Tuesday, 6 December 2016

॥ ६३॥ लाल्या की अचानक टक्कर ॥ ६३॥

॥ ६३॥ लाल्या की अचानक टक्कर ॥ ६३॥

बाँए मोड से ऊपर चढाई में हलचल हुई। सोटया, लकुटया और बाकी आदमी तैयार थे।
देह में सिहरन।
आपस में आवाजें, कोलाहल।
लाल्या के साथ चुने हुए पांच आदमी थे। वह आगे आया।
ऊपर लकुटया और सोटया ने पैंतरा लिया।

नीचें की टोली क्षणभर ठिठकी।
लाल्या ने गर्जना की। वेग से चाल करते हुए आगे आया।
सामने आठ दस व्यक्ति अपनी लाठियाँ लिये तैयार थे।
लाल्या अचानक थम गया।
दो गुटों के बीच दो पुरुष अंतर।
भारी पड़ने वाला था। उसके पांच साथी पूरे पड़ने वाले नही थे।
पीछे मुडो। वह चिल्लाया।
सोटया, लकुटया पथराए देख रहे थे।
लाल्या और उसके आदमी वेग से मुड़कर ओझल हो गये।
लकुटया, सोटया थरथराए देखते रहे।
प्रतीक्षा करते रहे।
अब आएंगे। तब लौटेंगे....।
सूरज डूबने को आया तब भी वे वहीं रुके थे।
आँखें निढाल, तपी हुई।
लाल्या कब का अपनी नई बस्ती पर पहुँच चुका था। एक सू से जुगते हुए मन ही मन हँस रहा था।
राह देखो.....। वह पुटपुटाया। यह खेल मैं खेलूँगा। रातभर राह देखो। थरथराते रहो।
सू को धकेलकर उसने परे कर दिया। अपने नए खेल के बारे में सोचने लगा।
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