Wednesday 23 November 2016

॥ ६०॥ बापजी और पाषाण्या ॥ ६०॥

॥ ६०॥ बापजी और पाषाण्या ॥ ६०॥

बापजी थक गया।
शरीर तप रहा था। एक पैर घिसटते हुए बड़े कष्ट से वह झरने के पास पहुँचा।
ठण्डी धारा में उसने पैर डुबोया।
एक तीव्र वेदना.... सिर से पांव तक।
सारा धीरज समेटकर उसने लाल, पीला पीब हाथों से निचोड़ कर निकाल दिया।
देवाच्। वेदना में वह चिल्लाया- मरने दे मुझे।
फिर संभला।
थोड़े दिन और बापजी। फिर मरना। अभी वह धान-टोली नष्ट करनी है तुझे।
हाँफती सांसों को उसने स्थिर किया।
पीछे से आहट हुई। उसने मुड़कर देखा।
पाषाण्या मंथर गति से चलता हुआ पास आकर बैठ गया।
जय पाषाण्या। बापजी ने कहा।
ये केवल बातें हैं। अब मैं जय नही हूँ। अब जय तू है.... जय लाल्या है।
हाँ। बापजी बुदबुदाया।
मैं मरा नही अभी। फिर भी....।
बापजी ने उसका कंधा थपथपाया।
तू लाल्या की तरह मेरे पीछे क्यों नही आया?
चूक गया तू। लाल्या आगे बढकर मेरे साथ आ गया।
अब लाल्या ही मुखिया......।
पाषाण्या ने सिर हिलाया।
पंगुल्या पर वार किया तुम लोगों ने।
हाँ।
क्या वह काँटे सा गड़ रहा था?
बापजी ने सिर हिलाया। आज टोली संकट में है। उदेती टोली वाले आ रहे हैं। इस समय हमारे सारे लोग पेड की तरह, भैंसे की तरह मजबूत होने चाहिए। लडने को, मरने को।
तभी कल का सूरज दिखेगा।

पंगुल्या किस काम का?
इसलिए उसे मार डालोगे तुम? कल बुढिया को मारोगे। फिर मुझे।
अंच्
अं क्या? पाषाण्या चिल्लाया।
आज एक आदमी की बात नही है। बापजी समझाने के स्वर में बोला। टोली को बचाने की बात है।
आदमी का मरण आ जाय लेकिन टोली का जीवन बचाना होगा।
टोली के लिए। टोली के लिए ही आदमी हैं, सू हैं, पिलू हैं।
पाषाण्या चुप रहा।
उदेती की टोली...... या अपनी टोली।
एक ही बचेगी। तो अपनी बचानी पड़ेगी।
बस.... यही बात है।
पाषाण्या जोर से हंसा। बापजी चौंक गया।
झूठ.... सब झूठ।
लाल्या.... और उसके साथियों ने टोली देखी है।
हाँ उतना सच होगा। वह टोली है। पाषाण्या बुदबुदाया।
लेकिन वह बाई.... वे मंत्र.... वे जुगने वाले रीछ.... शैतान... सब झूठ।
सब झूठ तेरा बनाया हुआ। तू डरा रहा है....।
झूठा डर दिखा रहा है। पाषाण्या चिल्लाया।
बापजी का शरीर तन गया। यह पाषाण्या आड़े आ ही गया।
पाषाण्या अब उन्मादित हो गया था। चिल्लाकर कहता चला गया-- सब कुछ ठीक था यहाँ.... तुम्हारे आने से पहले.... हमारी टोली, हमारे नियम.... हमारा जीवन।
तू आया टोली में, बापजी।
यह खेल खेलने लगा। तूने लाल्या को उकसाया। वह बड़ा हो गया।
दूसरे आदमी जानवर बन गए... जानवर।
तू....तूने ये किया।
बापजी हंसा। पाषाण्या के पास खिसक आया।
मजबूत बाँह के फंदे ने पाषाण्या की गर्दन को जकड़ लिया।
पाषाण्या की आँखें सफेद पड गई.... चेहरा भयभीत। उसका मुँह खुल गया।
फंदा मजबूत था...। उसने प्रतिकार करना चाहा। लेकिन फंदा बापजी का था।
पल, दो पल..... अनेक पल।
पाषाण्या ढीला पडता गया। मुँह से फेन आ गया।
साँस थम गई।
फंदा ढीला हुआ।
लकड़ी की तरह पाषाण्या गिर पडा।
बापजी की छाती धडधडाई।
देवा..... मैं यह खेल खेलने लगा।
और मेरे ही हाथ से एक आदमी मरवाया तूने।
वह बुदबुदाया--
मैंने.... मैंने मारा उसे?
नही। वह मेरे आड़े आया... और मर गया। बस।
बापजी तन गया। बस्ती की ओर चल दिया। लंगडाते हुए।
बस्ती के पास पहुँचकर चिल्लाया-



वे आए थे। वे आए थे। भाग गए। मेरे सामने ही पाषाण्या को मार कर भाग गए।
छाती पीटते हुए वह बैठ गया।
बस्ती पर शोर मच गया। आदमी दौड आए।
पाषाण्या को एक लाठी में लादकर बस्ती पर लाया गया। बापजी ने उसी कहानी को बार बार कहा।
छातियाँ पीटी गईं। चहुं ओर आक्रोश......।
लाल्या अपनी लाठी पेलता हुआ आया-
अब सारे प्रश्न समाप्त।
हम रुके थे। आजतक....। अब नही। अब वाघोबा टोली चुप नही बैठेगी। बहुत सह लिया धानबस्ती के जानवरों को। अब वाघोबा टोली उन्हें नही छोडेगी। अब या तो हम मरेंगे.... या उन्हे मारेंगे।
जय वाघोबा......।
उन्माद छा गया। सब चिल्लाये- जय वाघोबा।
बापजी की आंखे चमकी। वह उठा।
पाषाण्या को यहीं गाडेंगे-- दूर नही।
बापजी संथ स्वर में कहने लगा। सबने गर्दन हिलाई।
इस पेड़ के नीचे गाडेंगे। टोली की रीत जैसा खड़े या लिटाकर नही। बैठाकर।
धानबस्ती से लाया गया हर बली उसे दिखाएंगे।
वह यहाँ बैठकर रोज हमसे मांगता रहेगा- टोली के लिए हमारा मरण। वह हम देंगे।
मैं दूँगा....। बापजी चिल्लाया।
सारे उन्माद में भर गए।
पाषाण्या को पेड़ के नीचे लिटाया था।
बैठाओ उसे....। बापजी ने कहा।
उसे पैर पसारे, पेड के तने से टिकाए गढ्डे में गाड़ा गया।
बापजी आगे आया। उसके सामने की मिट्टी अपने मुँह पर मलते हुए बोला.....
पाषाण्या, मैं मरूँगा.... या मारूँगा। लेकिन उदेती टोली को नष्ट करके ही रहूँगा।
वह वापस मुड़ा। उसके पीछे लम्बी कतार लग गई। लाल्या.... आदमी..... सू.... पिलू सब।
सबसे अन्त में बुढिया आई। मिट्टी को अपने मुँह पर मलते हुए बोली-- जय वाघोबा।
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