Saturday 31 October 2009

नमक के दरोगा 11 y

नमक के दरोगा
४, जुन २०००
.......लीना मेहेंदळे

दांडी यात्रा की घटना हमारी मैट्रिक की किताबों में थी और उस पर सवाल पूछे जाते थे। शायद यही वजह रही हो कि दांडी यात्रा का फलसफा हमने घोट-घोट कर पढ़ा था। फिर उसे और मजबूत किया एटनबरों की फिल्म 'गांधी' ने। इसीलिए कुछ वर्ष पूर्व जब महाराष्ट्र सरकार ने टाटा के आयोडाइज्ड सॉल्ट को बढ़ावा देने के लिए मुंबई के मिठागर (नमक बनाने वाले क्षेत्र) उठवा दिए तो मैं बहुत छटपटाई थी। इन मिठागरों पर गुजारा करने वाले कई सौ परिवार पीढ़ी-दर-पीढ़ी नमक बनाकर अपना गुजारा करते थे, अब बेरोजगार हैं।

लेकिन मैंने जब आयोडाइज्ड नमक के विषय में जानने की कोशिश की तो कई आश्चर्यजनक बातें सामने आईं। मसलन, नमक बनाने का सबसे सस्ता उपाय है समुद्र के पानी से नमक बनाना। परंपरागत पद्धति से जो समुद्री नमक बनाया जाता है उसमें असली नमक यानी सोडियम क्लोराइड के अलावा अन्य कई तरह के लवण सूक्ष्म मात्रा में उतर आते हैं। मैग्नीशियम, पोटेशियम और मैगनीज के लवण। अल्प मात्रा के ये लवण हमारे शरीर के लिए कई तरह से आवश्यक हैं। यह पाया गया है कि शरीर को बहुत सूक्ष्म मात्रा में आयोडीन की आवश्यकता होती है। यह जरूरत पूरी न होने पर गॉयटर और कुछ अन्य किस्म की बीमारियां होती हैं। शरीर को
को अपने काम भर लायक यह आयोडीन कहां से मिलता है? भले ही कारखाने इसे छिपाना चाहें लेकिन तथ्य यह है कि हमें यह समुद्री नमक से मिलता है। पूरे संसार में आयोडीन के उत्पादन के लिए कच्चे माल के रूप में समुद्र का पानी ही काम आता है। इसी से समुद्री नमक खाने वालों में गॉयटर जैसे रोग नहीं पाए जाते हैं। पहाड़ों से भी नमक बनाया जाता है। उसमें आयोडीन नहीं पाया जाता, लेकिन उसमें सल्फाइड और फॉस्फेट जैसे
अन्य लवण सूक्ष्म मात्रा में मिलते हैं जो शरीर की कुछ अन्य जरूरतों को पूरा करते हैं। पहाड़ी नमक खाने वालों को आयोडीन की अनुपलब्धता के कारण गॉयटर होने की आशंका रहती है।
लेकिन आयोडाइज्ड नमक की बड़ी-बड़ी लागत वाली फैक्ट्रियों में क्या करते हैं? पहले समुद्र से नमक बनाते हैं। फिर उसका शुद्धीकरण करते हैं अर्थात सोडियम क्लोराइड के अलावा अल्प मात्रा वाले अन्य सभी लवण उसमें से हटा देते हैं। फिर उसमें आयोडाइड मिला देते हैं। लेकिन वे सारे अल्प मात्रा के लवण जो पहले समुद्री नमक में थे और शरीर के लिए आवश्यक थे, उन्हें हटाए जाने से शरीर की जरूरतें पूरी नहीं हो पातीं। फिर डॉक्टर आपको अलग से गोलियां खाने को कहते हैं। इससे उनका और दवाई बनाने वाली कंपनियों का धंधा बढ़ता रहता है। यानी परंपरागत समुद्री नमक जो पचास पैसे किलो के भाव से मिल जाता था, उसे बड़ी फैक्ट्री में डालो, उससे आयोडाइड और अन्य लवण निकाल लो, फिर से दुबारा आयोडाइज्ड करो और जनता को दस रूपए किलो के भाव से बेचो। मुनाफा हो फैक्ट्री वालों का, जेबें खाली हों ग्राहकों की और उसे खाली करवाने के लिए आयोडाइज्ड नमक को अनिवार्य करने का और परंपरागत नमक पर पाबंदी लगाने का उंडा चलाए सरकार। वैज्ञानिकों का यह भी मानना है कि यदि बगैर जरूरत के आपने ज्यादा आयोडाइज्ड नमक को अनिवार्य करने का और परंपरागत नमक पर पाबंदी लगाने का डंडा चलाए सरकार। वैज्ञानिकों का यह भी मानना है कि यदि बगैर जरूरत के आपने ज्यादा आयोडाइज्ड नमक खा लिया तो कुछ अन्य रोग भी हो सकते हैं। क्या हमें कोई बताएगा कि परंपरागत नमक में आयोडीन की मात्रा क्या होती थी और अब बाजार में बिकने वाले आयोडाइज्ड सॉल्ट में कितनी होती है और अधिक आयोडीन खा लेने से किन रोगों की आशंका बढ़ती है? कहां है राइट टू इंफॉर्मेशन?

सच तो यह हे कि जो आयोडाइज्ड नमक फैक्ट्रियों में बनाया जाता है उससे आयोडीन की मात्रा धीरे-धीरे निकल जाती है। कहा जाता है कि उसकी मियाद केवल तीन महीने की है। यानी बीमारी से बचने के लिए जो
आयोडाइज्ड नमक लिया हो वह केवल तीन महीनों के बाद प्रभावहीन होने लगता है। इसी तरह फैक्ट्री में पैक होने के बाद ग्राहक तक आते-आते यदि वह नमक तीन महीने पुराना हो गया तो वह बेअसर होकर ही महारे पास आएगा। हमारे अचार इत्यादि साल भर चलने वाले पदार्थों के लिए वह नमक किसी काम का नहीं। फिर भी हम अचार के लिए पुराना सस्ता नमक क्यों नहीं खरीद सकते?

गरीब की जिंदगी पर नमक कितना असर करता है इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि सारे आदिवासी क्षेत्रों के आदिवासी टोकरियां भर-भर कर चिरौंजी, शिकाकाई, हर्रा, कात, करौंदा जैसे जंगली फल केवल एक किलो नमक के लिए दे डालते हैं (इसे 'बेचना' कहने में मेरी कमल रूकती है) । ऐसा नमक गरीब आदमी को अत्यंत किफायती दाम पर मिले, इसलिए महात्मा गांधी ने आंदोलन छेड़ा था। लेकिन आज कहां है वह नैतिक साहस या सिद्धांत की लड़ाई? नमक का परंपरागत उत्पादन रोक देने के कारण मुंबई मिठागरों से कितने परिवार बेरोजगार हुए, इसकी सुध लेने की जिम्मेदारी न सरकार की है और न फैक्ट्री लगाने वालों की। इन्हीं बेरोजगार परिवारों की युवा पीढ़ी गुनहगारी में जा पहुंचती है, इस सामाजिक तथ्य को हम भुला देते हैं।

इन सवालों के उत्तर लिए बिना मैंने यही उचित समझा कि टीवी पर चाहे जितना कैप्टन कुक और टाटा नमक का बखान सुन लो, लेकिन घर में आएगा वही पुराना ढेला नमक, जो बेवजह महंगा या बेवजह फैशनेबल नहीं है, जो लघु उद्योग का हिमायती है और प्राकृतिक रूप से शरीर के लिए सही हैद्य लेकिन बुरा हो दिल्ली का। महाराष्ट्र से दिल्ली आने पर पाया कि दक्षिण दिल्ली में ढेला नमक तो मिलता ही नहीं। ऊपर से आए दिन आयोडाइज्ड नमक के अनिवार्य होने की खबरें पढ़ने में आती हैं। मुझे महाराष्ट्र से ढेला नमक मंगवाना पड़ता है। हाल में मुझे किसी ने बताया कि पुरानी दिल्ली के बाजारों में ढेला नमक मिल जाएगा। मैं इंटरनेट पर ऐसी दुकानों की सूची छपने की प्रतीक्षा में हूं।
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