Tuesday, 6 December 2016

॥ ६६॥ कोमल अकेली लौटती है धानबस्ती पर ॥ ६६॥

॥ ६६॥ कोमल अकेली लौटती है धानबस्ती पर ॥ ६६॥

दूर से एक आकृति आती हुई दिखी पायडया को। कोमल?
धडपडाते हुए पायडया उठा।
बाई को पुकार कर बाहर ले आया।
पायडया और बाई एक पलभर सब कुछ भूल गये।
बाकी सू, बाकी आदमी भी सब कुछ भूल गये।
सारे थिरकने लगे।
कुछ लोग दौड़कर कोमल तक पहुँचे। पायडया ने उसे अंक में भर लिया।
उसकी बाँहों से निकलते हुए कोमल ने पूछा-- मेरा पिलू?
चांदवी दौड गई थी पिलू को लाने।
उसने आगे बढकर पिलू को कोमल के हाथों में दिया।
कोमल की आँखों में आंसू और होठों पर मुस्कान। उसने पिलू को थान से लगा लिया।
सोटया आगे आया।
यह नाचने का अवसर नही है। नरबली वाले कभी भी आ सकते हैं।
लोग चौंक गये। दूर जाकर अपनी लाठियों को पत्थर पर घिसकर तेज करने लगे।
तीन चार सू अलाव पर धान पकाने लगीं।
रटरटरट...........धान उबलने लगा।
सूरज दो बित्ते उपर आ गया था।
कोमल ने देखा। दूर नदी की बहती धार घों घों का शोर मचा रही थी।
बाई आगे आई। कोमल को अंक में भरकर बोली-- अगली बाई मेरी। कैसे ऐन समय पर लौट आई।

आज यहाँ आ पहुँचा है भय......... थयथय नाचनेवाले मरण का भय।
कोमल कुछ समझ नही पाई। पूछा-- क्या कहती हो बाई?
पायडया आगे आया। काँपते स्वर से सब बताया। कोमल सिहर गई।
आदमी मार डालेंगे आदमी को? यों ही?
बाई हँसी।
वो आते हैं मारने को तो आने दो। हम भी उन्हें मारेंगे।
लेकिन इसका अन्त क्या होगा?
केवल मरण! बचेंगी केवल सू, कुछ पिलू।
बाई ने गर्दन हिलाई।
आज तक कभी ऐसा सुना नही।
मरण सुना है। आदमी, सू मर गये फटाफट। तपकर, हगते हुए, उलटियाँ करते हुए।
औढया देव के सामने एक भैंसा बलि चढाया



  
और लोगों का तपकर मरना रुक गया।
कभी जानवर भी मारकर आदमी को ले गये।
लेकिन यों आदमी ही मारे आदमी को...।
उसने एक लम्बी साँस छोड़ी।
औढया देव की इच्छा। लेकिन जो अंधड आ पहुँचा है वह वापस तो नही जायगा। उसे शरीर पर झेलना ही होगा।
पायडया ने गर्दन हिलाई।
हमारे पास भी आदमी कम नही हैं। सोटया, लकुटया.....और भी कई। हम क्यों भय करें?
बाई ने फिर से सिर हिलाया।
अब देखना यही है कि किसके पास कितने आदमी हैं।
जिस टोली के आदमी अधिक होंगे वही जीतेगी। अब केवल यही भय है-- यदि हमारे कम हुए तो?
कोमल का तनाव कम हुआ। उसने बाई से पूछा--
मैं कहाँ थी? कैसे बची?
कहाँ रही?
पूछा नही तुमने!
बाई ने ठिठक कर उसकी ओर देखा।
उसकी आँखें चमक रही थीं। बाई को थरथरी आ गई।
कोई आदमी?
पायडया ने पैर सिमट लिये। कान सजग करके वह भी सुनने लगा।
कोमल ने सारी बातें बताई।
तीनों देर तक स्तब्ध रहे।
दूर खुली जगह पर उनके आदमी लाठी भाँज रहे थे।
गर्जना कर रहे थे। फुत्कार भर रहे थे।
उस आवाज के सिवा बाकी सारी शांति।
पायडया ने गर्दन हिलाई।
फेंगाडया, हाँ।
पंगुल्या, लुकडया, उंचाड़ी, लंबूटांगी.....नहीं।
कोमल ने आँखें झुका लीं।
डबडबाए आँसू टपकने लगे।
बाई देख रही थी। उसकी छाती धड़कने लगी।
पायडया फिर से समझाते हुए बोला--
यहाँ सामना है मरण का। अच्छे भले हाथ पैरों वाले आदमियों के मरण का।
आजतक बस्ती में कभी घायल आदमियों को नही पोसा गया।
यह कल की जनमी कोमल कहती है--
फेंगाडया के लिए उन्हें भी बुलाओ। वह लुकडया, वे दोनों सू.......।
धान कौन देगा उन्हें?
मैं.......या बाई.....या यह कोमल?
पायडया थूक दिया।
अब बाई आगे आई। कोमल को अपनी ओर खींच लिया।
फिर से कहो.....मुझे फिर सुनाओ सब कुछ।
वह फेंगाडया.....। अपने अकेले की हिम्मत पर ले आया घायल लुकडया को ?
रखा उसे गुफा में?
रखा लंबूटांगी को भी उसके पास बिठाकर?



अकेले ही करता रहा तीन तीन आदमियों के लिये शिकार?
कोमल ने हाँ भरी।
बाई कुछ सोचती रही। उसने आगे आकर कोमल का पिलू अपने हाथों में ले लिया। जा तू....ले आना.....सबको।
कोमल चकित सी उसे देखती रही।
सच कह रही है तू बाई?
हाँ, जा... चांदवी को साथ में ले जाना।
और सोटया के दो आदमियों को भी।
कोमल बाई से लिपट गई। उसे चूम लिया।
फिर चौकड़ी भरती हुई निकल पड़ी।
पायडया खड़ा हो गया। बाई के कंधे पर हाथ रखकर उसे अपनी तरफ मोड़ा।
बाई की आँखें पथरीली।
पायडया सिहर गया। कांधे पर से हाथ हटा लिए। बाई हंसी।
नरबली टोली के लोग जब आक्रमण करेंगे, हमारे आदमी मारेंगे, जब एक एक मानुस काम का होगा।
आज आने दो उन्हें। बस्ती के लिये आज का दिन नियमों का नही है..... जीवित रहने का है।
केवल बचे रहने का है।
वह फेंगाडया अकेला..... तीन आदमियों के बराबर है।
पंगुल्या, लुकडया....उन्हें वही पोसेगा।
हम क्यों मना करें?
पायडया की आंखें अब भी संशय में गंदलाई।
सू, पिलू आते हें बस्ती पर तब ठीक है।
लेकिन नए आदमी बस्ती में आते हैं तो सब कुछ ठीक नही होता।
बस्ती के आदमी तन जाते हैं। उन्हें संशय से देखते हैं।
बाई ने फिर लम्बी साँस छोड़ी।
कल ही मोड़ की ढलान तक नरबली चुके हैं-- आज विचार केवल उसी बात का।
बस्ती यदि बच पाई तो अगला विचार आगे करेंगे।
वह मुड़ी। चली गई। पायडया एक बार फिर सिहर गया।
यह सावली....। यह भी पुरानी बाई जैसी ही है।
पथरीली आँखों वाली।
उस बाई के कारण बापजी बस्ती में आकर भी लौट गया।
अब फेंगाडया के साथ यह क्या करेगी?
पायडया थूक दिया। दूर आँखें दौड़ाई तो देखा--
कोमल, चांदवी के साथ तीन और लोग फेंगाडया को लिवाने जा रहे थे।
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