १९९९
Saturday, 6 October 2007
सुयोग्य प्रशासन की पहचान (6)y
06-सुयोग्य प्रशासन की पहचान
हवाई अड्डे के एस्केलेटर में ज्योत्सना जेठानी की दुखद मृत्यु के कुछ ही दिन बाद मुझे हवाई जहाज से यात्रा करने का अवसर मिला। देखा कि सेक्यूरिटी चेक-इन वाले गेट पर लंबी लाइन थी। हरेक यात्री को लंबी जांच-पड़ताल के बाद ही अंदर छोड़ा जा रहा था और इस कार्यक्रम में यात्रियों और कर्मचारियों को भी बहुत समय लग रहा था। और फिर विमान अपहरण के बाद से तो यह प्रक्रिया और भी समय खाने वाली हो गई। लगा जैसे सबने यह तय कर लिया हो कि अधिक से अधिक समय लगाकर कड़ी से कड़ी जांच करना ही सुयोग्य प्रशासन की निशानी है। लेकिन मैं सोचती हूं कि सुयोग्य प्रशासन में सुलभता और समय की बचत बहुत महत्वपूर्ण है। सत्रहवीं सदी में शिवाजी महाराज के गुरु रामदास ने सुयोग्य प्रशासन की पहचान बताते हुए लिखा थाः 'जनांचा प्रवाहो चालला' (यानी जन-प्रवाह सुचारु रूप से चल रहा हो), 'म्हणिजे कार्यभाग झाला' (तब समझना कि तुम्हारा प्रशासन ठीक चल रहा है), 'जन ठाई ठाई तुंबला' (जन-प्रवाह को जगह-जगह रुकावटें हों) 'म्हणिजे खोटे' ( तो जानना कि तुम्हारे प्रशासन में कुछ खोट है) ।
ज्योत्सना की मौत और फिर तत्काल काठमांडो से आने वाले विमान के अपहरण में प्रशासन की जो कमी साफ झलकती है वह है सामंजस्य या कोऑर्डिनेशन का अभाव। एस्केलेटर को चलाने और रोकने का तरीका यदि वहां उपस्थित सभी विभागों के कर्मचारियों को सिखाया गया होता तो कोई न कोई उसे बंद कर देता। उसके कुछ घंटे पहले जब उसी एस्केलेटर को चलाने और रोकने का तरीका यदि वहां उपस्थित सभी विभागों के कर्मचारियों को सिखाया गया होता तो कोई न कोई उसे बंद कर देता। उसके कुछ घंटे पहले जब उसी एस्केलेटर में किसी अन्य प्रवासी के बैग का फीता फंस गया था तब देखने वालों में से किसी भी कर्मचारी ने अगर इस घटना की रिपोर्टिंग को अपनी जिम्मेदारी माना होता तो शायद दुर्घटना नहीं होती। लेकिन प्रशासन का काम निहायत टुकड़े-टुकड़े बंटा हुआ है। इसलिए एक विभाग का कर्मचारी दूसरे किसी विभाग को सुझाव देने की गुस्ताखी नहीं कर सकता। अव्वल तो कोई उसकी बात सुनेगा नहीं और इतने वर्षों में उसने खुद जो 'छोड़ो, मुझे क्या' वाला रुख अपनाया है, उसे भी निकट भविष्य में नहीं बदला जा सकता।
जहां तक 'उसी विभाग' के कर्मचारियों का प्रश्न है, वे उकताए रहते हैं, क्योंकि 'अधिक समय लगाकर कड़ाई से किए जाने वाले इंस्पेक्शन ' से आगे कुछ नहीं होता है, यह बात वे जानते हैं। सभी सोचते हैं कि रोज-रोज व्यर्थ समय गंवाया जाता है है इसलिए कुछ ही दिनों में फिर इंस्पेक्शन ढीला पड़ जाता रहा है। इंस्पेक्शन और मुस्तैदी को बनाए रखना हो तो उसका रुटीन भी कुछ इस प्रकार सरल और सुगम हो कि उसे कम समय में पूरा किया जा सके। लेकिन प्रशासन में समय की बचत और सुगमता के बावजूद अच्छे नतीजे चाहिए हों तो इसके लिए नए तरीके ढूंढने पड़ते हैं, और कर्मचारियों को उन तरीकों का प्रशिक्षण देना पड़ता है। यह एक गतिशील प्रक्रिया है - स्थिर प्रक्रिया नहीं। लेकिन इसकी बजाय देखा गया है कि कोई दुर्घटना हो तो फिर से आदेश निकाले जाते हैं कि नियमों का पालन कड़ाई से हो। इतना आदेश निकालकर वरिष्ठ अधिकारी अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाते हैं। पुराने नियमों को, जो समय की बर्बादी वाले हैं, कोई नहीं बदलता और न सामंजस्य को बढ़ाने वाली कार्रवाई कोई शुरू करता है। फिर प्रशासन अपने पुराने ढर्रे पर वापस आ जाता है। कोई दूसरी दुर्धटना होने तक।
जब कंधार ये यात्रीगण हवाई जहाज से वापस आने को रवाना हो चुके थे तो जी-टीवी पर उनके रिश्तेदारों से बार-बार यह सवाल पूछा जा रहा था कि अब जब एक भारी कीमत चुकाकर देश ने आतंकवादियों से बंधकों को रिहा करवा लिया है, तो इससे आगे देश के नागरिकों का क्या कर्त्तव्य है। बेचारे रिश्तेदारों को इसका कोई उत्तर नहीं सूझ रहा था। और पता नहीं प्रश्न पूछने वालों के मन में भी क्या उत्तर था, क्या सवाल था, क्योंकि उनका उत्तर भी खुलकर सामने नहीं आयो।
लेकिन मेरे दिमाग में इसका उत्तर आया कि देश के नागरिक सरकार से पूछें कि सुयोग्य प्रशासन लाने के लिए वह क्या कर रही है। बार-बार पूछें। नियमित रूप से पूछें। और लीपापोती वाले उत्तरों को स्वीकार न करें। लोकतंत्र में सुयोग्य प्रशासन का आग्रह रखने की जिम्मेदारी भी लोगों की ही है।
जनसत्ता ०८.०१.२०००
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हवाई अड्डे के एस्केलेटर में ज्योत्सना जेठानी की दुखद मृत्यु के कुछ ही दिन बाद मुझे हवाई जहाज से यात्रा करने का अवसर मिला। देखा कि सेक्यूरिटी चेक-इन वाले गेट पर लंबी लाइन थी। हरेक यात्री को लंबी जांच-पड़ताल के बाद ही अंदर छोड़ा जा रहा था और इस कार्यक्रम में यात्रियों और कर्मचारियों को भी बहुत समय लग रहा था। और फिर विमान अपहरण के बाद से तो यह प्रक्रिया और भी समय खाने वाली हो गई। लगा जैसे सबने यह तय कर लिया हो कि अधिक से अधिक समय लगाकर कड़ी से कड़ी जांच करना ही सुयोग्य प्रशासन की निशानी है। लेकिन मैं सोचती हूं कि सुयोग्य प्रशासन में सुलभता और समय की बचत बहुत महत्वपूर्ण है। सत्रहवीं सदी में शिवाजी महाराज के गुरु रामदास ने सुयोग्य प्रशासन की पहचान बताते हुए लिखा थाः 'जनांचा प्रवाहो चालला' (यानी जन-प्रवाह सुचारु रूप से चल रहा हो), 'म्हणिजे कार्यभाग झाला' (तब समझना कि तुम्हारा प्रशासन ठीक चल रहा है), 'जन ठाई ठाई तुंबला' (जन-प्रवाह को जगह-जगह रुकावटें हों) 'म्हणिजे खोटे' ( तो जानना कि तुम्हारे प्रशासन में कुछ खोट है) ।
ज्योत्सना की मौत और फिर तत्काल काठमांडो से आने वाले विमान के अपहरण में प्रशासन की जो कमी साफ झलकती है वह है सामंजस्य या कोऑर्डिनेशन का अभाव। एस्केलेटर को चलाने और रोकने का तरीका यदि वहां उपस्थित सभी विभागों के कर्मचारियों को सिखाया गया होता तो कोई न कोई उसे बंद कर देता। उसके कुछ घंटे पहले जब उसी एस्केलेटर को चलाने और रोकने का तरीका यदि वहां उपस्थित सभी विभागों के कर्मचारियों को सिखाया गया होता तो कोई न कोई उसे बंद कर देता। उसके कुछ घंटे पहले जब उसी एस्केलेटर में किसी अन्य प्रवासी के बैग का फीता फंस गया था तब देखने वालों में से किसी भी कर्मचारी ने अगर इस घटना की रिपोर्टिंग को अपनी जिम्मेदारी माना होता तो शायद दुर्घटना नहीं होती। लेकिन प्रशासन का काम निहायत टुकड़े-टुकड़े बंटा हुआ है। इसलिए एक विभाग का कर्मचारी दूसरे किसी विभाग को सुझाव देने की गुस्ताखी नहीं कर सकता। अव्वल तो कोई उसकी बात सुनेगा नहीं और इतने वर्षों में उसने खुद जो 'छोड़ो, मुझे क्या' वाला रुख अपनाया है, उसे भी निकट भविष्य में नहीं बदला जा सकता।
जहां तक 'उसी विभाग' के कर्मचारियों का प्रश्न है, वे उकताए रहते हैं, क्योंकि 'अधिक समय लगाकर कड़ाई से किए जाने वाले इंस्पेक्शन ' से आगे कुछ नहीं होता है, यह बात वे जानते हैं। सभी सोचते हैं कि रोज-रोज व्यर्थ समय गंवाया जाता है है इसलिए कुछ ही दिनों में फिर इंस्पेक्शन ढीला पड़ जाता रहा है। इंस्पेक्शन और मुस्तैदी को बनाए रखना हो तो उसका रुटीन भी कुछ इस प्रकार सरल और सुगम हो कि उसे कम समय में पूरा किया जा सके। लेकिन प्रशासन में समय की बचत और सुगमता के बावजूद अच्छे नतीजे चाहिए हों तो इसके लिए नए तरीके ढूंढने पड़ते हैं, और कर्मचारियों को उन तरीकों का प्रशिक्षण देना पड़ता है। यह एक गतिशील प्रक्रिया है - स्थिर प्रक्रिया नहीं। लेकिन इसकी बजाय देखा गया है कि कोई दुर्घटना हो तो फिर से आदेश निकाले जाते हैं कि नियमों का पालन कड़ाई से हो। इतना आदेश निकालकर वरिष्ठ अधिकारी अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाते हैं। पुराने नियमों को, जो समय की बर्बादी वाले हैं, कोई नहीं बदलता और न सामंजस्य को बढ़ाने वाली कार्रवाई कोई शुरू करता है। फिर प्रशासन अपने पुराने ढर्रे पर वापस आ जाता है। कोई दूसरी दुर्धटना होने तक।
जब कंधार ये यात्रीगण हवाई जहाज से वापस आने को रवाना हो चुके थे तो जी-टीवी पर उनके रिश्तेदारों से बार-बार यह सवाल पूछा जा रहा था कि अब जब एक भारी कीमत चुकाकर देश ने आतंकवादियों से बंधकों को रिहा करवा लिया है, तो इससे आगे देश के नागरिकों का क्या कर्त्तव्य है। बेचारे रिश्तेदारों को इसका कोई उत्तर नहीं सूझ रहा था। और पता नहीं प्रश्न पूछने वालों के मन में भी क्या उत्तर था, क्या सवाल था, क्योंकि उनका उत्तर भी खुलकर सामने नहीं आयो।
लेकिन मेरे दिमाग में इसका उत्तर आया कि देश के नागरिक सरकार से पूछें कि सुयोग्य प्रशासन लाने के लिए वह क्या कर रही है। बार-बार पूछें। नियमित रूप से पूछें। और लीपापोती वाले उत्तरों को स्वीकार न करें। लोकतंत्र में सुयोग्य प्रशासन का आग्रह रखने की जिम्मेदारी भी लोगों की ही है।
जनसत्ता ०८.०१.२०००
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