॥ ७६॥ फेंगाडया और सोटया ॥ ७६॥
लाल्या की टोली में दो गुट बनाए गए।
एक गुट शिकार के लिये जाने लगा। शिकार लाकर टोली की नई बस्ती पर रखने लगा। वहाँ लाल्या,
बापजी राह देख रहे थे।
शिकार से लौटने वाले गुट ने कंधों पर सूअर लाद रखा था और तेज चाल से बस्ती को आ रहे थे।
सर्वत्र अंधेरा।
जंगल से उनके वापस आने के रास्ते पर फेंगाडया ने अपने आदमियों को छिपा रखा था।
फेंगाडया ने हाथ उठाकर इशारा किया।
उसके आदमियों ने वाघोबा टोली के चारों आदमियों को घेर लिया और चिल्लाये-- जय औंढया।
लाल्या के आदमियों ने सूअर नीचे फेंक दिया और अपनी लाठियाँ उठा लीं।
अंधेरे में ही लाठी से लाठी टकराने लगी। आवाज....., गर्जना..... कहीं आक्रोश।
फेंगाडया ने आवाज लगाई- पीछे।
उसके आदमी भाग निकले। सब से आगे फेंगाडया। उसकी दहिनी बाँह पर खरोंचे।
सूअर को लेकर हाँफते हुए वे पहले मोड़ तक आये और अपने साथियों को देखा।
दो कम थे।
फेंगाडया ने गर्दन हिलाई। चलो-- वह चिल्लाया।
सारे दौड़ते हुए चढाई चढने लगे।
सोटया और लकुटया उनकी राह देख रहे थे।
सोटया आगे आया।
फेंगाडया चिल्लाया- जय सोटया।
सोटया ने फेंगाडया को गले लगा लिया।
फेंगाडया और उसके साथी
धानबस्ती जाने लगे।
सोटया और लकुटया पीछे रुके
रहे।
लकुटया ने सोटया के कंधे पकड़
कर उसे झकझोर दिया।
वह फेंगाडया तुझे जय सोटया
कहने लगा और तू उसी में खुश?
सोटया ने पथरीली आँखों से
लकुटया को देखा।
वह थूका। फिर लकुटया से
बोला-
तू ही भरमा रहा है।
कोमल अगली बाई है। जिसे वह
बुलाएगी वही उसके साथ जुगेगा। फेंगाडया भी उसके बुलाने पर ही जाता
है।
नियम के अनुसार।
तुम्हें बुलाए तो तुम भी
जाना।
लकुटया की आँखों में अंगार
जलने लगे।
यह कल का आया..... आज प्रमुख
बन रहा है।
सोटया ने उसे टोका-
फेंगाडया के पास शक्ति है।
तेरे-मेरे से भी अधिक।
वह अकेला जिया हुआ है जंगल
में।
यों ही नही बाई ने उसे
बुलाया बस्ती में।
सोटया अपनी लाठी तौलते हुए
घूमता रहा--
वह तुम्हारी सोच है नींद में
उसके सिर में पत्थर मारने की.....।
वह सारा तेरा भरमाना है।
समझा?
मैं उसमें तेरे साथ नही हूँ।
और यदि वैसा कुछ हुआ तो मैं देख लूँगा तुझे।
लकुटया तन गया। अपनी लाठी
लेकर दूर चला गया।
अकेला ही नीचे की बस्ती को
देखता रहा।
सोटया चल दिया बस्ती की ओर।
फेंगाडया के पीछे।
-------------------------------------------------
No comments:
Post a Comment