Saturday, 31 December 2016

एक स्त्री का साहस - जनसत्ता ३ फरवरी २००० (28-1 )

एक स्त्री का साहस  - जन. ३ फरवरी २०००   
अंजना मिश्र के साथ बलात्कार की कोशिश के आरोप में उडीसा के पुर्व महाधिवक्ता इंद्रजीत राय को तीन वर्षों की बामशक्कत कैद की सजा सुनाई गई है। जो लोग अंजना मिश्र के मामले से परिचित रहे है उन्हे एहसास होगा कि अपने साथ हुए अन्याय के प्रतिकार में यह फैसला हासिल करने की लडाई अंजना मिश्र के लिए कितनी तिखी और कितना तोड दोने वाली रही है। अंजना मिश्र एक बडे अफसर की बीवी थी जिन्होंने अपने पति से तलाक चाहा था । उसी मुकदमे के सिलसिले में वे राज्य के महाधिवक्ता से मिलने गई थी । इस मुलाकत मे उन्हें अपने जीवन के एक निहायत कडवे अनुभव का सामना करना पडा । उनके मुताबिक राज्य के महा धिवक्ता ने ही उनके साथ बलात्कार की कोशिश की ।यह अंजना मिश्र की हिम्मत ही थी कि उन्होने  इस ताकतवर अभियुक्त के विरूद्ध भी लडके का संकल्प किया ।मगर यहीं से उनके संघर्ष शुरू हुए उन्हें  कई तरह से प्रताडित किया जाता रहा। यहाँ तक की जब एक बार वे अपने एक पत्रकार मित्र के साथ अपने वकिल से मिलने जा रही थीं तो चार लोगों ने उन्हे जबरन रोका ,उनकी इज्जत लुटी और साथ में  धमकी भी दि की वे इस प्रसंग को आगे न बढाएँ ।
        यह सारी कीमत अंजना मिश्र ने इसलिए चुकाई कि पहले वे अपने पति के अत्याचारों के विरूद्ध लड रही थीं और बाद में एक ऐसी ताकतवर जमात से लडने को मजबुर हुई जो वैध -अवैध सारे तरीकों पर काबिज था । उन्होंने पूर्व महाधिवक्ता के खिलाफ उस वक्त के मुख्यमंत्री  जानकी वल्लभ पटनायक से शिकायत की तो पटनायक ने उलटा उन्हे गलत ठहराया । वस्तुतः पटनायक के सत्ता से जाने की जो वजहें  बनीं ,उनमें अंजना मिश्र कांड में उनकी नकारात्मक भुमिका भी थी । इस लिहाज से
उडिसा के जनसंगठनों की सराहना की जानी चाहिए जिन्होंने अपने तई इतना दबाव बनाया जिसमे इस मामले को अपनी परिणीती तक पहुँचाना संभव हो सका। साथ ही ऊपरी अदालत ने यह भी आदेश दिया कि इसकि शीघ्र सुनवाई की जाए । नतीजा सामने है और महाधिवक्ता को सजा सुनाई गई है।
      हालाँकि इस  लडाई ने अभी आधी दूरी ही तय की है । तय है कि इंद्रजीत राय इस फैसले के विरूद्ध उँची अदालतों का दरवाजा खटखटाएँगे ।क्या इन अदालतों में भी मामला इतनी ही जल्दी निपटाया जाएगा कही ऐसा न हो कि वहाँ काफी वक्त लगे और इस दौर में चींजे कुछ इस तरह बदल जाएँ कि अंजना मिश्र को मिला न्याय उनके हाथ से निकल जाए । ताकतवर लोग न्याय की प्रकिया को किस हद तक प्रभावित कर सकते है इसके उदाहरण हमारे पास सैकडों में नहीं ,हजारों में होंगे। हाल ही में प्रियदर्शनी मट्टू के मामले मे जज ने ही स्वीकार किया की अभीयोजन पक्ष ने सबूतों को इतने कच्चे रूप में पेश किया है कि उसके सामने अभियुक्त को छोड देने के सिवा कोई चारा नहीं रहा। अंजना मिश्र और इंद्रजीत राय के मामलें में यह नही होगा ,इसकी उम्मीद बस दो आधारोंपर ही बँधती है। एक तो यह कि यह मामला पहले ही काफी संगीन हो चुका है और कई जनसंगठनों की इस पर निगाह है। दूसरे इस मामले की शिकार अंजना  मिश्र ने अब तक जिस जुझारूपन का प्रदर्शन किया है, उससे भरोसा बनता है कि वे इसे एक मुकाम तक पहुँचाकर दम लेगी। लेकिन यह समूचा मामला बनता है कि हमारी  व्यवस्था में एक अकेली स्त्री के लिए न्याय हासिल करना कितना मुश्किल काम है और एक अत्याचार का विरोध करने की एवज में कितने अत्याचारों से कितने अत्याचारों से गुजरना पड सकता है।
     पुनश्च
    अजंना मिश्र का आरोप है कि उसके बलात्कार के पीछे एक उच्च पदस्थ साँठ -गाँठ है जिसका कारण है वह पुरानी यौन -उत्पीडन की शिकायत जो उसने त्तकालीन  मुख्यमंत्री के चहेते अफसर   और उडीसा के पुर्व महाधिवक्ता इंद्रजीत राय के विरूद्ध की थी । हाल में ही पुरानी शिकायत पर कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए राय को दोषी करार दिया है। हालाँकी  राय अवश्य ही हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक जाएँगे।
            (जनसत्ता -3फरवरी ,2000)



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