Wednesday 23 November 2016

॥ २७॥ फेंगाडया देखता है कई पगडंडियाँ ॥ २७॥

॥ २७॥ फेंगाडया देखता है कई पगडंडियाँ ॥ २७॥
 फेंगाडया आकर अपने पेड के नीचे बैठ गया।
गुफा में लुकडया जखमाया हुआ। उसके पास रुकी हुई लम्बूटांगी।
उसने सिर हिलाया।
इस पेड की जडें देखो- जमीन के नीचे तक धँसी हुई हैं।
पेड चल फिर नही सकता।
लेकिन मुझे दो मजबूत पाँव दिए हैं।
मैं चल फिर लेता हूँ। कम या अधिक।
आज तक रोज चलता चला हूँ।
देवाच् यह हलचल मुझे तूने दी है।
वह सिहर गया।
तूने साँस भी दी है और पाँव की हलचल भी।
जुगने के लिए। शिकार करने के लिए।
वही हलचल तूने वराह को भी दी है, रीछ को, भैंसे को और बंदर को भी।
लेकिन आज की मेरी हलचल अलग थी। वह केवल मेरी थी-- फेगाडया की। किसी वराह या भैंसे की नही।
यह हलचल थी जखमाए लुकडया को उठा लाने की।
यह हलचल थी फेंगाडया के मानसपने की।
यह हलचल कैसी है देवाच्
यह भी पगडंडी की तरह है।
गुफा से जंगल तक कितनी पगडंडियाँ हैं।
उतनी ही हलचलें भी हैं।
एक हलचल है-- पगडंडी है-- नियमों की। वह एक ही पगडंडी है, हर दिन के लिए।
उसी पर चल रहा था आजतक।
साथी को अकेला छोड़ दिया- उसी पगडंडी के कारण।
किसी को दूसरी पगडंडी नही दीखती।
लेकिन आज मैंने देख ली।
मुझे दीखती हैं दूसरी पगडंडियाँ- कई पगडंडियाँ।
उसने फिर सिर हिलाया।
देवाच्
मैं यहाँ पेड के पास बैठा हूँ यह भी एक हलचल, एक पगडंडी है।
गुफा में वापस जाकर पत्थर मार कर लुकडया का सिर फोड दूँ-- वह भी एक पगडंडी है।
भूख सह कर उसको शिकार ला दूँ-- वह भी है।
मैंने नियम की पगडंडी छोड दी।
तो दूसरी कई पगडंडियाँ दीखने लगीं।
इसमें से मेरी सही पगडंडी कौन सी है? तुम्हारी कौन सी?
बापजी होता, तो उसकी कौन सी होती?
फेंगाडया भारी छाती से सोचता रहा।
फेंगाडयाच् तूने आज नियमों की पगडंडी छोड़ दी है।
अब भरमाओ मत। थरथराओ मत।
यह मानसपना, यह छाती की धडधड, उससे निकलती गूँज-- इन्हें छोटा मत समझो।
तुम्हें आज इतनी पगडंडियाँ दीख रही हैं- वे सही हैं।
आज से तुझे, दूसरे आदमियों को कई राहें मिलेंगी।
तू भरमाना मत।
तुझे हलचल किसने दी?
क्या तूने अपने आप?
नही, देव ने।
तो फिर यह नई राह भी देव की-- छाती के आवाज की।
फेंगाडया शांत हुआ।
भूख की तरह ये राहें भी आएंगी।
नए दिन के साथ नई राहें।
फिर फेंगाडया ही क्यों देखता है उन्हें?
दूसरे आदमी क्यों नही देखते?
उसने आकाश की ओर देखा।
बादलों के बीच सूरज बाहर निकल रहा था।
अचानक स्वच्छ प्रकाश फैल गया।
फेंगाडया हँसा।
लम्बूटांगी गुफा के बाहर आई।
तेज तेज चलकर फेंगाडया के पास पहुँची।
उसे इशारा किया।
फेंगाडया एक ही छलांग में उसके पास पहुँचा।



चिल्ला रहा है..... रो रहा है।
फेंगाडया मुडा, जंगल की ओर दौड गया।
उसने कई बेलें तोडीं, पेड की टहनियाँ तोडीं और गुफा में लौटा।
लुकडया जमीन पर अकुला रहा था।
वेदना से भरा चेहरा।
फेंगाडया ने उसका टूटा हुआ पैर जाँचा।
टहनी लगाकर उसे सीधा किया और बेलें लपेट कर मजबूती से बांध दीं।
लुकडया की ग्लानी कम हुई। उसने आंखें खोलीं।
फेंगाडया को देखकर उसका चेहरा हँसा।
फेंगाडया की छाती धडधडाई। हाथ थरथराए।
वह कांपता हाथ उसने लुकडया के माथे पर रखा।
पास खडी लम्बूटांगी गदगदाकर रोने लगी।
फेंगाडया की भी छाती भर आई।
अपार खुशी से वह चिल्लाया ओच्होच्होच्
गुफा थरथराई। जंगल थरथराया।
लम्बूटांगी आवेग से उस पर गिर पडी।

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