॥ ९२॥ एक निर्णायक मोड़ ॥ ९२॥
फेंगाडया, पायडया और कोमल।
चांदवी, लंबूटांगी, एक आँखी।
थोड़े से आदमी। बचे हुए।
कई मर चुके।
ऊपर चढाई पर दो घायल आदमी।
फेंगाडया बैठ गया। थक कर।
हताश। अब बचना संभव नही है। वह पुटपुटाया। पायडया, तू, मैं, कोमल, यह बस्ती.......
सब मिट जाने वाला है।
बारिश के थपेडे।
झोंपड़ी में पानी भरा हुआ।
धान भींग रहा है।
खपरियाँ भी भींग रही हैं।
पायडया अपनी बैठने की जगह पर घसीटता हुआ बोला।
भींगने दो। किसके लिये बचाकर
रखना है? हताशा से कोमल चिल्लाई।
एकआँखी ने लम्बी सांस छोड़ते
हुए पैर फैला लिये।
बाई थी औंढ़या देव के पेड़ के
नीचे।
उसने खाना छोड़ रखा था।
आँखें मूँदी हुईं।
बाई भी मरेगी। पायडया ने
गर्दन हिलाई। औंढया देव बोलता है उससे। फिर भी मरेगी।
जंगल की ओर से पत्त्िायाँ
चरमुराईं।
उनपर पैरों के घिसटने की
आवाज आई।
फेंगाडया झटके से लाठी उठा
ली।
मरण! वह चिल्लाया।
पेड़ के पीछे से पंगुल्या
उभरा। फेंगाडया ने लाठी झुका ली।
पैर घिसटते हुए, हाँफते हुए
पंगुल्या पास आया।
उसके हाथ में भैंसे की छाती
की पांच सात हड्डियाँ भी। चेहरा आनन्द से चमक रहा था।
धानबस्ती अब बच जायेगी। वह
उन्माद में चिल्लाया।
फेंगाडया हँसा- तिरस्कार से।
कौन बचायेगा इसे? पंगुल्या- तू बचायेगा?
पंगुल्या ने उसे अनसुना कर
दिया। हाथ की हड्डियाँ नचाते हुए आगे आया- हंसना मत फेंगाडया, हंसना मत। वह फिर चिल्लाया।
मुझ पर हंसने वाले जीवित नही
रहते। लाल्या भी नही बचेगा। पंगुल्या आवेश में थरथराया।
मैं जो बोलता हूँ, सच होता
है। क्योंकि वह छाती के झरने में फूटता है।
मैं बोला था- लुकडया की जाँघ
की हड्डी जुडेगी। सच हुआ। कहो- हुआ या नहीं?
मैं यों ही नही बोलता। पहले
छाती में कुछ हिलता है। फिर मुझे प्रकाश दीखता है। फिर मैं बोलता हूँ।
पंगुल्या चिढा हुआ, चोट खाया
हुआ खड़ा रहा।
फेंगाडया सजग हो गया। उसकी
आँखें सजग हो गईं। उत्सुक।
पंगुल्या ने जरूर कोई दूसरा
विचार किया है। उसके चेहरे पर आशा की चमक है।
क्या देखा है तूने? भागने की
बाट? कहाँ जाना है? कैसे?
पंगुल्या ने गर्दन हिलाकर
मना कर दिया। हाथ की बाकी हड्डियाँ नीचे डालीं।
एक हड्डी दहिने हाथ में
मजबूती से पकड़ी हुई।
उस अर्धचक्र के आकार की
हड्डी का दूसरा पंगुल्या की उंगलियो में था- कोई एक वस्तु और भी थी उन
उंगलियों में।
क्षणभर के लिये पंगुल्या ने
हड्डी का बायाँ छोर झुकाया और छोड़ दिया।
टण्ण् से हड्डी छूटी और
दहिने हाथ में थरथराती रही।
बायें छोर से निकला पत्थर
अपार वेग से सनसनाता हुआ पक्षी की तरह उड़ चला। दूर पेड की डाली पर सप्प् से
टकराया। डाली टूट कर नीचे आ गिरी।
सारे अवाक्। कोई समझ नही
पाया यह चमत्कार कैसे हुआ।
अचानक फेंगाडया का चेहरा खिल
गया।
एक छलाँग में उसने पंगुल्या
को कंधें पर उठा लिया और हो च् हो च् करता हुआ नाचने लगा।
सारे अब तक बिना कुछ समझे
चकित खड़े थे।
फेंगाडया रुक गया। पंगुल्या
को उतारते हुए शांत हो गया। फिर सबको समझाने लगा।
आगे के सारे काम बिजली की
गति से करने थे। फेंगाडया ने सात साथी चुने।
सबके साथ में एक एक हड्डी
दी।
उब उन्हें ले जाना था दूर
मैदान में।
सबके हाथ पक्के करने थे इस
पत्थर फेंकने के उपाय पर।
फिर जाना था उंचाई वाले मोड़
पर। वाघोबा बस्ती से दुबारा जूझने के लिए।
पंगुल्या कोमल के पास आ
बैठा।
सभी टकटकी लगाए देख रहे थे
फेंगाडया और उसके साथियों की हलचल।
बारिश में काफी पत्थर फेंक
लेने के बाद फेंगाडया और उसके साथी चढाई पर चल दिये। आँखों से ओझल।
कोई कुछ नही बोल रहा था।
सारे स्तब्ध।
आखरी शांति की बाट देखते
हुए।
कोमल फूट फूट कर रोने लगी।
एकआँखी, उंचाडी, सारी सू
रोने लगीं।
बाई पेड़ के नीचे वैसी ही
पथराई बैठी रही। सबको एकटक देखते हुए।
पंगुल्या घिसटता हुआ कोमल के
पास सरक आया।
उसके माथे पर धीरे धीरे हाथ
फेरता हुआ बोला-
हम जिएंगे कोमल। सुन लो मेरी
बात। हम बचेंगे। हम जिएँगे।
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