॥ ९५॥ बापजी मोड की चढाई पर ॥ ९५॥
बापजी ने दो जनों को उन्माद में भर कर भागते हुए देखा। दोनों जखमी थे।
पत्थर....बापजी। उस शैतान बाई ने पत्थरों को पंछी बनाकर हम पर छोडा है। भाग चलो तुम भी।
वे चिल्लाये। जंगल की तरफ भाग निकले।
बापजी उत्साह में भरकर उपना दुखता पैर घसीट कर चढाई चढने लगा।
पहला मोड आया। वहाँ लाल्या मरा पड़ा था।
बापजी ने उसे हर ओर से छूकर देख लिया।
बापजी एक क्रूर हंसी हंसा।
जय लाल्या चाहता था ना तू?
वह चिल्लाया- तो ले सुन ले.... जय लाल्या। पूरी शक्ति से बापजी चिल्लाया।
वह थूका और वहीं बैठा रहा
लाल्या के पास।
उसका शरीर तपने लगा।
सूर्यदेव की तरह।
लगता है बायें पैर का काला
रक्त सब ओर फैल रहा है।
थककर वह औंधा लेट गया।
अब सो जा बापजी....। वह
बुदबुदाया।
सूरज ऊपर आ जाये, तब तक
तुम्हें अगले मोड पर पहुँचना है बापजी।
अभी सो जाना। लेकिन मर मत
जाना।
टोली नामक की चीज को ही
तुमने उखाड़ कर नष्ट कर दिया है। जैसे कोई पेड़ उखाड़ कर फेंके।
जाकर देखो। वह उजाड़ी हुई
धानबस्ती देखो। तभी मरना। पहले नहीं।
बापजी लेटे लेटे औंधा हो
गया।
बारिश को पीठ पर लेता हुआ।
ग्लानी और थकान में
पुटपुटाया- देवा, मैं सही हूँ या गलत?
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