Tuesday, 6 December 2016

xxxx ॥ ८६॥ पंगुल्या और पायडया ॥ ८६॥

॥ ८६॥ पंगुल्या और पायडया ॥ ८६॥

बाहर वर्षा की रप रप। पायडया अपनी झोंपडी में चांदवी के साथ।
सामने धान फैला हुआ।
उस पर पायडया की उंगलियाँ घूम रही थीं।
देखते देखते एक आदमी तैयार हुआ। हाथ में लाठी।
पायडया की अंगुलियों पर धान के भरे हुए दानों का स्पर्श। चांदवी देखती बैठी थी।
बाहर पैरों की चाप सुनी। पंगुल्या अंदर आया। सामने बैठ गया।
पायडया हंसा। उसकी उंगलियाँ अब भी धान में। देखते देखते आदमी बिखर गया। अब वहाँ बन रही थी एक सू।
पायडया भर्रा गया। अपने मजबूत पंजों में पायडया का हाथ थाम लिया।
यह तू..... उंगलियों से बना सकता है?
हाँ।
पंगुल्या की आंखों में चमक। अब बाई बना।
पायडया की उंगलियाँ फिर चलीं। एक उंची, चौडी सू बनी..... बाई।
अब फेंगाडया बना।
एक आदमी तैयार हुआ। भरापूरा, तगड़ा।
चांदवी ने सिर हिलाया।
अंच् हंच् ....। फेंगाडया अकेला कैसा? उसके साथ कोमल चाहिए। पिलू चाहिए। पेड भी चाहिए।
पायडया की उंगलियाँ-- फिरीं।
नीचे बेसुध सी कोमल पडी हुई।
उसे उठाने को झुका हुआ फेंगाडया.......
दूर झाड़ी में जाते हुए चीते का पिछला भाग।
चांदवी हंसी। हाँ, यह है फेंगाडया। वह उठकर बाहर चली गई।
अंदर वे दोनों। बाहर वर्षा का स्तर। बाकी शांती।
मुझे दिखता है....। मुझे।
छाती में एक झरना फूटता है।
उसमें से प्रकाश निकलता है।
फिर सब कुछ उजाला हो जाता है।
फिर मैं दो और दो देख सकता हूँ।
पेड देख सकता हूँ। वे बोलते हैं मुझसे।
एक पेड देखा है मैंने। ऋतु बदलता है तब उसकी छाया भी अपनी जगह बदल लेती है।
वह पेड बताता है मुझे कि कौन सी ऋतु आने वाली है।
पायडया हंसा।
आदमी..... सू को...... यह सब दीखना ही है।
पंगुल्या को भरोसा नही हुआ।
सच..... तुझे भी दीखता है?
पायडया ने सिर हिलाया।
दोनों चुप बैठे।
लेकिन अब मैं मरण देखता हूँ। मरण की आंधी देख रहा हूँ। वह मेरी उंगलियों की पकड में नही आ रहा। पायडया थूकते हुए बोला।
मैं और उंचाडी उस वाघोबा टोली से भागे- यही मरण देखकर। लेकिन यहाँ से कहाँ जाना?  पंगुल्या ने पूछा।
यहाँ शांती थी। मरण दूर था। लेकिन अब सब कुछ बदल गया है। पायडया उठा और बाहर चला गया।
भाग भाग कर कहाँ जाएगा तू पंगुल्या?
मरण को अब कंधों पर लेना ही होगा।
पंगुल्या.... उठ।
माना कि मरण आने वाला है।
लेकिन कल। आज तो नही।
लुकडया का मरण भी आना था जंगल में।
कोई कहता कि नही..... लुकडया का मरण नही आएगा.... तो मान लेता तू?
तू हंस देता। कहता कि बताने वाला भरमा गया है।
लेकिन फेंगाडया बीच में आ गया।
उसकी छाती का प्रकाश बीच में आ गया।
लुकडया और मरण के बीच में फेंगाडया।
फिर क्या हुआ मरण का?
नही आया।
फेंगाडया ने वापस कर दिया मरण को।
तूने देखा है पंगुल्या।
वह गुठली बन कर जुडी हुई हड्डी।
अपने हाथों से उठा लाया है तू।
वह हड्डी कहती है- मरण आ सकता है कल.... लेकिन आज उसे वापस किया जा सकता है।
उठ पंगुल्या।
मरण को वापस करने के लिए किसी की छाती में प्रकाश आ सकता है।
फिर मरण वापस हो जाएगा।
पंगुल्या भरमाया सा हंसने लगा।
वो सारे बापजी के जानवर बने आदमी एक ओर। और किसी की छाती में बहता झरना एक ओर। हंसते हंसते वह रूक गया।



सोच पंगुल्या....। हो सकता है कि यह भरमाना भरमाना न हो।
सच हो।
वह उठा और घिसटते हुए बाहर निकल गया।
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