Tuesday, 6 December 2016

॥ ६९॥ बापजी और भडकाता है वाघोबा टोली को ॥ ६९॥

॥ ६९॥ बापजी और भडकाता है वाघोबा टोली को ॥ ६९॥

बहुत बहुत सावधान रहना पडेगा अब। बापजी ने अपना दुखता पैर सीधा करते हुए बैठक की जगह से ही समझाया।
आज उंचाडी और पंगुल्या पहुँच गए होंगे धानबस्ती पर। वह गुरगुराया।
थूच् .....। मरण आने दो उन्हें। लाल्या चिल्लाया।
बापजी फिर गुर्राया। इतनी सीधी बात नही है।
वह पंगुल्या अपनी मंतराई हुई हड्डियाँ भी साथ ले गया है।
सबके सिर डोले।
वे सारे मंत्र बाई को मिलेंगे। उसकी ताकद बढेगी।
फिर सबके सिर डोले। चेहरों पर चिन्ता छा गई।
एक सू उठी। हूँच्हूँच्हूँच्हूँच्- ......। वह उलटी सीधी डोलने लगी।
जय वाघोबा। लाल्या चिल्लाया। इस सू के शरीर में वाघोबा आ गया है।
बापजी आगे बढा। उस सू के सामने भुँई पर लोटते हुए बोला-
वाघोबा, तेरा रक्षण करने की ताकद हमें दे।
सू...... वाघोबा हंसा।
क्यों हंसता है?
हरेक झोंपड़ी में एक दो हड्डियाँ होंगी। उन्हें ढूँढो। एकत्रित करो।
करेंगे, वाघोबा।
आज.... अभी।
हाँ।
उस पर रक्तगंधाई सू का रक्त छिड़को। हमारी, यहाँ की सू का। उसकी बली दो। उसके मृतात्मा की ताकद उन हड्डियों को दो।
देंगे, वाघोबा।
वे हड्डियाँ सामने रखो। रोज उन पर फूल चढाओ।
बली के दिन बली का रक्त चढाओ।
हाँ, वाघोबा।
फिर पंगुल्या की हड्डियाँ कुछ नही कर सकेंगी। फिर उदेती टोली का मरण।
वह नाचती रही।
बीच ही में रुक गई।
भूख.... वाघोबा को भूख।
वह बेसुध सी पड़ गई।
जाओ.... बली लाओ....रक्तगंधाई सू लाओ।

बुढिया आगे आई।
नही, नही बापजी। रक्तगंधाई सू की बली मत चढाओ।
वह पिलू देती है। वह मरती भी है। लेकिन पिलू देकर मरती है।
पुरानी रीत है ये। सभी टोलियों की। रक्तगंधाई सू का रक्त बहुत मंतराया होता है। उसकी बली नही बनाते।
वह सू ही बनाती है टोली के कल की बस्ती। उसे मत मिटाओ। टोली को मत मिटाओ।
देखो यह शैतान। लाल्या फुंकारा।
उस बाई की भेजी हुई यह शैतान।
सू को सू की साथ।
कहती है- पुरानी रीत। थूच्च्
आज से सारे नियम नए- मैं बनाऊँगा।
जो मैं कहूँगा- वही नियम।
यह बुढिया बाई बनना चाहती है। बाई।
इतने दिन आदमियों की लाई शिकार खाती रही।
अब आगे आई है। रीत सिखाने के लिए। थूच्
सबने थूच् किया। बुढिया कांपती हुई दूर जाकर बैठ गई।
कौन सू आगे आती है? कौन सू? बापजी ने पुकारा। टोली के लिए कौन बली होगी?
चारों ओर स्तब्धता छा गई।
सूओं सूनो। आज यह वाघोबा टोली तुमसे तुम्हारा रक्त मांगती है।
टोली के लिए।
आज जो सू आगे आएगी, जो बली होगी, वह मरेगी नही कभी भी।
वही जीवित रहेगी टोली में।
उदेती की बाई का मरण हमारी टोली की सू के बली से होगा।
हमारे पिलू बचेंगे, बढेंगे, और टोली को आगे बढाएंगे।
उसकी कहानी सब कहेंगे। कहेंगे-
यह सू उस आडे समय में सामने आई- कहा- मैं बली जाती हूँ टोली के लिए।
हमारे पिलू के पिलू होंगे। वे यह कहानी सुनेंगे।
फिर वे भी अपने पिलूओं को यही कहानी सुनाएंगे।
मैं बापजी..... यह लाल्या..... जब मरेंगे तो मर जाएंगे।
लेकिन वह सू, मरकर भी जीती रहेगी।
जब तक सूरज है, चंद्रमा है, वाघोबा है।
तबतक आदमी बात करेंगे इस सू की।
कोलाहल हुआ।
दो चार सूओं ने एक छोटी सू को घेर लिया था।
यह....
इसने कहा- मैं बली जाऊंगी....।
ये ये झिपरी.....
यह झिपरी, जय। सारे चिल्लाये।
बापजी का चेहरा उग्र। आंखे विषभरी।
देवाच् ....., यह सुकुमार सू.....। अभी पिलू ही है।
आज उसे घेर लिया है..... जैसे भेडिए घेरते हैं।
वह भी अब उठेगी। देखते रहना बापजी।
गर्दन तान कर हंसेगी। सोचेगी--



बापजी सच कहता है। ये आदमी सच कहते हैं।
उसके मुँह में थूक आ गया।
लाल्या कहे वह नियम..... खरा नही है वो।
जीने के लिए..... अंदर के स्वर के साथ झगडता है ये नियम।
यह सू..... जो पिलू थी कल तक.... उसे लगता है, वह टोली के लिए मर रही है।
सोचती है वह कितनी उंची हो गई है सबसे।
जो सारी सूएं नही कर पाईं..... आज वो सब छोटी हो गईं और मैं ऊंची।
क्योंकि वह टोली के लिए मर रही है।
टोली के लिए मरनेवाली सू उंची।
नाच आरंभ हुआ। बापजी चौंक गया। वह छोटी सू उसके पांवों में माथा टेक रही थी।
बापजी ने अपने को संभाला। चिल्लाया- जय वाघोबा।
लपटें उफनने लगीं। लाल्या हरषा गया।
सबने बली की सू को घेर लिया।
वह उन्माद में आ गई। आडी तिरछी नाचने लगी। अलाव की ओर जाने लगी। आंच के पास आते ही पीछे हटी।
लाल्या तडाक्‌ से उठा- जय झिपरी।
सारे चिल्लाये- जय झिपरी।
लाल्या आगे बढा। सू हिरनी की तरह कांपी।
उसकी गर्दन हिली- नही, नही।
छोटी सी सू....नवेला चेहरा.... छाती में छोटे से उभार। अभी कुछ दिन पहले ही रक्तगंधाई थी।
लाल्या की लाठी आगे आई।
सू के पीछे लपटें उठ रही थीं।
लाल्या ने लाठी से ढकेला।
वह अलाव में गिरी। ज्वालाओं ने उसे अपने में लपेट लिया।
फिर उन्माद छा गया- जय झिपरी।
जय बाघोबा।
नाच नाच कर थक गए।
कोलाहल हुआ- मुझे, मुझे।
भुनी हुई सू के मांस के टुकडे लाल्या ने अपने हाथों से बांटे।
टुकड़े को मुँह में लेते ही बापजी सिहर उठा। उसके सामने जंगल डोलने लगा।
टीसता पांव घसीटते हुए, टुकडे को मुँह में रखे बापजी दूर हट गया।
पेड के नीचे बैठा। मांस थूक दिया।
अकेला ही सारा पागलपन देखता रहा।
जय वाघोबाच्। गर्जनाओं ने उसे घेर लिया।
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