Tuesday 6 December 2016

॥ ९७॥ बापजी और फेंगाडया की भेंट ॥ ९७॥


॥ ९७॥ बापजी और फेंगाडया की भेंट ॥ ९७॥

सोटया, दो आदमी, उंचाडी और चांदवी आगे बढ़ गए। पिछले मोड़ पर फेंगाडया और पंगुल्या रुक गए। लौटने में देर न करना। फेंगाडया ने चिल्लाकर उनसे कहा। वे आँखों से ओझल हुए तो फेंगाडया खिन्नता से
बैठ गया।
एक पत्थर उठाकर दूर फेंका।
पंगुल्या ने उसकी हालत देखी तो आगे आया।
फेंगाडया के पास बैठ कर उसके कंधे पर हाथ रख दिया।
वहाँ से निचला मोड़ स्पष्ट दीख रहा था।
पीछे घाटी में पवन घों घों करता हुआ ऊपर चढ रहा था।
नीचे के मोड़ पर प्रेत पडे थे और उनपर गीध मंडरा रहे थे।
 दोनों चुप थे।
बापजी के कारण हुआ ये सब कुछ। पंगुल्या ने थूक कर कहा।
फेंगाडया ने चमक कर पंगुल्या को देखा। उसका सारा शरीर तन गया। पंगुल्या ने पहली बार यह नाम लिया था।
उसने उठकर पंगुल्या को दोनों कंधों से झकझोर दिया।
बापजी के कारण?
हाँ। बापजी के कारण।
बूढा, लम्बा, सफेद बालों का? फेंगाडया ने पूछा।
हाँ।
टोली में कभी न जाना........ बाई की टोली भयानक है....... बाई के पास मंत्र है....... कहने वाला?
पंगुल्या की आँखों में भय की स्पष्ट छाप।
हाँ, हाँ, वही। पंगुल्या चीखा।
फेंगाडया वापस बैठ गया। सिर हिलाते हुए पूछा- ये सारे......इतने प्रेत...... मरण का सारा खेल.....सब उसके कारण हुआ?
पंगुल्या फिर सिर हिलाकर पुटपुटाया- हाँ।
वह फेंगाडया को बताने लगा।
उसे नरबली के लिए लाया था-- लाल्या के आदमियों ने। लेकिन बच गया।
वह हँसा इसलिए बच गया।
फिर उसने टोली ही अपनी तरफ मोड ली।
सबको भय दिखाया-- मरने का।
लगाई सारी आग..... यह सब होने के लिए। पंगुल्या थरथरा रहा था।
फेंगाडया की बाँह मजबूती से थामकर बोला-- उसने लाल्या को उकसाया। मुझे भी मार डालने वाला था।
मैं, पाषाण्या उसका झूठ भाँप गए थे। इसी से। पाषाण्या भी मर गया होगा...... उसके हाथों।
मैं उंचाडी के साथ भाग लिया। इसीलिए बच गया।
नही तो मार दिया जाता उस टोली में।
या लढना पडता उस टोली की ओर से।
फेंगाडया के शरीर में एक थरथरी दौड़ गई।
उसने हौले से अपनी बाँह पंगुल्या की पकड़ से छुडा ली।
उकडूँ बैठकर उसने आकाश की ओर देखा।
देवाच् यह पंगुल्या यदि उस नरबली टोली में होता?
वह हथियार उन्हें मिला होता।
फिर यह प्रेतों का ढेर हमारा होता। मैं भी होता इसमें।



पंगुल्या की आँखें फैल गईं।
फेंगाडया ने शांत होकर उसे देखा।
वह भी होगा यहाँ? बापजी?
पंगुल्या ने सिर हिलाया- हो भी सकता हे।
नीचे झाडियों में कुछ खुसफुस हुई। दो तीन गीध भी फड़फड़ाते हुए उड़े और वापस बैठ गए।
फेंगाडया उठा। अकेला ही लम्बे डग भरता हुआ मोड के पार जंगल में घुस गया।
पंगुल्या घिसटता हुआ पीछे छूट गया।
एक बूढा पेड़ के तने से टिक कर बैठा था।
फेंगाडया पहली झलक में उसे पहचान न सका। लाठी तौलते हुए सावधानी से आगे बढ़ा। बापजी ने प्रयास से आंखों पर आती ग्लानि को दूर करके देखा।
सामने फेंगाडया।
फेंगाडयाच् वह चिल्लाया।
फेंगाडया भी थरथरा उठा। आनन्द से उसने हांक लगाई।
वह दौड़ गया। बापजी को उठा लिया। गोल गोल घुमाकर वापस नीचे बिठा दिया।
बापजी ने कांपते हाथों से उसे स्पर्श किया। वह कुछ कहें, उससे पहले फेंगाडया ने उसे हिलाते हुए कहा-
तू जो मानूसपने की बात कहता था बापजी-- उसे मैंने आगे बढाया है।
आगे बढाया है।
मैंने घायल लुकडया को मरने के लिए छोड़ नही दिया।
उसे उठाकर गुफा में ले गया।
उसे शिकार दी।
उसे धानबस्ती पर ले गया। उसे खाने के लिए धान मिला। उसके घाव ठीक हुए।
उसकी टूटी हुई हड्डी जुड़ गई।
बापजी की आँखें फिर से गँदला गईं। उसे मूर्च्छा होने लगी।
उसे फिर हिलाकर फेंगाडया ने कहा--
इस बस्ती को भी मैंने बचा लिया। मैंने और पंगुल्या ने।
इस बस्ती में धान है, अलाव हैं, उष्मा है। और अब घायल के लिए आधार भी है।
अब कोई लुकडया घाव के कारण नही मरेगा।
सू और पिलू शिकार के बिना भूखे नही रहेंगे।
उनके पेट के लिए भी धान है।
मैंने बचाई ये बस्ती बापजी, मैंने।
बापजी का सिर हिला। उसकी मानों वाचा ही बंद हो गई।
बापजी, तूने नरबली बस्ती को तोड़ दिया। मैंने धानबस्ती को बचा लिया।
लेकिन बापजी, तू सही नही था।
फेंगाडया रुका। शब्द टटोलने लगा।
फिर बोला-- मैं तुम्हें ले चलूँगा।
बस्ती पर ले चलूंगा। फिर तुम देखना।
देखना तुम कि बस्ती कैसे बनती है। कैसे टिकती है।
बापजी कराहा। आधी बातें उसकी समझ से बाहर हो रही थीं।
उसकी देह तप रही थी। एक अलाव की तरह। दो-तीन दिनों से मूत्र भी रुक गया था।
वह पुटपुटाया-- मैंने ही उकसाया।
इन जानवरों को मैंने ही भडकाया।
मैंने ही आरंभ किया मरण का यह खेल।



लेकिन क्यों? फेंगाडया ने पूछा।
बस्ती में, टोली में आदमी जानवर बन जाता है।
उसका मानूसपना खत्म होने लगता है।
फेंगाडया हंसा।
भरमा गया है तू बापजी। भरमा गया है।
बापजी की साँस तेज चल रही थी। अचानक वह मंद पड़ गई।
मूर्च्छा से वह लुढक गया।
फेंगाडया ने जमीन पर बैठकर उसका सिर गोद में ले लिया। बापजी धीरे धीरे सावधान हुआ।
देवाच् वह कराहा।
वह धानबस्ती वैसी ही बची रही।
वह अस्पष्ट बुदबुदाया।
फेंगाडया के रोंगटे खड़े हो गए।
बापजी मर रहा है। वह पुटपुटाया।
पंगुल्या पास आ चुका था। फेंगाडया की बगल में बैठते हुए खिदकने लगा-- विचित्र स्वर में चिल्लाया--
बापजी, तू मरेगा।
मैं जिऊँगा बापजी, और तू मरेगा।
तुझसे धानबस्ती देखी नही जा रही थी। कहता था बाई के पास मंत्र हैं।
यह सब तुमने कहा था। कहा था कि बाई शैतान है। वह झूठ था बापजी। धानबस्ती वैसी नही है।
फेंगाडया तुझे धानबस्ती में ले आया।
वहाँ की बाई ने, वहाँ के धान ने मुझे जिलाया।
वहाँ जाकर मैं सुख की नींद सोया।
बिना भय के सोया।
फेंगाडया जीता है बापजी, तू नही जीता।
तुम्हारे मानुसपने को वही आगे ले गया। इसीलिए वह जीत गया।
फेंगाडया की आँखें शांत हो चलीं। जो वह नही कह पा रहा था- पंगुल्या ने उसके लिए शब्द जुटाए थे।
पंगुल्या का तनाव निकल गया। बापजी, तू मुझसे कहता था, मेरे आड़े न आना। मैं नही आया बापजी। तुझे और किसी की गरज ही नही थी। तू खुद अपने आड़े आ गया। मर अब।
फेंगाडया की नसे फिर एक बार तन गईं।
एक विचित्र तनाव, और स्तब्धता तीनों की बीच गहराने लगी।
फेंगाडया ने आँखें मूंद लीं। फिर खोलीं। उसकी थरथरी कुछ कम हुई।
बापजी ने आँखें खोलीं।
सुन फेंगाडया- मेरी बात ठीक से सुन। वह बुदबुदाया। उसने एक लम्बी सांस खींचकर छोड़ी। फिर एक और.....!
सुन फेंगाडया।
बापजी की गर्दन फिर थरथराई। फेंगाडया की गोद में सिर हिलता रहा।
उसके होंठ विलग हुए।
टोली में, बस्ती में देव की आवाज खो जाती है। सुन लो मेरी बात।
यह टोली बडी होती चलेगी। फिर नियम बदलेंगे।
नरबली टोली की तरह.........। बहुत नियम बढेंगे।
ये आदमी, तब जानवर बनेंगे।
फिर एक बार जय वाघोबा, जय औंढया पुकारते हुए मरण का खेल खेलेंगे।
फिर एक बार। और फिर एक बार।
आदमी को अब रक्त का स्वाद लग चुका है।


याद रखना।
ये अभी भूल जाएंगे कुछ समय तक।
लेकिन फिर कोई नया बापजी आएगा।
वो फिर इन्हें भरमाएगा। उन्हें भैंसे बनाएगा। बिना विचारों वाले भैंसे।
मानूसपने को न जानने वाले भैंसे।
नया उकसाना। नए भैंसे।
लेकिन पुराना मरण, पुराने गीध।
यही खेल चलेगा।
समय की आहट यही कहती है।
बापजी ने आखरी साँस ली।
फेंगाडया ने उसकी छाती से कान लगाया।
वहाँ कोई धड़धड़, कोई आवाज नही थी।
फेंगाडया शांति से उठा।
बापजी का शरीर पीले पत्ते की भाँति जमीन पर लुढक गया।
पंगुल्या धडपडाते हुए उठा। दोनों दूर हुए।
फेंगाडया ने एक बार बापजी को देखा। उसे लगा। इसे गाड़ दूँ।
वह थूक दिया।
यह कैसा बापजी? वह आक्रोश कर उठा--
यह बापजी तो शैतान बन चुका था।
मेरा बापजी अलग था पंगुल्या।
अलग था।
ताड्ताड चलते हुए फेंगाडया मोड की ओर बढ चला। पंगुल्या उसके पीछे घिसटने लगा।
किसी तरह उसने फेंगाडया को पकड़ा-- उसे रोककर खड़ा हो गया।
फेंगाडया के गले से गुर्राहट निकली।
पंगुल्या ने आकाश की ओर उंगली उठाकर संकेत किया।
वहाँ गीध मँडरा रहे थे। बाट जोह रहे थे।
फेंगाडया एक क्षण वहीं रुका रहा। फिर पीछे मुडा।
बापजी के शरीर को खींचते हुए ले चला।
पास ही एक छिछला गड्ढा था। उसमें डाल दिया।
लाठी से मिट्टी उकेरी और बापजी के उपर डाल दी।
सामने एक बड़ा पत्थर था। जान लगाकर फेंगाडया ने उसे ढकेला और बापजी के ऊपर सरका दिया।
पसीने से थबथबाते हुए वह पत्थर पर जा बैठा। पंगुल्या फटी फटी आँखों से उसे देखता रहा।
फिर फेंगाडया ने एक लम्बी छलांग लगाई और लम्बे डम भरता हुआ बस्ती की ओर चल दिया। पंगुल्या उसके पीछे पीछे। उपर गीध मँडराते रहे।
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