॥ ९८॥ धानबस्ती वाले वाघोबा बस्ती पर ॥ ९८॥
बुढिया ग्लानि में पडी थी- भूख से निढाल होकर।
वर्षा की झड़ी रुक गई।
वह वैसी ही पड़ी रही। कीचड़ में।
शाम होने को आई।
कुछ खुसफुसाया।
बुढिया ने आँखें खोलीं। चार पांच पिलू पास आये। सू पिलू और आदमी पिलू। भूखे।
हाथ में किसी पेड़ की
टहनियाँ। कचाकच पत्त्िायाँ चबाते और थूकते, शोर मचाते वे खडे रहे उसके पास।
गुरगुराहट हुई। पीछे से एक
जान लेवा गर्जना। एक जानवर निकल कर आगे आया। रुका।
पिलूओं ने शोर मचा दिया।
जानवर पीछे हटा। सूँघते हुए
निकल गया। बाई ओर से लाठियाँ लिये चार पांच सू दौड़ी आई।
वर्षा रुक गई। एक चिल्लाई।
तो?
अलाव जला लो। वह आगे आकर
बोली।
बुढिया के पास बैठ गई। उसके
हाथ पैरों को दबाती हुई बोली- इसके माँस पर दो दिन निकल जायेंगे।
बुढिया रों रों रोने लगी।
सारी सू खिद खिद हँसने लगीं।
तैयारी करने लगी।
लकड़ियाँ लाईं।
बली की जगह पर फिर से अलाव
जलाया।
पिलूओं के चेहरे चमकने लगे।
एक सू ने बुढिया के हाथ पैर
बांधे।
बुढिया थरथरा रही थी।
दूसरी सू उसके पास आई। उस पर
थूकी। बापजी ने उसकाया तब नाची थी बुढिया। पाषाण्या मर गया। लाल्या का जय लाल्या
हुआ तब भी नाची थी।
अब लाल्या और बाकी आदमी गए।
उधर जाकर मर गए या बाघों ने
खा लिए?
या उस शैतान बाई ने मंत्र
फेंक कर सबको मार डाला?
अब तू भी मर यहाँ।
अलाव धुआँ धुआँ हो रहा था।
एक सू उसके पास गई। लकड़ी गीली थी।
फूच् फूच्......। आग चेताने
के लिये सारी सू उस औंधी होकर फूंक मारने लगीं।
अचानक सारे पिलू चिल्ला उठे।
वे मुड़ी। सामने कुछ आदमी, कुछ सू।
वे थरथराईं। कोई भी चेहरा
परिचित नही था।
सोटया आगे बढा। बुढिया को
बंधा देखकर बोला-
यह क्या? इस बुढिया को
जलाएंगे? उंचाडी आगे आई। सोटया के आदमियों ने लाठियाँ संभाली। चादवी स्तब्ध थी।
उंचाडी थरथराते हुए बोली-
इसका मांस भून कर खाने वाली
थीं ये सारी सू।
वाघोबा टोली की सारी सू डर
गई। एक चिल्लाकर भागने लगी लेकिन सोटया के आदमी ने दो ही छलांगों में उसे घेर लिया
और खींचकर वापस ले आया।
वह चीखती रही। सोटया ने आगे
बढकर उसे एक थप्पड़ मारा।
सारी सू चुप हो गई।
सोटया ने बुढिया के हाथ पाँव
खोले। वह थरथराती उसके पांवों पर लोटने लगी। एक आदमी आगे आया। उसने धानभरा चमडे का
खोल अलाव के पास रख दिया।
उंचाडी ने खोल से धान के साथ
दो मिट्टी के खप्पर भी निकाले। उन्हें आग पर रखकर उस पर
धान भूजने लगी।
दो और खप्पर लेकर सोटया ने
एक आदमी को पानी लाने भेज दिया।
धान भूंजकर सौंधी महक देने
लगा तब चांदवी ने उसमें पानी भी डाल दिया।
वाघोबा टोली की सू चुपचाप
देखती रहीं।
पिलू भी देखते रहे।
यह भी नरबली देने वाली टोली।
चांदवी शांत भाव से उन्हें
देखती रही।
रट रट रट धान पकता रहा।
चांदवी ने एक एक सू को खप्पर
में रखकर धान दिया। सब खाते गए।
अंत में बुढिया को भी धान
दिया।
समय बीतता गया।
भूख अब शांत चुक हो चुकी थी।
चांदवी ने सारी सू, सारे
पिलूओं को बुलाया।
हम सब तुम्हें बुलाने आए
हैं-- धानबस्ती पर चलने के लिये।
धानबस्ती.....। उसने सबको
समझाया क्या होती है धानबस्ती।
सारी सूओं में खलबली मच गई।
थोड़ी देर में थककर सारी सू
सो गई। चांदवी और उंचाडी भी उन्हीं के साथ सो लीं।
सोटया और उसके कुछ आदमी
जागते रहे।
सोटया उकडूँ बैठा था।
औंढया देवा। कितना कुछ नया
दिखा रहे हो तुम। पहले वह फेंगाडया और उसका बचाया हुआ लुकडया। फिर ये सारे भूखे सू
और पिलू जिन्हें केवल बाई की आँखें ही देख पाईं।
लगता है एक नई कहानी का आरंभ
हो रहा है।
दो बस्तियों को मिलाने वाली
कहानी का।
होंठ सिकोड़ कर धीमे धीमे
सोटया धुन बजाने लगा।
धुन......। जो वही सीख सका
था पायडया से।
नरबली टोली पर पहली बार कोई
धुन बजा रहा था।
उस धुन पर उतर रही थी कोई
कहानी।
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