Wednesday, 31 December 2008

हिन्दी में शपथ (1) y

01-हिन्दी में शपथ
जनसत्ता - १९ अक्टूबर १९९९
दिनांक तेरह अक्तूबर, समय सुबह के साढ़े दस। सभी की आंखें दूरदर्शन पर लगी हुई थीं जिस पर तेरहवीं लोकसभा की मंत्रिपरिषद के शपथ ग्रहण समारोह का प्रसारण होना था। तेरहवीं लोकसभा के सदस्यों का चुनाव चंद रोज पहले ही संपन्न हुआ था और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को स्पष्ट बहुमत मिल चुका था। गठबंधन के अंदर भारतीय जनता पार्टी निर्विवाद रूप से लोकसभा के सबसे बड़े दल के रूप में उभर कर सामने आई थी। इसी कारण किसी के मन में कोई शंका नहीं थी। सब जान रहे थे कि शायद शपथ ग्रहण समारोह की अधिकतर शपथें हिंदी में ही ली जाएंगी। सबसे पहले शपथ लेने वाले स्वयं प्रधानमंत्री थे। उन्हें यह गौरव प्राप्त है कि कई वर्ष पहले जब वे संयुक्त राष्ट्र में विदेश मंत्री की हैसियत से भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे थे तब उन्होंने हिंदी में भाषण देकर इस देश की राष्ट्रभाषा को विश्र्व के सामने पहुंचा दिया था। आशा के अनुरूप ही प्रधानमंत्री और उनके अनेकानेक सहयोगियों ने हिंदी में शपथ लेना पसंद किया।

लेकिन शपथ को सुनते हुए जो हिंदी भाषा कानों में पड़ी वह खटकने वाली थी। शपथ के दूसरे वाक्य में यह कहना था कि मंत्री पद की जिम्मेदारी निभाते हुए जो गोपनीय बातें मंत्री महोदय की जानकारी में लाई जाएंगी उन्हें वे गोपनीय ही रखेंगे और किसी भी अन्य व्यक्ति के सम्मुख तभी प्रकट करेंगे यदि वह अन्य व्यक्ति कार्यालय स्तर पर उस विषय को समझने और निभाने के लिए जिम्मेदार हो। मैं जानती हूं कि ऊपर लिखा गया वाक्य बहुत लंबा है। शपथ ग्रहण की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए इसे छोटा होना चाहिए। लेकिन इतना लंबा वाक्य मैंने इसलिए लिखा कि पाठकों को पता चले कि मुद्दा क्या है। क्या इस लंबे वाक्य को छोटा करना संभव है? जी हां, है और वह इस प्रकार लिखा जा सकता हैः 'मैं शपथ लेता हूं कि मंत्री पद निभाते हुए मेरे सामने जो गोपनीय जानकारी लाई जाएगी उसको मैं किसी व्यक्ति के सम्मुख तब तक प्रकट नहीं करूंगा जब तक वह जानकारी उस व्यक्ति के कार्यालय से संबंधित और आवश्यक न हो।'

लेकिन शपथ विधि के दौरान जो हिंदी वाक्य सुनने को मिला उसकी संरचना बड़ी ही उलझी हुई थी। उसका कारण यह है कि शपथ का मसौदा पहले अंग्रेजी में तैयार किया गया था और बाद में उसी अंग्रेजी मसौदे से शब्द-दर-शब्द अनुवाद करते हुए हिंदी मसौदा तैयार किया गया। अतः जो हिंदी वाक्य प्रयुक्त हुआ उसके शब्द थे- 'मंत्री पद का निर्वाह करते हुए मेरे सामने जो गोपनीय जानकारी लाई जाएगी उसे मैं 'तब के सिवाय जबकि' अन्य व्यक्ति कार्यालीय स्तर पर इस जानकारी से संबंधित न हो, किसी के सम्मुख प्रकट नहीं करूंगा।'

'तब के सिवाय जबकि' यह तकियाकलाम बार-बार हिंदी शपथ में सुना जा रहा था और मैं खीझ रही थी। क्या ही अच्छा होता यदि शपथ का मसौदा पहले हिंदी में बनाया जाता। फिर हमें ऐसे तोड़-मरोड़ कर तैयार किए वाक्य भी सुनने नहीं पड़ते जिनमें वाक्य बनाने के हिंदी व्याकरण के सारे नियमों को ताक पर रखा हुआ था। आप पूछिए क्यों हमारी सरकार पहले अंग्रेजी में मसौदे तैयार करती है? क्या हम पहले हिंदी मसौदा तैयार नहीं कर सकते? इसका उत्तर यह है कि सरकारी नियम के अनुसार शपथ जैसे गंभीर विषयों के मसौदे और न्याय या कानून में प्रयुक्त होने वाले मसौदे पहले अंग्रेजी में ही बनाए जाते हैं। फिर उनका हिंदी में अनुवाद किया जाता है। फिर किसी सरकारी अफसर को यह लिखकर देना पड़ता है कि मसौदे का अंग्रेजी रूप ही असल व सही रूप है और यह कि हिंदी मसौदा उसका अनुवाद है। आगे यह भी लिखकर देना पड़ता है कि यदि अंग्रेजी और हिंदी रूपों में कोई विरोधाभास हो तो अंग्रेजी रूप ही सही माना जाएगा।

देश की स्वतंत्रता के दिन से आज ५० वर्ष से भी ज्यादा वक्त तक राष्ट्रभाषा कहलाने के बाद भी हमारी हिंदी को प्रामाणिकता की जांच अंग्रेजी ही करती है।
------------------------------------------------------------

No comments: