Tuesday 17 July 2007

नई सहस्त्राब्दी के पहले (4)y

04-नई सहस्त्राब्दी के पहले

गली-गली में शोर है कि नई सहस्त्राब्दी आ रही है और लोग अकारण ही उत्साह में मरे जा रहे हैं। 'खरीदो-खरीदो ' के नारे लगाने वालों को अपनी चीजें बेचने के बहाने चाहिए और नई सहस्त्राब्दी की शुरुआत से अच्छा मौका क्या हो सकता है। लेकिन इस उमंग और उत्साह में एक गलत धारण यह पनप रही है कि सहस्त्राब्दी का आरंभ एक जनवरी २००० से होने वाला है। इस गलत धारणा की क्या वजह हो सकती है? सोचने पर मुझे अचानक समझ में आया कि वजह है - संगणक यानी कंप्यूटर। नई शताब्दी और सहस्त्राब्दी दोनों का आरंभ होगा एक जनवरी २००१ के दिन। यानी अभी पूरा एक साल और दिसंबर के कुछ दिन बाकी हैं वह दिन आने में। एक जनवरी २००० तो अपनी जानी-पहचानी बीसवीं सदी और दूसरी सहस्त्राब्दी के अंतिम वर्ष का पहला दिन होगा - अन्य कई एक जनवरियों की तरह एक साधारण सा एक जनवरी। लेकिन गड़बड़ी कर दी संगणक ने। या यों कहिए कि संगणक की 'वाई टू के ' वाली समस्या ने।

यह समस्या इसलिए उपजी कि जब १९७० के बाद संगणकों में पंचकार्ड सिस्टम विदा हुआ और की-बोर्ड और प्रोग्रामिंग की शुरुआत हुई तो कई व्यापारी कंपनियों की समझ में आया कि लेन-देन के कई व्यवहार इसकी मार्फत किए जा सकते हैं। सो संगणक चल पड़ा। उस पर दिनांक लिखने का वही तरीका था जो रोजमर्रा में था, जैसे २२ मार्च १९७४ को २२.०३.७४ लिखा जाना। संगणक का उसूल है कि बार-बार प्रयोग में आने वाली बातों को जितना छोटा करके लिखा जा सके और संगणक की जगह और काम को बचाया जा सके, उतना ही वह प्रोग्रामिंग अच्छी मानी जाएगी। तरीखों का प्रयोग बार-बार करना पड़ता है। इसलिए २२.०३.१९७४ लिखने की बजाय २२.०३.७४ लिखना अधिक बुद्धिमानी है क्योंकि यों लिखने में दो अंक कम लिखने पड़ते हैं। अब जहां इन तारीखों के आधार पर कुछ गणित भी करना पड़ता है जैसे सूद का हिसाब लगाना-वहां भी संगणक को समझा दिया गया है कि दिन-मास-वर्ष की गिनती कैसे की जाती है। यदि संगणक को २२.०३.७४ से ०९.११.९९ तक के सूद का हिसाब करना होगा तो वह दिन-मास-वर्ष का हिसाब लगाते हुए दूसरी संख्या को घटा देगा और सूद का हिसाब कर लेगा।

लेकिन इस सदी के अंतिम पांच वर्षों में अचानक लोगों का ध्यान इस बात पर गया कि सन्‌ २००० की तारीख को कैसे लिखा जाएगा और संगणक की बुद्धि उसे कैसे पढ़ पाएगी? यदि एक जनवरी को ०१.०१.२००० लिखते हैं तो संगणक अपने सामने आठ अंक देखता है और पहचान नहीं पाता है कि उसे कोई तारीख बताई जा रही है क्योंकि उसकी प्रोग्रामिंग इस प्रकार हुई है कि वह छह अंकों वाली तारीख को ही पहचानना जानता है। यदि एक जनवरी को ०१.०१.०० लिखते हैं तो संगणक को ादत पड़ चुकी है कि बड़ी संख्या से छोटी संख्या को घटाना है और वह ०० को किसी भी अन्य वर्ष के आंकड़ों की तुलना में छोटी संख्या ही समझेगा। अतः सूद का हिसाब वह नहीं कर पाएगा। इसी तरह, जिन्हें होटलों में एड़वांस बुकिंग करनी है, एअरलाइनों में टिकट कटवाने हैं, रेलवे आरक्षण कराना है, वे सन्‌ २००० या उसके बाद आने वाली तारीखों का ब्योरा संगणक को किस तरह से दें? यह समस्या है जो नई सहस्त्राब्दी के पहले दिन यानी ०१.०१.२००१ के आने तक नहीं रुकेगी, बल्कि उसके एक वर्ष पहले ०१.०१.२००० की तारीख में ही प्रकट हो जाएगी। अतः जो बड़ी खलबली चमी है उसने सबको यों अभिभूत कर दिया मानो ०१.०१.२००० को ही नई सहस्त्राब्दी आरंभ हो रही हो।

दूसरी गलत धारणा बार-बार सुनने में आती है जो हमारे बखानने के ढंग से उपजी है। लोग कहते नहीं थकते नई सहस्त्राब्दी के विषय में। कैसे होंगे उस सहस्त्राब्दी के लोग? कैसा होगा समाज, कैसी होगी सरकार, कैसा होगा प्रशासन, कैसी शिक्षा प्रणाली, कैसी नारी समस्याएं, कैसा समाज सुधार और कैसा विज्ञान? हर कोई अगले हजार वर्षों के सपने बुनने में लगा है। एक सज्जान ने मुझसे कहा कि आइए चर्चा करें कि अगली सहस्त्राब्दी में प्रशासन कैसा होगा। मैंने पूछा कि क्या हम अगले हजार वर्षों के प्रशासन की बात करने वाले हैं, तो झेंपकर कहने लगे कि नहीं, सहस्त्राब्दी शब्द से मेरा मतलब पूरे हजार वर्षों से नहीं था। मैंने फिर पूछा-क्या हम अगले सौ वर्षों के प्रशासन की बातें करेंगे? तो कहा, नहीं इतने अधिक वर्षों की भी नहीं। फिर मैंने पूछा-क्या अगले बीस वर्षों की? तब उन्हें मुक्ति मिल गई। उत्साह से कहने लगे, हां-हां, आइए अगले बीस वर्षों के प्रशासन के संबंध में बात करते हैं। वैसे हजार वर्षों के विषय में सोचना कोई बुरी या अनुचित बात नहीं है। लेकिन वह दार्शनिकों की दुनिया है। सामान्य आदमी के लिए

सहस्त्राब्दी का अर्थ है अगले बीस वर्ष या शायद अगले पांच वर्ष। जिसमें लंबे समय का चिंतन करने की क्षमता हो उसकी को अगले सौ या सहस्त्र वर्षों की बात करनी चाहिए। वरना बातों को अगले दस-बीस वर्षें तक ही सीमित रखें तो हम कम से कम अधिक व्यावहारिक तो होंगे।
जनसत्ता १७.१२.१९९९

2 comments:

हरिराम said...

बहुत सुन्दर व्याख्या की है। एक सहस्राब्दि के लिए अग्रिम आयोजना बनाना, परिकल्पना करना भी उतने ही महान व दिव्य दिमाग के वश की बात होगी।

लीना मेहेंदळे said...

thanks, hariraamji. pl see the list which I have edited today.