Tuesday 6 December 2016

॥ ७७॥ फेंगाडया और पायडया ॥ ७७॥

॥ ७७॥ फेंगाडया और पायडया ॥ ७७॥

फेंगाडया नदी के पात्र में पाँव डाले बैठा था। नदी वेग से बह रही थी।
वर्षा की एक झड़ी आई और चली गई उसे भिंगोते हुए।
उसे अपने कातल का ध्यान आया- नदी के बीचोंबीच पड़ा हुआ। उस पर बैठो तो उससे टकराने वाला पानी भी इसी झडी की तरह भिंगो देता था।
यह राह मुझे बहुत दूर तक ले आई। वह बुदबुदाया।
सूरजदेव के निकलने में अभी थोड़ी देर थी।
दूर बस्ती की ओर उसने देखा। एक लम्बी साँस खींची।
उपर पठार के मोड़ पर है मरण। लेकिन बस्ती में शांति।
कल रात वह और लुकडया दोनों देर तक बातें करते रहे।
लुकडया ने कहा- मैं खुश हूँ। अब मर भी गया तो बुरा नही लगेगा।
यह बस्ती देखी- बाई देखी।
पायडया के होठों की धुन सुनी.....धान देखा।
पैर भी अब बहुत नहीं दुखता। मैं खुश हूँ।
फेंगाडया ने फिर से नदी को देखा। वह वेग से बह रही थी।
  
पीछे पैरों की चाप सुनाई दी। फेंगाडया मुड़ा। सामने पायडया था।
पायडया हंसते हुए उसके पास बैठा।
फेंगाडया के भरपूर शरीर को देखते हुए बोला-
तेरे जैसा ही भरापूरा था बापजी भी।
बापजी?
हाँ, कई ऋतुओं पहले रहा था यहाँ धानबस्ती में। तेरे जैसा भरापूरा, शक्तिवाला.... भाग गया।
फेंगाडया के शरीर में एक सनसनी दौड़ गइर्‌। उसे लगा-- बता दूँ। लेकिन वह रुक गया।
अपने आप से कहा- भूल मत कर फेंगाडया। बापजी भाग गया था यहाँ से। क्यों? किसको पता। अभी चुप रहना ही ठीक है।
पायडया थूका। बोला......
मानुसपन, मानुसपन कुछ कहता था।
फिर भाग गया। भगौडा।
फेंगाडया ने गर्दन हिलाई।
पायडया उठा- मैं चलता हूँ।
फेंगाडया अपनी थरथरी लिया बैठा रहा।
मानुसपन की बाट.... बहुत कठिन। जानवर होना कितना सरल।
मानुसपन की बाट किसी को भी भरमा दे। वह बाट है ही ऐसे भुलावे में डालने वाली।
बापजी........तू भागा था यहाँ से। कुछ देखा होगा तूने इस बाट पर। जो तुझे गलत लगा।
रहा होगा इस बाट पर कुछ ऐसा ही। तभी तुमने कहा होगा-- नही। फिर तू दूसरी बाट से चल दिया होगा।
बापजी, यह मानुसपने की बाट ही ऐसी है- दुखाने वाली, भरमाने वाली। कुछ नया ही दिखता है इस बाट पर। हर बार। लेकिन मानुसपना चाहिये तो यही बाट है। नही तो फिर वही जानवरों जैसा रहना।
देवाच् मैं भी कहीं बापजी की तरह.......
तू ही संभालना मुझे।
मैं भी देख रहा हूँ इस बाट पर यह मरण का खेल। जो मुझे नही चाहिए।
लगता है यह धानबस्ती झूठी है।
भरमा रहा हूँ मैं। देवाच् तू संभाल।
उसकी छाती गदगदाई। फिर शांत हुई।
दूर धानबस्ती को देखकर लगा- यह मैं नींद में देख रहा हूँ।
यह धानबस्ती.....यह नदी। सब कुछ।
गर्दन हिलाकर उसने अपने आप को चेताया- भरमाना नही फेंगाडया, भरमाना नही।
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