॥ ४३॥ बापजी का नया खेल ॥
४३॥
एक कातल पर स्तब्ध बैठा
बापजी एकटक दूर देख रहा था।
सामने बस्ती के झोंपडें,
बाहर आदमी, सू, पिलू, अलाव.......
बातें, हंसना,
नाचना........।
एक बड़ा भैंसा भूना जा रहा
था। साथ में कुछ छोटे खरगोश और हिरन भी।
बापजी सुखियाया।
यह केवल टोली में ही संभव
है।
उसने चारों ओर आंखें दौडाईं।
कई आदमी उसे घेरकर उकडूं
बैठे थे। बाट जोह रहे कि वह कुछ कहेगा। उनमे पाषाण्या था, लाल्या था।
बापजी हंसा, उसने आंखें मूंद
लीं।
कितना अच्छा लग रहा है यह
'कुछ' होना।
किसी के लिए, आदमियों के लिए
वह 'कुछ' है।
यों 'उपर' बैठना, और उनका
'नीचे' बैठना।
वो 'नीचे' हैं। मैं 'उपर'।
भले चंगे आदमी। लेकिन आज वे
नीचे हैं और बापजी ऊपर।
वे जय कहते हैं, बापजी सिर
हिलाता है।
आज इतने ही हैं। कल और
होंगे- एक और टोली।
अकेले मानुस के लिए यह सुख
नही है। टोली में ही मिल सकता है यह सुख। इसी सुख के लिए फिर टोली में नियम।
मुखिया कहेगा वह नियम।
बापजी ने आँख खोली। हाथ
उठाकर चिल्लाया- बाघोबा दीख गया।
सारे चिल्लाए- जय वाघोबाच्।
लाल्या उठ गया। लाठी पैलता
हुआ आगे आया।
एक ने कहा- हमें नही दीखा
वाघोबा।
लाल्या पगला गया- चूप। बापजी
को दिखा।
बापजी हंसा- जाने दो। यह
मौका है मरण का।
टोली के लिए मरने का।
लाल्या तन गया। फिर
चिल्लाया- आज तक टोली ने तुम्हें शिकार दी, बस्ती दी।
आज तुम्हें टोली के लिए मरण
देना होगा।
जय वाघोबाच्।
सब चिल्लाए- जय वाघोबा,
धानबस्ती को मरण।
बापजी उठा। एक ओर चल दिया।
दूर से देखता रहा।
लाल्या गरज रहा था। लोग
चिल्लाकर उसका साथ दे रहे थे।
एक झोंपडी के पास आकर बापजी
बैठ गया। वहीं से देखता रहा।
अचानक सामने पंगुल्या।
बापजी ने पथरीली आंखों से
उसे देखा।
बापजी का वह देखना पंगुल्या
को थर्रा गया।
कांपते हुए उसके सामने उकडूं
बैठ गया। दोनों चुप।
मुझे डर लगता है। पंगुल्या
बुदबुदाया- लाल्या से।
बापजी ढीला पड गया। पंगुल्या
की आंखों में गहरे झांकते हुए हंसा।
फिर पंगुल्या को पास खींच कर
कहा-
माथा है तेरा, आंख है, कान
है.... सब कुछ देख सुन कर विचार करता है तू.....। फिर डर क्यों?
मेरे साथ रह। लेकिन चुप्पी
रखकर, बस।
देखो, सुनो लेकिन प्रश्न मत
पूछो।
पंगुल्या भी ढीला हुआ।
पूछा--
तुझे क्या चाहिए?
बापजी चुप्प रहा।
क्या धानबस्ती सच्ची है?
बापजी ने सिर हिलाया।
बाई?
हाँ।
उसके मंत्र?
बापजी हंसा- मैंने कहा तुझे-
प्रश्न मत पूछना।
पंगुल्या ने पांव फैला लिए।
पूछा-
क्या धान भी सच्चा है?
हां।
उदेती की ओर?
हां।
लाल्या को, इन आदमियों को
तुम झूठ क्यों बता रहे हो?
बापजी का चेहरा पत्थर हो
गया। उसने पंगुल्या की गर्दन पकड़ ली।
पंगुल्या गोंगों चिल्लाने
लगा।
कहा ना प्रश्न मत पूछना।
बापजी ने पथरीली आवाज में कहा।
पंगुल्या ने सिर हिलाया।
बापजी ने पकड़ ढीली कर दी।
जा, जाकर बता लाल्या को कि
बापजी झूठ कहता है।
देख, वो सुनता है क्या तेरी।
देख.... जा।
पंगुल्या ने आंखें झुका लीं।
बापजी हंसा।
नहीं कहेगा तू। तुझमें समझ
है। लेकिन अपने प्रश्नों को संभालो।
मुझ से बचकर रहो..... जाओ।
थरथराता पंगुल्या चला गया।
बापजी फिर ढीला हुआ।
मैं झूठ क्यों बताता हूँ?
अरे, देव ने यह सारी टोली
मुझे दी है।
देखो......। धानबस्ती को
मरण, मरण, मरण कहकर नाच रहे हैं सब।
इन्हें छोडने वाला हूँ मैं
धानबस्ती पर।
मरण का एक नया खेल खेलेगा यह
बापजी। आजतक ऐसा खेल नही था। अब होगा।
दो वराहों को लड़ते देखा है?
दोनों टकटराते हैं। भिडते हैं। दोनों जखमी होते हैं। दोनों मर जाते हैं।
वैसे ही यह दोनों टोलियाँ
भिडेंगी।
दोनों नष्ट होंगी।
बलि के लिए लाया बापजी
जीतेगा।
बापजी ही जीतेगा।
बापजी थक गया।
झोंपडी में घुसकर करवट लेकर
सो रहा।
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