Wednesday 23 November 2016

॥ २३॥ लुकडया जखमी होता है ॥ २३॥

॥ २३॥ लुकडया जखमी होता है ॥ २३॥

लुकडया और लम्बूटांगी वेग से गुफा को जा रहे थे।
हाथों मे खरहे लेकर लम्बूटांगी आगे...... वह पीछे।
एक लय में चलते सुडौल, शक्तिभरे डग।
साँस..... हांफना।
एक जगह झाड़ी कम हुई तो लुकडया ने भरपूर आँखोंसे उसे देखा।
हांफती उड़ती हुई छाती। आंखें चमकीलीं। केश घुटने तक, उनमें मँह मँह महकने वाले सफेद फूल खोंसे हुए। गठी हुई देह।
लुकडया ने दौडकर उसके पास पहुँचा। उसके केश मुठ्ठी में पकड़ लिए।
वह मुडी। खिलखिलाई।
गुफा में नियम। वह बुदबुदाया। वहाँ फेंगाडया पहले।
वहाँ वह बडा। वही शिकार लाता है।
इसलिए वही इसे पहले जुगेगा। मैं नहीं।
लम्बूटांगी हँसी। उस पर आ गिरी।
उसे लपेटते हुए लुकडया वहीं लेट गया।
अचानक वह हँसा।
क्यों। लम्बूटांगी ने पूछा।
पीछे एक बार एक सू के साथ ऐसे ही बीच राह पर जुग रहा था कि भालू आ गया।
हम उससे डरते, इसके पहले वही डरा।
गुरगुराते हुए भाग गया।
दोनों देर तक हँसते रहे। पिर जुगे। ढीले हो गए। लेटे रहे।
लम्बूटांगी ने कहा-- फेंगाडया ठीक है, लेकिन जुगने के लिए तू ही अच्छा है।
लुकडया उसकी ओर मुडा।
लम्बूटांगी की आँखे मुँदी हुई।
छाती आवेग से ऊपर नीचे।
जुगने के लिए वही अच्छा। फिर तो फेंगाडया से वही बड़ा हुआ। गुफा में नियम चाहे जो कहे।
लम्बूटांगी मानों उसकी छातीमें उठती बात सुन रही थी। उसने कहा-
हाँ रे। मेरे लिए तू ही बडा है।
मुँदी आँखों से कहती गई--
तेरे साथ जुगते हुए लगता है जैसे आँधी और बिजली।
जैसे नदी की तरंग।
फिर पानी की फुहार और धुँध।
फेंगाडया के साथ यह नहीं -- लुकडया ने साँस रोककर पूछा।
अँ... हँ.....। केवल तू।
लुकडया पर उन्माद छा गया।
वह उठा और देरतक थयथय नाचता रहा।
थक गया तो फिर उसके पास आ कर पडा रहा। हाँफता हुआ।
लम्बूटांगी उसकी ओर मुडी। उसे लिपटते हुए बोली--
फेंगाडया यह बात जानता है।
जानता है? लुकडया का शरीर कस गया। वह सुनता रहा।
हाँ। फेंगाडया जानवर नही है। मेरी पथरीली आंखें उसे समझ आती हैं।




फिर वह भी ना कह देता है। नही जुगता है।
वह अकेला ही है जो मेरी आंखों में ना को समझ लेता है।
केवल समझता नही, उसे मान भी लेता है।
लुकडया ढीला पडा।
फेंगाडया.... फेंगाडया ही कर सकता है ऐसा।
फेंगाडया है इसलिए आज मैं हूँ।
लुकडया ने सिर हिलाते हुए कहा।
मर ही जाता मैं। अपने झुण्ड से अलग भटक गया था।
पडा हुआ था जंगल में। भूख से आकुल।
बहुत ऋतु हो गए।
उन दोनों ने- बापजी और फेंगाडया ने मुझे उठा लिया। छोड़कर नही गए मुझे। ले आए गुफा में।
शिकार दी... भूख मिटाई।
दो दिन.......दो रात.... मुझे जिलाए रखा।
तब मैं खडा हो सका।
बापजी का यह मानुसपना- फेंगाडया ने भी ले लिया है मानुसपना।
इसलिए तुम्हारी पथरीली आंखों का नकार वह देख लेता है।
इसीलिए साथी के मरने का दुख करता है।
नही तो कौन इसे अपनी गलती कह कर रोता है?
लम्बूटांगी ने मुड़कर उसके गले में बांहे डालीं।
अलाव के पास जब सब इकट्ठा हो जाते हैं तो कितना खुश हो जाता है फेंगाडया।
उसे अकेलापन अच्छा नही लगता है।
बाँई ओर झाड़ी में आहट सुनाई दी।
दोनों अलग हुए और झटके से उठ गए।
लुकडया ने लाठी संभाल ली।
चलो.... उसने इशारा किया।
दोनों पगडंडी पर आगे बढने लगे।
चुपचाप, सावधान।
दाहिनी ओर नीचे घाटी पसरी हुई थी। जिस पहाड़ की कगार पर वे थे, उससे तीन पुरुष गहरी।
लम्बूटांगी पगडंडी पर संभल कर उतरने लगी।
लुकडया ठहर गया। उसकी ओर देखता रहा।
अचानक उसके पैर के नीचे से एक बड़ा पत्थर उखडा और घाटी में नीचे तक गिरता चला गया।
लुकडया संभल न सका। औंधा होकर गिरा।
लम्बूटांगी ने उसकी चीख सुनी। वह मुडी। एक बेल को मजबूती से पकड़ कर दूसरे हाथ से उसे सहारा देने लगी।
लेकिन वह वेग के साथ नीचे गिरता चला गया।
धप्प की आवाज पर उसने देखा, वह एक जरा सी जगह पर बेलों में अटक कर ठहर गया था। घाटी में गिरने से बच गया था।
लम्बूटांगी बेल पकड़ कर धीरे धीरे नीचे उतरी और लुकडया के पास आई।
उसने लुकडया की देह टटोली। कोई बडी जखम कहीं नही थी।
उसका हाथ लुकडया की जाँघ पर पड़ा। वह वेदना से चीख उठा।
उसकी हड्डी टूट गई थी।
वह बार बार चीखा। बोला--



पाँव नही उठा पाऊँगा।
लम्बूटांगी जैसे पत्थर।
उसने लुकडया को घसीटने का प्रयास किया लेकिन उसकी चीखें बढती गईं।
वह हताश हो गई।
साथी गया और अब तू। वह बुदबुदाई।
लुकडया ने सिर हिलाया।
उठ पाता तू, और चल पाता तो बच जाता।
यह कैसा मरण।
न शिकार से हाथापाई, न कोई जखम। केवल गिरकर, हड्डी टूटकर मरण।
वह छाती पीटने लगी।
मुँह से कोई स्वर नही, कोई रुलाई नही। केवल छाती पीटना।
फिर वह संभली, मुडी और जाने लगी।
आँखों से ओझल हो गई।
लुकडया अकेला।
वह सिहर उठा।
सूरज ढलने में देर थी।
अब मरण।
लम्बूटांगी थोड़ी देर में गुफा तक पहुँचेगी।
दो दिन, दो रात और फिर दो दिन, दो रात हम दोनों गुफा से बाहर थे।
फेंगाडया अकेला था।
आज वह गुफा में आएगा।
लम्बूटांगी को देखकर खुश होगा। नाचेगा।
पूछेगा लुकडया कहाँ है।
लम्बूटांगी छाती पीटेगी।
उसे बताएगी।
फिर वह भी छाती पीट लेगा।
थोड़ी देर।
फिर अलाव जलाएंगे। शिकार भुनेंगे। पेट भरेगा।
दोनों जुगेंगे।
अलाव की उष्मा में सो जाएंगे।
कल सूरज निकलेगा।
पंछी बोलेंगे। बंदर किचकिच करेंगे।
भैंसे भी घूमने निकलेंगे।
वे दोनों फिर शिकार के लिए जाएंगे।
लुकडया की वेदना बढी, वह फिर चीखा।
सामने आकाश। बस, आकाश।
और राह देखना।
एक बडे जानवर की। जो आएगा, उस पर टूट पडेगा, उसे नोच कर खा जाएगा।
वह राह देखने लगा।

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