Wednesday, 3 July 2013

32 लिंग भेद से जूझते हुए : तारा


लिंग भेद से जूझते हुए : तारा - सनद, अंक १० 

   पिछले गोवा विधानसभा के चुनावों के दौरान चुनाव आयोग ने मेरी डयूटी जनरल ऑबजर्वर के रूप में लगाई थी। तब गोवा की राजनीति और राजनीति के उस पार का गोवा, दोनों ही देखने का अवसर मिला। इसी दौरान पणजी की प्रतिष्ठित कला अकादमी में एक अंगरेजी नाटक भी देख डाला - तारा ! यह उसी नाटक की अंतर्मुख करने वाली कहानी है। स्त्री-पुरुष लिंगभेद का प्रश्न आज देश के दस प्रमुख ज्वलंत प्रश्नों में से एक बन चुका है। कहाँ - कहाँ तक झेलना पड़ता है यह लिंग भेद ! इसी का एक आयाम इस संवेदनशील नाटक की थीम में है। नाटककार थे बंगलोर स्थित साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता श्री महेश दत्तानी। प्रस्तुति और मंचन किया था दि मस्टर्ड सीड आर्ट कंपनी के प्रतिभाशाली कलाकारों ने। नाटक को देखकर लगा कि वाकई में महेश जी से लेकर इस कंपनी की प्रमुख संयोजक श्रीमती इजाबेल वाज, मिशल, जोन, विवेक रॉडरिग्ज इत्यादि बधाई के पात्र हैं। और गोवा के दर्शक भी जिन्होंने वहाँ वहाँ नाटक देखने की बड़ी परम्परा बना रख्खी है। नाटक को कमर्शियल तरीके से खेला जाता है और बड़ी संख्या में नाटक प्रेमी लोग देखने और चर्चा करने आते हैं। मुझे श्रीमती इजाबेल ने बताया कि इसी दौरान यही नाटक दिल्ली में भी किसी कलाप्रेमी ग्रुप ने प्रस्तुत किया था लेकिन दिल्ली में उसे 'कमर्शियल सक्सेस' मिला हो ऐसा नहीं लगता। खैर !
  
   यह कहानी है दो जुड़वाँ बच्चों चंदन और तारा की जो केवल जुड़वाँ ही नहीं थे बल्कि सियामी जुड़वाँ थे अर्थात्‌ जन्मतः उनके शरीर के कुछ अवयव जुड़े या साझेदारी के थे। ऐसे बच्चों को अलग करने के ऑपरेशन अत्यंत कठिन होते हैं और ऐसे बच्चे कम ही आयु तक जीवित रह पाते हैं - सामान्यतः चार या पांच वर्ष ! अधिकांश जुड़वाँ एक ही लिंग के होते हैं। यहाँ भिन्न लिंगों के कारण कॉम्पिलकेशन बढ़ा हुआ है फिर भी ऑपरेशन सफल होता है जिसके लिये डॉ. उमा ठक्कर को अंतर्राष्ट्रीय मान-सम्मान और कीर्ति प्राप्त होती है। बच्चों के नाना जो बंगलोर में एक विधायक हैं और मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशी भी हैं - वे डॉक्टर ठक्कर को बंगलोर में एक प्राइम लैण्ड दिलवाते हैं।
  
   पूरे नाटक भर डॉ उमा ने एक कोने में उच्चासन पर बैठकर समुचित प्रसंगों पर ऑपरेशन की कठिनाइयाँ और उनके मेडिकल उपायों पर भाष्य किया है जो नाटक के तत्कालिक प्रसंग को भी उजागर करता है। नाटक के संयोजन में इस प्रकार की प्रस्तुति काफी प्रभावी बन पडी है।

   नाटक का परदा उठता है तब चंदन अपनी पढ़ाई के लिये इंगलंड आया हुआ है। बचपन से ही ही तय है कि वह 'लेखक' बनेगा, उसमें स्पार्क है। साथ ही वह आत्ममग्न, अल्पसंतोषी और शांत स्वभाव का है। अब वह पचीस वर्ष का हो चुका लेकिन तारा अठारह वर्ष की आयु में ही मर चुकी है। तारा - जो उसकी अंतरंग बाल सखी है, उसे समझती है और दोनों ने मिलकर बचपन की त्रासदियों और अन्य साथियों को झेला है। उसकी याद से चंदन व्याकुल हो जाता है और फ्लॅशबैक ढंग से नाटक पीछे की ओर मुड़ता है।

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   उनका एक छोटा परिवार है - श्री पटेल, पत्नी भारती और अठारह वर्ष के जुडवाँ बच्चे - चंदन और तारा। बंगलोर छोड़कर हाल में ही इस शहर में आये हैं। पास-पड़ोस में अभी अधिक जान-पहचान नहीं है।

   भारती बंगलोर के किसी धनी और प्रभावशाली कन्नड़ विधायक की इकलौती बेटी है जो एक मध्यवर्गी गुजराती लड़के पटेल से प्रेम विवाह रचाती है। तब से घर में भारती और उसके विधायक पिता की ही बात मानी जाती रही - हाल में विधायक की मृत्यु होने तक। भारती आज भी उसी तरह जिद्दी लेकिन अंदर से हिल चुकी है। पटेल अब एक बड़ी फार्मास्यूटिकल कंपनी का मालिक है। नाना ने भी अपनी अपार संपत्त्िा चंदन के नाम पर रखी है।

   बच्चे पढ़ाई में तेज हैं - बंगलोर से मैट्रिक कर चुके हैं। दोनों फिजिकली हैण्डिकैप्ड हैं - यही है सियामी जुड़वों का काम्प्लिकेशन कि जन्म के समय उनके मस्तिष्क और हृदय तो अलग-अलग विकसित हुए हैं लेकिन किडनी सिस्टम एक ही है, और कमर के नीचे जांघ तक का हिस्सा एक ओर से जुड़ा है। ऑपरेशन में उसे अलग करना है और किडनियों का बंटवारा भी करना है ताकि दोनों को एक-एक किडनी मिले।
  
   ऑपरेशन के बाद तारा और चंदन दोनों को एक-एक जयपुर फूट लगाना पड़ा है - बढ़ती उमर के साथ उसे बार-बार बदलना भी पड़ता है - फिजियोथिरैपी के लिये बार-बार अस्पताल जाना पड़ता है। इसके बावजूद दोनों पढ़ाई में तेज हैं। व्यंग्य कसने वाले बच्चों से बचने के लिये उनकी अपनी अलग दुनिया है जिसमें एक-दूसरे का साथ है लेकिन इस नये शहर में परिस्थिति बदल चुकी है। तारा की किडनी धीरे-धीरे काम बंद कर रही है - उसे नई किडनी लगाना जरूरी है। वह कॉलेज नहीं जा सकती। उसके बगैर अकेले कॉलेज जाना चंदन को मंजूर नहीं है। पिता उसे आग्रह करते हैं कि कम से कम तुम मेरे ऑफिस चलो - उसे ही संभालना सीखो - 'आय हैव प्लान्स फॉर यू' - लेकिन चंदन को वह भी मंजूर नहीं। तारा का स्वभाव अल्पसंतोषी नहीं बल्कि थोड़ा आक्रामक है, उसमें महत्वाकांक्षा भी है लेकिन शारीरिक दुर्बलता के कारण उसकी गतिविधियों पर अंकुश लगा है। वह कॉलेज नहीं जा सकती। उसके दुर्बल शरीर को ऑपरेशन के लायक मजबूत बनाना है।

   तारा को किडनी देने के लिये पटेल ने एक 'डोनर' ढूंढ लिया है लेकिन भारती की जिद है कि तारा को उसी की किडनी लगाई जाए। तारा ठीक तरह से दूध या जूस पी ले, अपनी पसंद का खाना बनवाये और ठीक से खाए आदि बातों के लिए भारती उसके पीछे लगी रहती है पटेल बार-बार बेटे से कहता है कि आय हैव प्लॉन्स फॉर यू। भारती उसे छेड़ती है कि तारा के लिये कोई प्लान क्यों नहीं तो वह चिढ़ कर कहता है कि तारा के लिये मैं कुछ प्लान करूँ इसका मौका ही तुम कब देती हो, तुमने तो उस पर कब्जा कर रखा है।

   चंदन और तारा में भावनात्मक मेलजोल बहुत है। चंदन तारा के लिये कहानियां लिखता है या अच्छी म्यूजिक कैसेट्स चुनता है या उसके लिये कभी खुद कंपोज करता है। उसे धीरज बंधाता है। सभी राह देखे रहे हैं उसके नये ऑपरेशन की। सभी चिन्तित हैं।
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   लेकिन पटेल को तारा के साथ-साथ भारती की भी चिंता है। तारा को अपनी किडनी देने की
उसकी जिद  एक जनून की हद तक पहुँच गई है॥ पटेल उसे बार-बार किसी मनोवैज्ञानिक के पास जाने की सलाह देता है। भारती उसे ब्लैकमेलिंग करती है - देखो मैं तारा को सब बता दूंगी। पटेल निश्चयपूर्वक कहता है - नहीं, यदि बताना भी पड़े, तो मैं बताऊँगा, तुम नहीं ! खबरदार तुमने एक शब्द भी कहा तो।

   तारा और चंदन की समवयस्क पड़ोसी लड़की है रूपा। किशोर वयस्‌ की समस्त ईर्ष्या, द्वेष, चुगलखोरी, चटखारे और झगड़ालू प्रवृत्त्िायों को लेकर इस पात्र की रचना हुई है। पढाई में काफी ढीली ढाली और बुद्धू है। उसकी माँ घर में विडियों फिल्में नहीं देखने देती इसलिए वह चंदन-तारा से दोस्ती करती है। बाकी पड़ोसी लड़के लड़कियां किस कदर 'नास्टी' हैं और तारा-चंदन के लंगड़ेपन पर के किस तरह व्यंग्य करते हैं - सारे वर्णन वह चटखारे लेकर उन्हें सुनाना चाहती है। उन दोनों ने कबका सीखा हुआ है कि कैसे अपने आपको इन व्यंग्य बाणों से अछूता रखा जाना है, वह उन्हें मेंटली हैण्डिकैप्ड कहते हैं। एक बार रूपा तारा से कानाफूसी के लिहाज में पड़ोसन की बाबत बताती है - 'वह ना, बता रही थी गुजरातियों के बारे में ! सुना है तुम्हारे पटेलों में ऐसा रिवा.ज है कि लड़की पैदा हुई तो उसे दूध से भरे टब में डूबोकर मार डालते हैं ..........!  , व्हाट वेस्ट .........ऑफ मिल्क !

   ऐसे तीखे चुभने वाले डायलॉग नाटक में कई जगह आये हैं।

   फिर तारा का ऑपरेशन होता है। उसे 'डोनर' की किडनी दी जाती है। लेकिन जब वह अस्पताल से घर लौटती है तो देखती है कि भारती मनोरूग्ण हो चुकी है और मेंटल हॉस्पिटल में है। चंदन उसे देखने नहीं जा
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रहा है (और तारा को देखने गया) क्योंकि उसे अस्पताल से चिढ़ है और नॉशिया हो जाता है।

   तारा को ठीक होने में समय लगने वाला है। वह और पटेल भारती को देखने जाया करते हैं। उसे पता चलता है कि माँ उससे अकेले में ही कुछ कहना चाहती है। एक दिन वह ड्राइवर को लेकर अकेले चली जाती है।

   चंदन घर में अकेला है जब रूपा एक विडियो कैसेट ले आती है। नाजी कन्सन्ट्रेशन कैम्प की पार्श्र्वभूमि पर बनी यह फिल्म है - सोफीज चॉईस ! चंदन रूपा को उसकी कहानी बताता है। चंदन कहता है फिल्म का नाम होना चाहिए था 'देअर वॉज नो चॉईस'!

   यह ऐसी स्त्री की कहानी है जो नाजियों के कंसन्ट्रेशन कैम्प में है। उसके जुड़वाँ बच्चे होने वाले हैं। नर्सों ने बताया है कि उसे छूट कर जाने की इजाजत मिली हुई है - बच्चों के जन्म के बाद वह जा सकती है, लेकिन साथ में एक ही बच्चा ले जा सकेगी। जब बच्चे पैदा होते हैं तो सोफी देखती है कि एक लडका है और एक लड़की। वह क्या करे? किसे ले जाये और किसे मरने के लिये छोडे? कोई औरत, कोई माँ कैसे फैसला कर सकती है? कथासूत्र सुनकर रूपा
काँप जाती है, वह कहती है, इससे तो अच्छा है कि बच्चे को दूध में डुबाकर मार डालो ! इस जगह नाटककार ने बहुचर्चित उपन्यास सोफीज चॉइस का बडा खूबसूरत उपयोग किया है।

   फिर तारा आती है। वह माँ से नहीं मिल पाई है क्योंकि अस्पताल में पटेल के कड़े निर्देश हैं कि तारा को अकेले अपनी माँ से मिलने दिया जाए।

   तारा चिढ़ जाती है। चंदन उसे समझाता है कि पिता तुम्हारे दुश्मन नहीं है, उनकी सूचना के पीछे कोई कारण अवश्य होगा वह तारा को भरोसा देता है कि दोनों मिलकर पिता को समझायेंगे। रात में दोनों पटेल से उलझ जाते हैं - वह हमेशा तारा और चंदन से अलग-अलग तरीके से पेश आये हैं - तारा पर कभी ध्यान नहीं दिया, उसका ख्याल नहीं रखा.....इत्यादि। हारकर पटेल कहता है - ठीक है, तो मेरा भी निश्चय है कि जो बात भारती तुमसे बताना चाहती है, वह मैं बताऊँगा। सुनो.............

   और नाटक का रहस्य खुलता है। यह सही है कि तारा और चंदन जन्म के समय जुड़े थे और ऑपरेशन से उन्हें अलग किया गया था। लेकिन एक बात सारे रिपोर्टों में छिपाई गई थी - कि दोनों के मिलकर कुल तीन अच्छे पैर थे। यह तीसरा पैर मूलतः तारा के शरीर का था। लेकिन भारतीके पिता और स्वयं भारती डॉ ठक्कर पर दबाव डालते हैं कि ऑपरेशन के दौरान उसे तारा के शरीर से अलग कर चंदन के शरीर पर प्रत्यारोपित किया जाए। पटेल के विरोध को दरकिनार किया जाता है। इस काम के लिए डॉ उमाको प्राइम लैण्ड बहाल की जाती है। उसे मान सम्मान और पारितोषकों का लालच दिखाया जाता है। मेडिकल एथिक्स के विरूद्ध होने पर भी डॉ. उमा इसे स्वीकार करती है।

   लेकिन ऑपरेशन का यह हिस्सा असफल हो जाता है। वह तीसरा पैर चंदन के शरीर के साथ एकरूप नहीं हो पाता और धीरे-धीरे सूखकर झड़ जाता है। इधर तारा दुर्बल हो जाती है। अच्छे पैर के कटने का शॉक उसका शरीर - खासकर उसकी इकलौती किडनी बर्दाशत नहीं कर पाती है ......

   यह सन्न कर देने वाला अंत ! वैसे तो परिवार में बेटी की उपेक्षा को लेकर कई निबंध लिखे जाते हैं, गोष्ठियाँ होती हैं लेकिन एक कमर्शियल नाटक के माध्यम से इतनी जबर्दस्त पकड़ के साथ लोगों तक इस बात को पहुँचाने का साहस किया है महेश दत्तानी और दि मस्टर्ड सीड आर्ट कंपनी ने। दोनों को मेरा सलाम !
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लीना मेहेंदले, - १८, बापू धाम, चाणक्यपुरी, नई दिल्ली, ११००२१ 



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