॥ ९४॥ आखिरी लड़ाई ॥ ९४॥
आखिरी हमला जल्दी ही होने वाला है। फेंगाडया बुदबुदाया। उसने नीचे देख। दहिनी ओर- गहरी घाटी फैली थी। बारिश और धुध से दिन में भी सब कुछ धुंधलाया था।
बस्ती तक नही दीख रही थी। कोमल, पंगुल्या दीखना तो दूर।
बाईं ओर मोड से उतराई में जाने वाला रास्ता। नीचे एक सिकुड़ी सी पगडंडी। एक बार एक ही आदमी ऊपर आ सकता है।
पगडंडी पर लाल्या के आदमी का पहरा।
उनकी हलचल का भान हो रहा था।
फेंगाडया ने अपने आदमियों को पेडों के पीछे छुपाया हुआ था। हरेक के हाथ में वह नया हथियार- पंगुल्या
का दिया हुआ।
फेंगाडया ने हाथ में पकड़ी हड्डी को देखा। अर्धचंद्र के आकार की हड्डी चमचमा रही थी। भैंसे के छाती की हड्डी। उसने अपने पास जमा किये पत्थरों के ढेर को हाथ से छुआ।
उन्हें आगे आने देना। एकदम पास। तब मारना। तभी मिलेगा यश। उसने कल सबको समझाया था--
बिल्कुल भी घबराना नही है। ठीक समय आने से पहले एक भी पत्थर नही चलेगा। मेरे हाथ को देखना और मेरी हाँक को सुनना। तब तक चाहे जो भी हो, हरेक हाथ रोक कर रहेगा।
लेकिन एक बार मेरी हाँक सुनी, कि फिर कोई नहीं रुकेगा। साँस तक नही लेगा। एक के बाद एक पत्थर बरसाते रखना है जबतक एक ढेर के सारे पत्थर खतम न हो जायें। फिर मेरी दूसरी गर्जना तक हाथ रोकना है। फिर तीसरी।
वैसे हम और ढेर भी तैयार रखेंगे।
लेकिन मुझे नही लगता कि उनकी जरूरत पडेगी।
याद रखना कि नीचे बाई, सारी सू, सारी बस्ती हमारी राह देख रही हैं।
सारी सूचनाएँ उसने दी थीं। अब घड़ी आई थी उनके पालन की।
फेंगाडया थोड़ा सा खुले में था।
बाकी सारे छिपे थे पेड़ों के पीछे। न दीखते हुए।
वह थोड़ा और आगे आया।
फिर वापस अपने पत्थरों के ढेर के पास।
लाल्या के गुट ने उसकी हलचल को देख ही लिया।
अकेला?
लाल्या ने ध्यान देकर देखा।
हाँ, अकेला ही तो।
लाल्या खुशी से पागल हो गया।
अब चलेंगे। वह चिल्लाया- जय
वाघोबा। दिशाएँ गर्जाते हुए उसके आदमी लाठियाँ लेकर चढने लगे।
नीचे के मोड से कूदते
फांदते, लम्बे डग भरते, लाठियाँ भाँजते।
फेंगाडया अब अपने ढेर के पास
सजग खड़ा था। सारी नसें तनी हुईं।
अंतिम बार उसने दहिनी ओर
धुंध के नीचे छिपी घाटी को देखा। वहाँ कोमल, कई पिलू, पूरी बस्ती, असहाय सी दीख
रही थीं।
देवा। मेरी छाती में यह आवाज
तूने ही दी। लुकडया को उठा लाने के लिये तूने ही कहा।
धानबस्ती तक तू ही ले आया।
यह हथियार भी तूने ही दिया।
अब यश भी तू ही देना।
पूरी शक्ति से वह गर्जना
करने वाला था। लेकिन रुक गया।
अभी और आगे आने दो। उनके
सारे आदमी ऊपर तक आ जाने दो। उसने अपने आपको डाँट लगाई।
भरमाओ मत फेंगाडया। बिन सोचे
विचारे हडबडी मत दिखाओ।
सामने कुछ ही अंतर पर आकर
लाल्या थमक गया। कोई आगे क्यों नही आता।
थोड़ी सी शंका उसे हुई। लेकिन
उसके आदमी अब अपने उन्माद में काफी आगे आ गये थे।
जय वाघोबा की गर्जना चारों
ओर गूँज गई।
कल रात बापजी के पास पहरा
देने वाला वह आदमी कूद गया। सबसे आगे। उसे अब कुछ भी नहीं दीख
रहा था। हाथ उंचा उठाकर उसे
रुकने के लिये कहने वाला लाल्या भी नही।
उसे दीख रहा था बापजी का
दिखाया हुआ अकेलापन। टोली के न रहने पर आने वाला अकेलापन।
पगलाया सा वह आगे बढता रहा
उसके पीछे बाकी अनेक।
लाल्या भी अब आगे आ गया।
उसकी शंका अभी थमी नही थी।
फेंगाडया से कुछ ही कदमों पर
वे पहुँच गये।
आब तक फेंगाडया बिना हलचल
किये स्तब्ध था। अगला क्षण उसका था।
फेंगाडया ने हाथ की हड्डी को
खींचा और निशाना लगाते हुए सप्प से छोड़ दिया। साथ ही उसने गर्जना की होच्होच्होच्
.....
पेड़ों के पीछे से सटासट
पत्थर बरसने लगे। चीखें उठने लगीं। सामने से आने वाले आदमी पत्थरों की मार से
अकुला गए। गिरने पड़ने लगे।
एक पत्थर लाल्या की आँख में
लगा।
चक्कर खाकर वह नीचे गिरा।
ग्लानि से बेसुध हो गया।
उसके आदमी भयचकित स्तब्ध खडे
रहे।
पीछे संकरा रास्ता।
सामने से बारिश और धुंध।
उसमें ने दीखने वालों से
हाथों से सटासट बरसते पत्थर।
लाल्या के आदमी मुड़े और उसे
रौंदते हुए पीछे भागने लगे।
पत्थर रुक गये।
संकरे मोड़ तक पहुँचे आदमियों
के पाँव भी रुक गये।
लाल्या किसी तरह उठकर उनके
पा पहुँचा। उतरने से पहले एक बार पीछे मुड कर देखा।
फेंगाडया और उसके चार साथी
सामने मैदान में आकर नाच रहे थे।
उसके देखते ही वे रुक गये।
पीछे हटने लगे।
लाल्या मोड़ से आगे अपने
आदमियों में आ मिला।
फेंगाडया ने इशारा किया।
उसके आदमी अपने अपने ढेर के पास चले गये। राह देखने लगे।
पत्थर कहाँ से आये? लाल्या
के एक आदमी ने पूछा।
बापजी के पास पहरा देने वाला
आदमी थरथराते हुए बोला-
शैतान! बापजी कहता ही था--
वह बाई। उसे मंत्र। उसे वश में
हैं शैतान के मंत्र।
उसी ने पत्थरों में जीव भर
दिया। उन्हें उड़ते पक्षी बना दिया। वे आकर हम पर बरसने लगे।
लाल्या आगे आया। गाल पर बहते
रक्त को पोंछते हुए बोला-
अरे भयभीतों। उनके केवल चार
आदमी हैं।
मैंने अपनी आँखों से देखा
है। केवल चार। पत्थरों के बीच से निकल चलो और मार डालो उन्हें।
फिर जय हमारी ही होगी। चलो।
जय वाघोबाच्
वह मुडा। लम्बी कुलांचे भरता
फिर से ऊपर चढने लगा।
केवल चार आदमी उसके पीछे
आये।
बाकी काँपते हुए दूर ही रूके
रहे।
लाल्या फिर भी आगे ही बढा जा
रहा था।
अब कुछ और लोग भी साथ हो
लिये।
फेंगाडया ने लाल्या को एकदम
आगे तक आने दिया।
दो छलांगों के अंतर पर।
लाल्या के पीछे उसके आदमी
भी।
फेंगाडया ने सन्न से पत्थर
फेंकते हुए गर्जना की-
होच्होच्च्
चारों दिशाओं से फिर से
पत्थर बरसे।
रक्त में लथपथ कपाल। जखमी
अंग। कितने नीचे गिरे। कुछ उठे। भागे।
लाल्या भी गिरता पडता भागता
रहा। नीचे जाकर मोड पर ओझल हो गया।
एक घायल पडा था। उसने कहा-
अपने सभी आदमी भाग गये।
अकेले अकेले।
लाल्या ने लाठी उठाई और
तड़ाक् से चला दी। एक ही वार में वह आदमी मर गया।
जानवर। लाल्या उस पर थूका।
ग्लानी से पेड़ के नीचे लेट
गया।
कपाल पर हुई जखम से रक्त की
धार बह चली।
लाल्या को वहाँ ऐसे पड़ा देख
बचे आदमियों का धीरज टूट गया।
वे दौड़ते हुए उतराई से नीचे
भागने लगे।
बहुत समय बीता।
अब स्तब्धता ही बस रही थी।
केवल कडकती बिजलियाँ, बारिश,
सन् सन् हवा।
फेंगाडया को विश्र्वास नही
हो रहा था।
कोई भी क्यों नही आ रहा?
सच या झूठ? की सारे भाग गये?
पेड़ों के पीछे छिपे साथी
बाहर आये।
चेहरे हर्षित। गये। भाग गये।
फेंगाडया ने गर्दन हिलाई।
कुछ पत्थर उठाकर हाथ में ले लिये।
वह उतराई पर नीचे जाने लगा।
एक को अपने से आगे रखकर।
सोटया को इशारे से बुलाकर
उसने पहरे पर बिठाया।
फेंगाडया और उसका साथी तेजी
से उतरने लगे।
झाडियों में पत्थर मारते
हुए। सावधान होकर।
मोड़ आ गया। कोई भी सामने नही
आया।
फेंगाडया अचानक थमक गया।
बारिश और धुंध में उनकी
आँखों ने पेड़ के नीचे पडे लाल्या को देखा।
यही था दोनों आक्रमाणों में
सबसे आगे। यही होगा उनका मुखिया। चीते की तरह दबे पैरों से फेंगाडया धीरे धीरे आगे
बढा।
लाल्या ग्लानी में था। मंद
श्र्वास और वेदना का कराहना। बस इतनी सी हलचल।
फेंगाडया आगे बढा।
जमीन पर पड़ी लाल्या की लाठी
को उठा लिया। झटके से लाठी घुमाकर लाल्या के सिर पर दे मारी।
फटाक् से खोपडी टूट गई।
अंदर से माँस निकल कर बाहर झूलने लगा। फेंगाडया ने लाठी फेंक दी। कष्ट से थका शरीर
किसी तरह खींचते हुए चढकर उपर आया।
एक बडे कातल पर धप्प से बैठ
गया।
सोटया और दूसरा आदमी दौड़कर
आये।
भाग गये? सोटया ने पूछा।
हाँ। वह हाँफते हुए बोला।
फिर पीठ के बल जमीन पर लोट
गया।
बारिश के थपेड़े झेलता हुआ।
चेहरे पर भी बारिश। ठण्डी।
दहिनी हाथ मे हड्डी।
पकड़ अब भी ढीली नही हुई थी।
हड्डी की नोक हथेली में गडने
लगी।
फेंगाडया का ध्यान उस पर
गया।
हड्डी को बार बार चूमते हुए
वह रोने लगा।
पंगुल्या। वह चिल्लाया।
पास बैठे आदमी ने सिर
हिलाया। थोड़ी देर के बाद दोनों उठे।
एक बार फिर से नीचे के मोड़
तक हो आए।
पूरा दिन सावधानी से सारे
बैठे रहे।
रात छाने लगी। फेंगाडया उठा।
अभी कुछ दिन और कड़ा पहरा
रखना पडेगा।
अपने तीन साथियों को पहरे के
लिये छोड़कर फेंगाडया, सोटया और बाकी सारे बस्ती की ओर उतरने लगे।
सभी थके हुए थे। लेकिन पाँव
तेजी से उठ रहे थे।
बस्ती में जलने वाले अलाव और
मिट्टी की खपरियों में रटरटाता धान उन्हें आमंत्रण दे रहे थे।
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