॥ ८४॥ पंगुल्या प्रेत खोदता है ॥ ८४॥
चंद्रमा आकाश में ठीक बीच में था। उसका मंद प्रकाश फैला था।
पंगुल्या ने लाठी का सिरा टटोला। वह नुकीला था।
अकेले के लिए खड़ा गाड़ा हुआ लुकडया गड्ढे से निकालना कठिन था।
पंगुल्या के लिए और भी कठिन।
लेकिन उसने वेग से गडढा खोदना आरंभ किया।
दुर्गन्ध का एक भपकारा आया। थूककर फिर खोदने लगा।
मिट्टी ने आधे से अधिक मांस लील लिया था।
बडी देर के बाद उसने लुकडया की मृत देह को ऊपर खींचा।
प्रेत की एक आंख अभी वैसी ही थी। पंगुल्या थर्रा गया। उसे लगा मानों लुकडया अब भी उसे देख रहा है।
झटपट उसने पत्थर से कोंचकर जांघ की हड्डी पर बचा हुआ मांस दूर किया।
घुटने के नीचे दो हड्डियाँ थीं। एक लम्बी, एक चपटी। वे दोनों टूटी नही थीं। उसने वे दोनों फेंक दीं। जांघ की हड्डी उठाकर रख ली।
मृत शरीर को फिर से खड्ढे में ढकेलकर वह तेजी से मिट्टी लोटने लगा।
काम हो गया।
लुकडया की जांघ की हड्डी लेकर पंगुल्या वापस चला।
चारों ओर शांती। अब भोर होने चली थी।
उसे लगा आज की रात मंत्रचढी रात है।
एक कातल पर बैठ गया। पास में बहते झरने के पानी में उसने हड्डी धोई।
फिर उसे उठाकर भरपूर गौर से देखा।
हड्डी में एक जगह उबड खाबड गुठली सी बन गई थी।
उससे दोनों ओर निकलने वाले दोनों भाग बिल्कुल सीधी रेखा में थे।
दूसरी जाँघ की हड्डी टूटी नही थी। वह एक सीध में थी।
पंगुल्या ने गुठली वाले हिस्से को सूँघा। उसे अपने गाल पर भी फेरा।
दोनों सिरे पकडकर हड्डी को झुकाने का प्रयास किया।
अंच् हंच् । गुठली मजबूत थी। जैसा फेंगाडया।
दोनों टूटे हुए टुकडों को जोडने वाली मजबूत गुठली।
तुझे पता नही फेंगाडया। वह
बुदबुदाया।
तेरे ही कारण पहली बार किसी
आदमी की टूटी हुई हड्डी जुडी है।
पंगुल्या..... अब कुछ ही
दिनों की बात है।
तू मरेगा थोड़े दिनों में।
फेंगाडया, उंचाडी, सोटया,
बाई........।
यह सारी बस्ती मरेगी।
चारों ओर प्रेत बिछेंगे। गीध
उनका मांस नोच कर खाएंगे।
और साफ, चमकीली हड्डियाँ
पीछे छोड जायेंगे। वे सारी या तो अटूटी होंगी या टूटी हुई।
लेकिन टूटकर फिर भरी हुई यही
एक हड्डी होगी-- गुठली वाली।
ऋतु बीतेंगे। कई ऋतु.....
जितनी गिनती पंगुल्या को भी नही आती उतने ऋतु।
नए आदमी जनमेंगे।
नई बस्ती बनेगी।
पंगुल्या की तरह हड्डियों को
समझने वाला कोई होगा।
वह यह हड्डी देखेगा।
कहेगा- यहाँ कोई एक फेंगाडया
था।
एक था.... फेंगाडया।
उसने पहली बार एक हड्डी टूटे
आदमी को जिलाया।
शिकार लाकर दी। पानी दिया।
उसकी टूटी हड्डी को जुडने के
लिए समय दिया। ताकद दी।
क्या कहेगा ऐसा? क्या उसे
समझ में आएगा कि हड्डी जुटने के लिए एक फेंगाडया होना चाहिए?
पंगुल्या अपने आप में हंसा।
पैर घिसटता हुआ झोंपड़ी की ओर चल दिया।
हाथ में हड्डी लिए हुए। अपनी
ही खुशी में। अचानक थमक गया। डर गया..... सामने लम्बूटांगी खडी थी।
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