02-बच्चों को तो बख्शिए
जनसत्ता ३०.१०.१९९९
सड़कों पर भागते हुए वाहन अपने से पीछे वालों को कई संदेश देते रहते हैं। यहां मैं उन संकेतों की बात नहीं कर रही जो बाएं या दाएं मुड़ने के लिए या रुकने के लिए दिए जाते हैं। यह उन शब्दों की बात है जो वाहनों के पीछे लिखे होते हैं। इनमें कई संदेश सरकार की ओर से जनता के लिए होते हैं। पर एक संदेश जनता की ओर से सरकार के लिए भी था, जिसमें कहा गया थाः 'हमारा सपना अच्छी सड़कें'। इस ऑटो रिक्शा चलाने वाले का सपना कभी पूरा होगा, यह सरकार ही जाने।
कई संदेश किसी के प्रति कृतज्ञता जताने के लिए होते हैं, जैसे 'मां का आशीर्वाद या 'साईं प्रसन्न'। एक संदेश जो कई बार देखा जाता है वह है 'बुरी नजर वाले तेरा मुंह काला'। बुरी नजर वाले के लिए यह शाप किसी भी सामान्य व्यक्ति के दिल से निकलता है और सही भी लगता है। लेकिन कोई संत प्रवृत्त्िा का मालिक भी रहा होगा जिसने ट्रक पर बुरी नजर वाले के लिए एक दुआ लिखी थी कि 'बुरी नजर वाले तेरा भी हो भला'।
तभी बुरी नजर वाले के लिए एक बड़ी बद्दुआ भी देखी जिसमें नई पीढ़ी के प्रति क्षोभ और आक्रोश व्यक्त हो रहा था। लिखा थाः 'बुरी नजर वाले तू सौ साल जिए, तेरे बच्चे बड़े होकर तेरा खून पिएं'। मैं कई महीनों तक इस बद्दुआ के बारे में सोचती रही। हालांकि इसमें बुरी नजर वाले के बच्चों को जरूर घसीटा गया था लेकिन उनकी उस उम्र की बात हो रही थी जब वे वयस्क होंगे। अपने परिवार को चलाने और सोचने के लिए एक प्रौढ़ व्यक्ति की हैसियत से जिम्मेदार होंगे। उनके बचपन को कहीं भी दांव पर या ठेस लगाने वाले मुकाम पर नहीं रखा गया था।
लेकिन हाल में ही मैंने बुरी नजर वाले के लिए ऐसी बद्दुआ देखी जिसने मुझे तिलमिला दिया। यह बद्दुआ बुरी नजर वाले के लिए ही नहीं थी, वरन् उसके बच्चों के लिए थी और उसमें कहा गया था 'बुरी नजर वाले तेरे बच्चे टू इन वन बनें'।
बच्चे ही होते हैं, चाहे दुश्मन के हों या बुरी नजर वाले का आप प्रतिकार नहीं कर सकते उसके मासूम बच्चों के लिए आप बद्दुआ दें। आज पूरा विश्र्व बच्चों को संकटमुक्त और भयमुक्त रखने की बात करता है। हम बच्चों को राष्ट्र का भविष्य बताते हैं। चाहते हैं कि देश के बच्चों पर अच्छे संस्कार हों। लेकिन एक समाज के नाते बच्चों पर अपनी बद्दुआ लादने में हमें कोई संकोच क्यों नहीं होता? हमारे बदले की मनोवृत्त्िा इतनी बुरी हद तक जाती हैं कि उन व्यक्तियों को भी छेड़ने लगती है जो स्वयं निर्दोष हैं।
एक तरफ हमने अभी-अभी दशहरे का पर्व मनाया है। रावण के पुतले जलाए गए हैं। रावण का दोष यह था कि उसकी बहन शूर्पणखा को सताया तो राम और लक्ष्मण ने, पर बदला लेने के लिए वीरों की तरह राम या लक्ष्मण की लड़ाई करने नहीं आया। उसने कायरों की तरह सीता माई को उठा ले जाना ज्यादा ठीक समझा। बुरी नजर वाले के बच्चों को 'टू इन वन' बनने की बद्दुआ देने वाले भी क्या रावण के वर्ग में शामिल नहीं है?
विदेशों में बच्चों के प्रति इतनी सतर्कता रखी जाती है कि इस तरह की समाज-विकृति को प्रकट करने की बात कोई सोच भी नहीं सकता। सजा भी हो सकती है। लेकिन हमारे यहां का सामाजिक मानस अब भी बच्चों को बचाए रखने की आवश्यकता नहीं समझता। इस लिखावट में जो सबसे बुरी बात थी वह यह कि जिस मिनी बस के पीछे बच्चों पर अकारण ही यह बद्दुआ लिखी थी, वह बस दिल्ली के ही किसी अच्छे स्कूल के बच्चों की थी। बस पर स्पष्ट बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा थाः 'स्कूल बस'। क्या हमारे स्कूलों के तमाम शिक्षक, उन बच्चों के अभिभावक, बस मालिक, ड्राइवर आदि सभी इतने संवेदनहीन हो गए हैं कि बच्चों के बचपन को छीनने की बात करने वाली यह बद्दुआ किसी स्कूल बस पर ही लिखी हो?
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Tuesday, 17 July 2007
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