Wednesday 23 November 2016

॥ ३२॥ धानबस्ती पर कोमल पिलू जनती है ॥ ३२॥

॥ ३२॥ धानबस्ती पर कोमल पिलू जनती है ॥ ३२॥

बाई ने अपनी जगह से देखा।
नदी पर दूर कोमल चीख रही थी। उसकी आवाज यहाँ तक आ रही थी।
चार सू उसके चारों ओर नाच रही थीं।
आओ, आओ..........। नाचते हुए वे पिलू को आमंत्रण दे रही थीं।
सूरज उगने से पहले ही कोमल उधर चली गई थी।
रात से उसके पेट में टीसें उठ रही थीं।
चारों सू रूकीं। नियमानुसार नाच और कोलाहल हो चुका था। अब पिलू को आ जाना चाहिए। वे वापस मुडीं और बाई के पास आ गईं।
टीसें उठ रही हैं। बार बार।
एक ने बताया।
बाई ने सिर हिलाया। उसका शरीर सिहर उठा। ये टीसें..........फिर पिलू..... उसके निकलने का प्रयास।
उसका जीवित बचना।


">घाटी में छोटे छोटे पठार थे।


और सू का भी.... कदाचित।
वह कोमल के पास आई।
कोमल हँसी। दोनों हाथ उठाकर उसे बुलाया।
बाई उसके पास बैठी। कोमल के पेट पर हाथ फेरने लगी। कोमल ने उसे जोर से पकड़ लिया।
इस समय, ऐसा भैंसे जैसा जोर, यह शक्ति सू में कहाँ से आ जाती है?
बाई ने अपनी कलाई छुड़ा ली। वहाँ काला धब्बा पड़ गया था।
उसने कोमल की जाँघें फैलाकर दो अंगुलियाँ अंदर सरकाईं।
सिर...। पिलू का सिर। दो अंगुलियों के अंतर पर।
पिलू निकलने का समय आ गया।
वह पुटपुटाई... तेजी से वापस मुडी।
कोमल एक बार फिर चिल्लाई। बाई तेजी से औढया देव के पेड़ के पास आई।
पायडया धान फैलाकर बैठा था। एकटक धान को देखता हुआ। आकृति बनाता हुआ......।
जाओ। बाई ने कहा।
पायडया ने मुट्ठी में धान भरकर चारों दिशाओं में फेंका।
धान उगने दो। पिलू को आने दो। सू पिलू को आने दो। वह चिल्लाया।
चांदवी आगे आई- मैं भी चलूँ?
पायडया ने मना किया- नहीं। तू अभी तक रक्तगंधाई नही है।
दौड़ते हुए पायडया चला। चांदवी उसके पीछे हो ली। लेकिन थोड़ी दूर जाकर रुक गई।
पायडया कोमल के पास पहुँचा। अपनी हांफती साँसे संभालने लगा।
कोमल ने आँखें खोल दीं। सूरज अब सिर पर आ गया था। कोमल सुध खोने लगी।
पायडया अपनी जगह पर ही थय-थय नाचने लगा।
औंढया च्च् आच् आच्
कोमल कराही। फिर शक्ति समेट कर वह भी चिल्लाई- आच् आच्
जाँघों के बीच से पानी बह चला। नीचे कीचड हो गया।
पायडया उकडूँ बैठा, कोमल के पेट पर कीचड का लेप दिया।
ठण्डक से कोमल सिहर गई।
उसने हाथ जोडे।
अब नही सहा जाता। वह कराही।
पायडया, तू पांव की तरफ से जनमा है।
फिर भी जीवित बचा।
इसीसे तेरे पाँव में मंत्र है।
कितनी सूओं को तूने मुक्त किया है इस पीडा से।
अब मुझे भी बचा ले।
पायडया स्तब्ध खड़ा रहा। आंखों में पानी।
सामने कोमल वेदना से तडप रही थी।
उसने लम्बी सांस खींची।
उसे वह पहली सू याद आई।
उसे भी ऐसे ही देख रहा था। केवल देखने आया था।
वह सू भी ऐसे ही तड़पी थी।
क्यों, कैसे..... तब कुछ भी नही समझ पाया था वह।
लेकिन उस तडपती सू की कराह के साथ साथ पायडया की लात हलके से उसके पेट पर लगी।
और उसका पिलू बाहर आ गया।



फिर दूसरी बार एक और अटकी हुई सू को उसने लात मारी थी और उसका पिलू भी बाहर आया था।
फिर तीसरी बार...... फिर अनेकों बार।
अब सोच-विचार नही करना पडता है। अटकी हुई, कराहती सू को देख उसकी लात हल्के से उसके पेट पर पडती है और पिलू निकल आता है।
पायडया ने सोचा- क्या यह संभव है कि दूसरा कोई कराह रहा हो, दुख में तडप रहा हो तो देखने वाला बिना कोई हलचल किए चुप देखता रहे।
नही। वह कुछ न कुछ करेगा- सही या गलत।
पायडया ने भी पहली सू के समय कुछ किया था और वह सही हो गया था।
पायडया अपने आपसे बातें कर रहा था।
कोमल ने मुट्ठी भींची।
पायडया ने खडे खडे दोनों हाथ जमीन पर टेक दिए।
आकाश की ओर सिर उठाकर एक बार फिर पुकार- औंढयाच्आच्आच्
फिर दोनों हाथों पर जोर देकर ऐसी छलांग लगाई कि नीचे आते हुए उसके दहिने पैर के तलवे का हल्का थपेड़ा कोमल के पेट पर लगा।
एक बार, दो बार, तीन बार।
उसने नीचे देखा..... चौथी.... ये आखरी बार।
इस लात से भी कोमल का पिलू नही निकला तो मरण......।
कोमल के लिए मरण। पेट फूलकर, रक्त बहाकर, फीकी पडते हुए मरण।
उसे खड़ी उंचाई में गाड़ना पडेगा. मरे हुए पिलू के साथ।
सारे प्राण समेट कर वह चिल्लाया- आओ, आओ।
कोमल की कराह के साथ ही उसने जोर की छलांग लगाई। लात थोड़ी जमकर लगाई।
कोमल की चीख निकल गई।
उसकी जांघें विलग हो गईं।
रक्त पानी के कीच के साथ पिलू का सिर बाहर निकल रहा था।
फिर हाथ, फिर पांव.... फिर ढेर सारा रक्त।
पायडया ढीला पड गया। नीचे बैठता हुआ चिल्लाया-
पिलू निकला, पिलू आया।
उसके शरीर में एक लहर दौड़ गई।
बस्ती के लिए एक और नया जीव।
बाकी सूएँ दौडकर आईं।
उन्मादित होकर पायडया उठा और उनके साथ नाचने लगा।
कोमल ने आंखें खोलीं।
पायडया ने पिलू को देखा। रक्त, पानी के कीच में वह फडफडा रहा था-
खाँस रहा था। छींक कर, उसकी साँस में साँस आई। बालमुठ्ठियाँ भींच गईं। उसके गले से आवाज निकली- टयांच्हांच्। बस्ती में आवाज गूँज गई।
पायडया फिर से थरथराया। उसने झुककर देखा- सू पिलू था।
कोमल की देह में सिहरन दौड़ गई-
मेरा, मेरा पिलू। वह पुटपुटाई।
एक सू ने दांतों से पिलू की नाल काटी। पिलू अपने हाथों में ले लिया।
कोमल का जीवन अब समाप्त होने वाला था..... पिलू का आरंभ हो रहा था।
यही नियम था।
उसने कोमल को थपकी दी।



जा बच्ची। आकाश में चली जा। फिर एक बार नक्षत्र बन जा।
मैं सँभालूंगा यह पिलू भी।
जैसे चांदवी को संभाला है अब तक।
वह वापस मुडा और दौड गया।
औंढया देव के आगे धान रखना था।
चांदवी राह देख रही थी।
कोमल का पिलू....। वह चिल्लाई।
पायडया के पीछे आती सू ने उसे दिखाया।
तीनों झोंपड़ी की ओर चले गये।
कोमल ने तपते सूरज को एक बार देखा। फिर उसकी सुध खो गई। वह वैसी ही पडी रही।
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