॥ ३९॥ धानबस्ती पर पायडया और चांदवी ॥ ३९॥
कोमल के लिए मैं धान ले जाऊँगी। चांदवी ने निश्चय पूर्वक कहा।
पायडया ने गर्दन हिलाई- नही अब कोमल के लिए धान नही।
क्यों? चांदवी ने तमक कर पूछा।
पिलू जनने के बाद दो दिन और दो रात बीती। उब उसे उठ कर अपनी भूख आप मिटानी होगी।
चांदवी का चेहरा क्रोध से तमतमा गया।
अपने आप? वाच्ह, अब उसके लिए अपने आप? उसका पीलू उससे छीन कर निकाल लिया तुमने। बस्ती के लिए। तब कहा तुमने उसका पिलू उसके लिए?
या उसने कहा कि मेरा पिलू मेरे लिए। मैं नही देती बस्ती के लिए।
अब वह मरने लगी तो उसके लिए कहते हो अपने आप?
किसने बनाए ये नियम? किसने?
पायडया अवाक् उसकी ओर देखता रहा।
औंढयाच् वह चिल्लाया। क्या उत्तर दूँ इसे?
वह अपना माथा पीटने लगा।
चांदवी ने आगे बढकर अपने दोनों हाथ उसके गले में डाल दिए।
पायडया। उसने मधुर स्वर में कहा।
आँच्......
तू भी यही सोचता है ना?
हाँ।
तो फिर उठो। चलकर कोमल को
धान दे आते हैं।
पायडया का शरीर थरथरा गया।
नही।
लेकिन क्यों?
नियम तोड़ा तो बस्ती छोड़नी
पड़ेगी। बस्ती छोडना मेरे बस का नही। तुम्हारे भी नही।
चांदवी मुरझा गई।
फिर सहसा उत्साह से बोली- चल
पायडया, तू मैं और कोमल यह बस्ती छोड़कर भाग चलते हैं।
अरी, बस्ती छोड़ेगी तो कोमल
को खाने के लिए धान कैसे देगी तू?
अपनी मूर्खता पर झल्ला कर
चांदवी चुप हो गई। फिर आवेग में भरकर बोली-
चल बाई के पास। उसे कहते
हैं। वह मान जाएगी।
पायडया ने गर्दन हिलाई।
पुराना नियम तोड़ना उसके भी
बस का नही। मेरी पिलू। ये नियम ऐसे ही नही बनाए हैं। जो सू बचेगी उसे अपनी शिकार
पर ही जीवन बचाना होगा।
वह रुका। फिर चांदवी का
चेहरा देखकर हंसा।
पगली.....। चल आ तुझे कहानी
सुनाता हूँ।
चांदवी का चेहरा खिल गया।
पायडया..... वह तारों की
कहानी सुना ना।
पायडया ने दोनों पांव फैलाए।
हाथों से घुटने दबाए।
चांदनी आगे बढी। पायडया के
घुटने टीपने लगी। पायडया ने उसे अपने पास खींच लिया। उसका सिर गोद में रखकर थपकी
देने लगा।
रात घिरने चली थी।
पायडया ने कहानी सुनाई- आकाश
में देव था। कौन देव?
औंढया......। चांदवी ने कहा।
एक दिन ऐसे ही पांव फैलाए
अपने घुटने दबा रहा था। अकेला..... बौराया हुआ।
साथ में कोई चांदवी भी नही
जो घुटने टीप दे। किससे बतियाता?
नक्षत्र बहुत थे। लेकिन
अकेले अकेले। निर्जीव। गूँगे। कोई बोलने वाला नही।
सूरज था, चंद्रमा था लेकिन
वह भी गूँगे। और बहुत दूर......।
पेड भी थे और शिलाएँ भी।
लेकिन साथ के लिए, बोलने के
लिए, कोई नही।
फिर औंढया ने छलांग लगाई।
धरती पर आ गया। मिट्टी उठाकर एक सू बनाई। वही थी पहली सू। औंढया ने फूंक मारी। सू
जी उठी। हंसने लगी।
औंढया ने सू से पूछा-
पिलू जनोगी? इन अकेलेपन से
भरे हुए बौराए नक्षत्रों को साथी दोगी?
सू ने हाँ भरी।
वह बोला- देख हां।
उसी में तेरा मरण भी होगा।
तू फिर नक्षत्र बन जाएगी।
सू फिर से हंसी। कहा- ठीक
है। लेकिन मुझे अपने साथ आदमी चाहिए।
औंढया चला गया। फिर उसने सू
के पास आदमी को भेज दिया।
शिकार करने के लिए। खेलने,
जुगने के लिए। उसे अकेलापन नही लगे सो बतियाने के लिए।
पायडया ने कहानी रोक दी।
कईयों को कई बार सुनाई हुई
कहानी। कहते कहते वही रंग जाता था। हर बार नई कहानी जी लेता था।
चांदवी के हुंकारे बंद हो गए
थे।
पायडया ने देखा। वह सो चुकी
थी।
पायडया ने धीरे से उसका सिर
अपनी गोद से हटाया और धरती पर रख दिया।
एक मीठी सीटी उसके होठों से
निकली आर हवा पर तैरने लगी।
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