॥ ७२॥ चांदवी की रात आती है
॥ ७२॥
पूरे चंद्रमा की रात।
धानबस्ती का पूरा झुण्ड
उकडूँ बैठा हुआ।
सामने औंढया देव का पेड।
उसका चौडा तना।
जमीन से ऊपर आई जडें।
पवन थमा हुआ। केवल नदी का
हलका स्वर।
पायडया उठा। मंतराया हुआ धान
उसने चारों ओर फेंका।
आओच् आओच् औंढया.....। वह
चिल्लाया।
फिर बाई के पास बैठ गया।
सारे स्तब्ध थे। पायडया भी।
चांदवी अकेली.... दूर खडी
थरथरा रही थी।
फेंगाडया की आंखें उस पर
टिकीं। वह किसी तरह हंस दी। फिर सिहर गई। अनायास उसका हाथ जाँघ पर गया।
वह रक्तगंधाई थी। आज पहली
बार।
कोमल पिलू लेकर आगे आई। उसने
हाथ से चांदवी को खींचा।
फेंगाडया आश्चर्य में था।
रक्तगंधाई सूओं को पहले देख
चुका था। लेकिन जो पहली बार रक्तगंधाई हो ऐसी यह सू थी।
कोमल चांदवी को आगे ले आई।
बाई ने उसे गले से लिपटाया। कोमलता से उसके गाल चूम लिए।
चांदवी औंढया के पेड के नीचे
जा रुकी। पायडया ने मंतराया धान उस पर फेंका।
सारी स्तब्धता फेंगाडया के
लिए असह्य हो चली।
सारी बस्ती चुपचाप।
एक अनामिक प्रकाश चांदवी के
चारों ओर।
कोमल आगे आई। अपना पिलू उसने
चांदवी के थान से लगा दिया।
चांदवी थरथराई।
पिलू रोने लगा।
बाई उठी। बोली-- और एक सू आज
रक्तगंधाई है। औंढया की कृपा रही तो यही भी पिलू देगी। सू पिलू। बस्ती बढाने वाली
सू पिलू। वह आगे दूसरे सू पिलू देगी।
औंढया देव अपनी बस्ती पर इसी
तरह प्रकाश बरसाता रहेगा।
सबने गर्दन हिलाई।
चांदवी ने अनायास फेंगाडया
की ओर देखा।
कोमल की आंखों ने चांदवी की
आंखें देख लीं। वह हंसी। उसने फेंगाडया को इशारे से बुला लिया।
वह आगे आया। पास बैठी
लंबूटांगी पत्थर बन गई।
चांदवी का हाथ कोमल ने
फेंगाडया के हाथ में दिया।
लंबूटांगी थूकी।
सारे हंसे।
फेंगाडया की छाती में कुछ
बजने लगा। उसने चांदवी को खींच लिया।
झोंपडी में.... उस झोंपडी
में। कोमल पुटपुटाई।
झोंपडी? फेंगाडया ने पूछा।
हां।
क्यों?
वह झोंपडी इसी दिन के लिए
है। किसी सू के पहले आदमी के लिए।
कोमल ने उसे ढकेला। असमंजस
में फेंगाडया झोंपडी की ओर चला। पीछे पीछे चांदवी।
अलाव पर खप्परों में भर भर
कर धान रटरटाता रहा।
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