Tuesday, 6 December 2016

॥ ७१॥ लकुटया डट जाता है फेंगाडया के विरोध में ॥ ७१॥

॥ ७१॥ लकुटया डट जाता है फेंगाडया के विरोध में ॥ ७१॥

उंचाई वाले मोड़ पर पहरे के लिये लकुटया और सोटया थे। और भी कुछ लोग इधर उधर बिखरे थे।
लकुटया थूका। वह फेंगाडया -- कल का आया हुआ।
आज आगे है। क्यों? बाई कहती है इसलिये? कोमल कहती है इसलिये?
सोटया हंसा।
क्यों हंसता है? लकुटया ने पूछा।
वे सब आये बस्ती पर। तब मैंने उनका मरण चाहा था। तब तू पीछे रह गया था।
आज देख.......तू ही देख।
सोटया ने इशारा किया।
लकुटया ने उतराई से नीचे देखा-
दूर..... नीचे दो छोटे धब्बे थे। फेंगाडया और कोमल। एक साथ। क्रोध से लकुटया काँपने लगा। अंगार सा बोला- मैं मार डालूँगा।
किसे?
फेंगाडया को। उस पंगुल्या को भी। फिर जुगूँगा उस उंचाड़ी के साथ।
सोटया आगे आया। चूप। आवाज संभाल अपनी।
लकुटया क्षणभर चुप हो गया। फिर फुसफुसाकर बोला-
आएगा?
कहा?
मेरे साथ। आज रात को।
कहाँ?
रात में फेंगाडया मरेगा।
पायडया ने भी ऐसे ही मारा था भैंसाडया को। बड़ा मत्त हो गया था। पुरानी बाई ने आज्ञा की पायडया को। मार दिया उसे।
आज ये बाई ही भरमा गई है।
पंगुल्या को, उस घायल लुकडया को धान दे रही है। फेंगाडया के कहने पर दे रही है। कोमल के कहने पर दे रही है। थू....।
इधर नरबली टोली का आक्रमण धानबस्ती पर! और बाई ऐसे जखमी पंगु लोगो को पोस रही है।
नही।
धानबस्ती बचानी है तो फेंगाडया को मरना पड़ेगा। मरना ही पड़ेगा।
लकुटया फिर चीखा।
सोटया कांप गया। उसने पूछा- कैसे?
रात को चलना। उसके सर पर पत्थर मार कर फोड़ देंगे।
केवल पायडया समझ सकेगा। और बाई। बाकी किसी को कुछ पता नही चलेगा।
सोटया ने गर्दन हिलाई।
लुकडया, पंगुल्या, लंबूटांगी, फेंगाडया.....
सब मरने चाहिये। लकुटया अपनी लाठी तौलते हुए बोला।
मैं पुकार लूँगा तुझे।
सोटया ने गर्दन हिलाई और उसके पीछे चलने लगा।
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