॥ ४२॥ धानबस्ती में कोमल पर फूलों की बरसात ॥ ४२॥
देखते देखते ढेरों फूल इकट्ठा किए गए। बाई के इशारे पर कोमल आगे आई।
धान, फूल और सू........ कोमल बुदबुदाई। तीनों किसी सू के पिलू की तरह। सू पिलू। तीनों जनमते हैं, फूलते हैं और सिर झुकाकर जमीन में सो जाते हैं।
धानबस्ती के सूएँ इकट्ठी हुईं। रीति के अनुसार कोमल आगे आई। कातल पर बैठ गई। हाथ में उसका पिलू था। उसने दोनों आंखे बंद की।
पिलू थान पी रहा था।
सर्वत्र शांती।
पायडया आगे आया, बाई को हाथ से पकड़कर आगे ले गया। बाई कोमल के पास बैठ गई। पायडया खड़ा था। आकाश में पूरा चंद्रबिम्ब प्रकाशित था। चांदनी छिटक रही थी।
आदमी थोड़ी दूर पर गोल बनाकर बैठे थे।
वे भी धानबस्ती के काम आ रहे
हैं।
औंढया ने यों ही नही बनाया
है आदमी को।
सूरज उपर आ गया। आकाश में
भरे बादल भी थे। लेकिन अभी वर्षा नही थी।
गिरते पड़ते कोमल उठी। पैर
खींचती हुई बस्ती की ओर चलने लगी।
चांदवी इधर उधर घूम रही थी।
उसी ने कोमल को देखा।
वह चिल्लाई- कोमल।
बाई चौंक गई। पलभर वह अपने
आप पर विश्र्वास नही कर पाई। कोमल पिलू जनकर भी जीवित रही? उसने आनंद से अपनी छाती
पीटी-- औंढया की कृपा।
पायडया ने भी चांदवी की हांक
सुनी। वह दौड़ आया। सीधा कोमल की तरफ।
कोमल को उठाकर उसने कंधे पर
डाल लिया और दौड़ने लगा बाई की तरफ।
सारे जमा हो गए। आनन्द से
छाती पीटने लगे।
पायडया के पीछे दौड़ने लगे।
बाई ने अब नाचना शुरू किया।
गोल गोल......।
ताली बजा कर।
पायडया ने कोमल को नीचे उतार
दिया। इतने श्रम से वह हांफने लगी। बेसुध होने लगी।
बाई कोमल के पास आकर बैठ गई।
अंगुलियों से कोमल का थान दबाया। दूध निकल आया।
बाई चिल्लाकर बोली- पिलू
लाना।
चांदवी पिलू लेकर आई। वह नई
नवेली सू पिलू आंखें बंद किए मुट्ठी चूस रही थी।
बाई ने पिलू को लिया। संभाल
कर उसे कोमल की छाती पर औंधा रख दिया।
कोमल सुध में आई। पिलू के
हाथ पांव की हलचल से उसे सुख होने लगा।
पिलू ने सिर घुमाया। इधर उधर
ढूँढ कर थान को पा ही लिया। उसे चूसने लगा। अधाशी(?) की तरह।
आनंद से सारे झूमने लगे।
कोमल को घेर कर नाचने लगे।
बाई पालथी मारकर पिलू को
संभाले बैठी रही।
कोमल ने अतीव सुख में भरकर
उसे देखा।
बाई ने सिर हिलाया।
पिलू जनना, जनकर जीवित रहना,
पिलू को अपने थान से दूध पिलाना..... यह नया अनुभव। कोमल ने बाई को देखा। बाई यह
कर चुकी है। उसे पता है ये सब।
आगे बढकर कोमल को चूमते हुए
बाई की आवाज रुंध गई- मेरी पिलू।
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