॥ २२॥ बुढिया उसकाए पाषाण्या
को ॥ २२॥
बुढिया किनारे पर प्रतीक्षा
कर रही थी।
पाषाण्या झरने में डुबकी लगा
कर बाहर आया।
तेजी से चलने को उद्यत।
बुढिया ने रोका -- पंगुल्या
को मार डालो पाषाण्या !
वह शैतान का पिलू है। मंत्र
फेंकता है।
गडे मृत देह उखाडता है।
कैसे कहती है तू?
हाँ, सही है। उसने फाटया का
गड्ढा खोद डाला --
हड्डियाँ चुनने के लिये।
हाँ मिलती है शिकार --
बुढिया रुक रुक बोली --
लेकिन फाटया पर भी उसी ने
मंत्र फेंका था।
नहीं तो क्यों मरता
फाटया-- बुढिया दाँत पीकर चिल्लाई।
अच्छा था। न किसी जानवर से
टक्कर, न कोई जखम।
एक दिन तप गया, उलटी की,
हगा।
मरने लगा।
इसी पंगुल्याने मंत्र फेंककर
मारा उसे।
अब तो उसकी हड्डियाँ चुन
लाया है।
मरते हुए फाटया तडफडा रहा
था।
उसकी मृतात्मा हड्डियों में
चिपकी है।
पाषाण्या अनसुनी कर आगे जाने
लगा।
बुढिया पीछे दौड़ी --
पंगुल्या को मार दो।
इस बस्ती पर वह पहला पंगु
मनुष्य है। पंगु, जखमी मनुष्यों को मार डालने का नियम है। तभी बस्ती टिकेगी।
पाषाण्या थम गया।
वह पंगु है। लेकिन केवल
शिकार नही खाता। वह गिनकर बताता है नचंदी का दिन।
वह शिकार पर मंत्र डालता है।
उसे मरण नही है। वह यहीं
रहेगा।
पाषाण्या तेज चाल से निकल
गया।
बुढिया निराश होकर पत्थर पर
बैठ गई।
ये वाघोबा बस्ती की नई
संतान।
इतनी कम सोचनेवाली।
पंगु मनुष्य को मार डालने की
जगह शिकार देते हैं। शिकार ढूँढने से पहले मंत्र ढूँढते हैं।
इस पाषाण्या के पीछे पीछे यह
पंगुल्या जन्मा था।
इसी से इस पर इतना प्रेम।
नही तो क्या कोई पंगु किसी
टोली में रख्खा जा सकता है?
वह थूकी।
आज पंगु, फिर बीमार, फिर
जखमी....!
सबको रखेंगे।
वे सारे मस्ती में सोए
रहेंगे।
ये शिकार करेंगे- वे खाएँगे।
कब तक?
अब पाषाण्या को ही मरना
चाहिये।
लाल्या को होना चाहिये टोली
प्रमुख।
तभी वाघोबा बस्ती बढेगी। वह
बुदबुदाई।
एक बंदर धप्प से उसके सामने
कूदा। नाक फुलाकर उसे डराता हुआ भाग गया।
थरथराई बुढिया उठी और बस्ती
को चल दी।
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