॥६७॥ पंगुल्या और फेंगाडया
की बातें ॥ ६७॥
पंगुल्या लुकडया के पास
पालथी मारकर बैठा था। सामने फेंगाडया। उसके बगल में उंचाडी। लंबूटांगी दूर अलाव पर
सूअर भून रही थी।
तू इसे उठाकर क्यों लाया।
फेंगाडया खीझ गया-- ले आया।
लेकिन क्यों? पंगुल्या उसका
पीछा नही छोड रहा था।
फेंगाडया थूका। मेरा साथी है
वह.......बस।
पंगुल्या ने लुकडया की जाँध
पर थोड़ा दबाते हुए हाथ फेरा।
एक सीधी लकीर। फिर कुछ
उंचाई.....गुठली जैसी। फिर एक लकीर।
उंचाई पर हाथ दबाते ही
लुकडया की एक धीमी कराह निकली।
पंगुल्या उठा। जल्दी जल्दी
अपनी हड्डियों की पोटली खोलकर उसने जाँघ की एक हड्डी निकाली।
एक लकीर......। यहाँ से वहाँ
तक अखंडित लकीर......। बीच में कोई उंचाई, कोई गुठली नही थी।
फेंगाडया चकित होकर उसे देख
रहा था।
वह उठकर पंगुल्या के पास
पहुँचा। हड्डी अपने हाथ में ले ली।
यह हड्डी?
जाँघ की है। पंगुल्या ने
कहा।
पोटली के पास जाकर वह फिर दो
टूटी हड्डियाँ- ले आया।
ये दोनों....। एक ही जाँघ की
हैं.....लेकिन दोनों टूटी हुई।
पंगुल्या ने वे टुकड़े भी
फेंगाडया के हाथ में दिए।
किसकी हड्डियाँ? फेंगाडया ने
पोटली को अंगुली दिखाते हुए पथराई आँखों से पूछा।
नरबली टोली के मानुस बलियों
की। कुछ गाडे हुए आदमियों की। यह टूटी हड्डियाँ भी ऐसे ही किसी आदमी की थीं जो
जाँघ टूटकर घायल हो कर गया गया था।
फेंगाडया का शरीर तन गया।
लुकडया की नई हड्डी नही
निकलेगी?
फेंगाडया ने पूछा।
उसकी आँखों के अंगार से
पंगुल्या कांप गया।
ये हड्डियाँ कहती हैं- नही।
इन सारी हड्डियों में एक भी नई हड्डी नही निकली है।
ये हड्डियाँ या तो अटूटी हैं
या फिर टूट कर दो टुकडे रही हैं।
फेंगाडया उठकर फेरे लगाने
लगा। गुफा के अंदर हवा बोझिल हो गई।
फेंगाडया पूछने लगा- पेड़ की
डाल तोडो तो तो नई डाल आती है। मेरी जांघ के मांस को रीछ ने नोंच खाया था तो उस पर
नया माँस आ गया था। फिर हड्डी टूटने के बाद नई हड्डी क्यों नही निकलेगी? निकलना
पडेगा नई हड्डी को। ठीक होना पड़ेगा लुकडया की जाँघ को। चलना पडेगा उसे।
फेंगाडया ने आवेश से कहा।
वह जरूर चलेगा। समझे? उसने
पंगुल्या से कहा और थक कर नीचे बैठ गया।
लुकडया हंसा- जोर से।
सारे चौंक गये।
कोमल गई। और हम सब राह देख
रहे हैं कि वह आएगी।
धान बस्ती पर जाने की राह
देख रहे हैं।
लेकिन नही लेंगे वे हमें
धानबस्ती में। आखिर क्यों लेंगे वे मुझे? या इस पंगुल्या को?
अरे, थूकेंगे वे तुम्हारी
बात पर।
फेंगाडया ने गर्दन हिलाई।
कोमल मनाने वाली है उनको।
मुझे पता है। देखा है मैंने उसकी आँखों में।
फेंगाडया ने चीखकर कहा।
लुकडया चुप रहा।
लेकिन कहाँ आई अब तक?
लंबूटांगी ने पूछा।
दूर है धानबस्ती। दो
चढाइयाँ, दो मोड़, फिर एक उतराई। उंचाडी बोली-- कोमन ने ही बताया था मुझे- वह जरूर
आएगी।
पंगुल्या अपनी ही तंद्रा में
था। उसने मानों कुछ भी नही सुना। उसका हाथ फिर रहा था लुकडया की जाँघ पर। ऊपर से
नीचे, नीचे से ऊपर। गुठली, गुठली- मानों एक गांठ- हड्डी की गांठ। जैसे वह लताओं की
गांठ बांधता है।
यह हड्डी जुड़ेगी। वह
चिल्लाया।
फेंगाडया उसकी ओर दौड़ा। कंधे
से पकड़कर उसे झकझोर दिया।
सच?
पंगुल्या का चेहरा मानों
किसी प्रकाश में चमक रहा था।
उसने छाती पर हाथ रखकर कहा-
हाँ, मुझे यहाँ कुछ दीखता है। एक उजाला।
उस उजाले में मैं देख सकता
हूँ।
टूटी हुई हड्डी जुड़ेगी
फेंगाडया।
नई हड्डी नही निकलेगी। लेकिन
टूटी हुई हड्डी जुड़ेगी।
कैसे? क्या दीखता है तुझे?
पंगुल्या के हाथ अब भी अपनी
छाती पर थे-
यहाँ दीखता है मुझे। छाती
में मानों एक झरना फूटता है। और फिर झरने के उजाले में मुझे जो दीखता है वह गलत
नही होता।
फेंगाडया, मैंने कहा कि आज
तक कभी मुझे टूट कर जुड़ी हुई हड्डी नही मिली । सच कहा था मैंने। पर बता क्यों नही
मिली?
बता फेंगाडया, बता? क्यों
नहीं मुझे मिली ऐसी हड्डी?
मैं बताता हूँ।
इसलिये कि आज तक कभी किसी ने
घायल आदमी को नही उठाया। उसे गुफा का आश्रय नही दिया। पूरे एक ऋतु तक उसे शिकार
लाकर नही खिलाई।
फेंगाडया। यह तूने किया है।
आज पहली बार किसी ने ऐसा किया है।
पेड़ पर डाल फिर से जुड़ जाती
है। ठीक कहता है तू।
इस लुकडया की हड्डी को,
फेंगाडया के रूप में एक पेड मिला है।
अब यह पेड भी भरेगा।
उसकी डाल जुडेगी।
लुकडया की हड्डी जुडेगी।
एक आवेश में पंगुल्या उठा।
लुकडया उठेगा। अपने पैरों से
चलेगा। यह आवाज जो मेरे अंदर के झरने से फूटती है ना लुकडया, वह कभी झूठ नही होती।
देखते रहना तुम।
फेंगाडया उठा। एक लहर दौड़ गई
उसके शरीर में।
होच्होच्होच्
वह लुकडया के चारों ओर नाचने
लगा।
उंचाडी, लंबूटांगी भी उठे।
लुकडया के चारों गोल बनाते हुए नाचने लगे।
पंगुल्या भी धिस्टता हुआ
उनके बीच नाचने लगा।
लुकडया भरमाया सा देखता रहा।
कभी पंगुल्या को, कभी फेंगाडया
को।
गुफा के बाहर दूर पैरों की
आहट हुई। फेंगाडया के सजग कानों ने लपक लिया।
उसने हाथ उठाकर सबको रुकने
का इशारा किया।
बाहर आकर दूर दिशा में देखता
हुआ चिल्लाया -- कोमल आ गई।
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