॥ ५२॥ अकेला झिंग्या ॥ ५२॥
झिंग्या ग्लानी से, थकान से गिर पड़ा।
पेट में भूख।
पेड में खस खस की आवाज आई। झिंग्या ने आंखें खोलीं।
सामने एक तेंदुआ।
तेंदुए ने दांत बिचकाए।
खींस निपोरी।
झिंग्या ने चीखने का प्रयास किया। उसका छोटा शरीर काँपने लगा।
उठकर वह भागा। लेकिन चार डग चलकर फिर गिर गया।
तेंदुए ने एक विचित्र आवाज निकाली।
झाड़ी से दो और तेंदुए निकल कर बाहर आये।
तीनों आक्रामक स्थिति में।
झिंग्या ग्लानी में पड़ा रहा।
एक तेंदुआ उसकी गर्दन पर टूट पडा।
गर्दन की नली फोड़ दी।
क्षीण आवाज में झिंग्या चीखा।
दूसरे तेंदुए ने उसे पलट दिया और पेट को चबाने लगा।
तीसरा चेहरे को।
आपस में थोड़ा गुरगुराना। एक दूसरे को दांत दिखाना।
फिर तीनों में समझौता।
बँटवारे के लिये।
दांत गाड़े गये। रक्त का स्वाद लेने लगे।
झिंग्या की अन्तिम हिचकी निकली।
पेड़ पर बंदरों ने किच किच मचाई।
लेकिन एक तेंदुए ने नाक चढाकर देखा तो बंदर दूर भाग गये।
गुरगुराते हुए तेंदुए झपट पड़े।
-------------------------------------------------
No comments:
Post a Comment